औरंगजेब के समय मे मुग़ल सत्ता अपने चरम पर थी। उसी समय उसकी कठोर इस्लामिक नीतियों और गैर मुस्लिमों के धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत मे यत्र तत्र सर्वत्र हिंदुयों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया।
सिख भी हिंदुयों के साथ ही उसकी धार्मिक उत्पीड़न नीति से बुरी तरह प्रभवित थे। इस समय सिख पंजाब में , जाट उत्तर प्रदेश हरयाणा और राजस्थन में तथा मराठा दक्कन में उसके लिए नासूर बन गए। इस समय राजपूत अधिकतर औरंगजेब के साथ थे और हिंदू तथा सीखो के संघर्ष को दबाने में मुगलों के साथ थे। मेवाड़ के राणा और जोधपुर के राजपूत राजा भी औरंगजेब के विरोध में थे क्योंकि उनकी परस्थिति ने उन्हें विरोध करने को विवश किया था। इन विरोधी हिंदुओं को सज़ा देने और इनके उपद्रवों को दबाने में उसका सारा धन, सारा बल व्यर्थ हो गया और वह 1680 में दक्कन गया ।लगातार 27 साल मराठों से लड़ते हुए वही मर कर दफन हो गया। चाहकर भी उत्तर भारत या दिल्ली लौट न सका। उसे मराठों ने खूब छकाया। तब तक इनके कारण ही उत्तर भारत मे मुग़ल शाशन के लिए हालात बहुत बुरे हो गए। उसकी मृत्यु 1707 में दक्कन में ही हो गयी। उसने लम्बी उम्र तक राज्य किया और वह धार्मिक अत्ययाचार शोषण के कारण अलोकप्रिय बादशाह बना और इसी कारण जन समर्थन कम होने से तब मुग़ल कमजोर हो गए। उनको पूरे भारत मे सभी तरफ से चुनोती मिल रही थी। वे स्थानीय उपद्रवों विद्रोहों को दबाने में असफल हो रहे थे।
इस समय जोधपुर रियासत को भी मुस्लिम बनाने के चक्कर मे वहां भी विद्रोह हो गया और कुंवर अजित सिंह जो महाराज जसवंत सिंह के पुत्र थे ,जिन्हें औरंगजेब ने मुसलमान बना डियां था और दुर्गादास जो जोधपुर के कट्टर सेंनाप्ति थे, युद्ध मे हरते ही नही थे, दोनो ने मिलकर विद्रोह कर दिया। फिर से जोधपुर को स्वतंत्र कर लिया। यह फरुखसियर का समय था। मेवाड़ और आमेर भी जोधपुर के साथ थे। छुपे तोर पर मिल गए थे। औरंगजेब की मृत्यु के बाद में राजस्थान में राजपूत भी मुग़लों की नीतियों से खुश न थे और उनहोने भी विद्रोही तेवर अपना लिए थे।औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके जायज ,नाजायज पुत्रो मे सत्ता संघर्ष हुया। जिसमे मुआजजम विजयी रहा और आजम को हार के साथ मृत्यु हुई। इस तरह सत्ता संघर्ष में मुग़लों की हालत और कमजोर जो गयी । बिरोधि हिन्दू शक्तियां और शक्तिवान हो गयी। पंजाब में सिखों ने अपनी सत्ता बन्द वैरागी के नेतृत्व में स्थापित कर खालसा राज स्थापित किया और सरहिन्द के नवाब वज़ीर खान को बन्द वैरागी ने मारकर गुरु गोविंद सिंह के नाबलिग बच्चों जोरावर और फतह सिंह के बलिदान का बदला लिया। यह पहली स्वतंत्र सिख खालसा राज्य थी पंजाब में।
गुरु गोविंद सिंह ने मुघलो से संघर्ष शुरू किया जो सिख सत्ता स्थापित होने तक चलता रहा।
भरतपुर के जाट जिनमे संघर्ष शुरू किया गोकुल ने फिर ब्रजराज सिंह, राजाराम ,भज्जा सिंह और चुरामन ने जाट सत्ता मजबूती से स्थापित कर दी और मुगलों के कनवाई को जो दिलली से अगरा से दक्कन जाती थी को लूट लेते थे। महाराज सूरजमल के समय जाट सत्ता शिखर पर थी और इन्होंने मराठों के साथ तथा अब्दाली का विरोध भी किया था 1761 में पानीपत में। मुगलों को मुख्य झटका शिवजी शम्भाजी और राजाराम मराठो ने दिया। इनसे लड़कर मुगल सत्ता खत्म हो गयी। लेकिन मराठे सशक्त बने रहे और दक्कन की सह्याद्रि की पहाफियों में औरंगजेब को इन्होंने उलझकर उत्तर भारत मे स्वतंत्र जाट सिख एवम राजपूत सत्ता स्थापित होने दी। यही लोग मुख्यतया मुगलों के पतन के लिए जिम्मेदार है। ये सिफर से बढ़े और राजा बन गए। इन्होंने ही आदिलशाही खत्म कर दी। स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित किया ।यह सब शिवाजी का रणनीति कार्यकुशलता और प्रवंधन का कमाल था। इसी कारण इन्हें लोकल जन समर्थन भी बहुत था। बहुत छोटा सा राज्य होने पर भी मराठे मुगलों पर भरी पड़े।युगल साम्राज्य धीरे धीरे हैदराबाद, अवध ,बंगाल और पंजाब आदि की रियासतों में बंट गया और नाममात्र का साम्राज्य रह गया।
मुहम्मद शाह के समय उसके मुख्य सिपहसालार जेसे बंगाल में , अवध में तथा हैदराबाद मे सुबेदार स्वतंत्र हो गए और उन्होंने अपनी रियासस्ते कायम कर ली। यह सब दिल्ली के बादशाह की कमजोरी और शक्तिहीनता का प्रमाण है। मुग़लों की कमजोरी का लाभ उठाकर ईरान का नादिरशाह दिल्ली पर चड आया और मुहम्मद शाह दिल्ली में अय्याशी ही करता रहा ।उसने कोई व्यवस्था ही नही की। पंजाब सिन्ध विना प्रतिरोध नादिर शाह ने अधिकृत कर लिए और करनाल हरयाने में मुहम्मद शाह को 1739 मे बूरी तरह हराकर दिल्ली में नृशंश हत्या कांड किया और खूब लूट की। अवध के नवाब सादात अली खान , हैदराबद के नवाब कुलीच खान को नादिरशाह ने मुहम्मदशाह के साथ हराया और हिंदुस्तानी बादशाह ने लड़ने से बेहतर टोल मोल समझकर नादिरशाह के मातहत अपना गुलाम बनकर राज करने दिया। वह कोहिनूर हीरा, तख्ते ताउस और सभी वेशकीमती समान दील्ली से उठा ले गया। इस तरह मुग्ल लगातार अय्याशी, सत्ता संघर्ष, धार्मिक विद्रोह, धार्मिक उत्पीड़न, मन्दिर तोड योजना, धर्म बदलने के लिए दबाद ,अधिक कर वसुली और हिन्दू सिख विरोध के कारण लगातार कमजोर होते चले गए। सभी सहयोगी भी अपनी सत्ता बनाकर दिल्ली से अलग हो गए और बादशाह के राज्य की सीमा दिल्ली में ही रह गयी। कहते है
बादशाह शाहे आलम ,दील्ली से पालम। अर्थात शाह आलम का राज्य लालकिले से पालम तक हि बचा। उसकी स्वतंत्र सत्ता नही थी ।वह कभी सिंधियाओ और कभी होल्कर या नजीबाबाद के नवाब की सहायता से राज्य करता रहा। फिर अंग्रेजो ने पानीपत के तीसरी लड़ाई के बाद भारत मे अपने पैर मजबूती से जमा दिए।
सरदार जस्सा सिंह अहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढ़िया ने शाह अलमको कैद कर लिया। दिल्ली में वसूली की ।चांदनी चौक बंगला साब में गुरुद्वारे बनवाने के लिए शाह आलम से आदेश निकलवाया। कर लेकर तथा सिखों पर हिये मुस्लिम अत्ययाचार के लिए माफी मंगवाकर ही छोड़ा। बेगम समरु ने बादशाह को सिखों से बचाया।
अंग्रेजों का दबदबा भारत मे बंगाल से शुरू हुए बंगाल के नवाब सिराजुड़फोला को हराकर प्लासी में 1757 में। उसकी हार का मुख्य कारण उसका सेनापति मीरजाफर था जो क्लाइव लॉयड से मिल गया। उसकी जगह मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया। मीर जाफर और उसके बेटे मीरान जफर ने सिराजुद्दोला के सभी घर वालों पुरुषों का कत्ल कर दीया और हरम कि स्त्रियों को गंगा नदी में हुगली मे नाव मे बेठकर डुबो डिया। यहअगले की सत्ता और उनके सामंतों का लगभग खत्राात्मा था। सिराजुद्दौला की बेगम को छोड़ दिया गया जो अत्यंत खूबसूरत थी और उसे शादी का प्रस्ताव मीर जाफर और उसके लड़के मिरान जफर दोनों ने भेजा जिसे उसने ठुकरे दिया और कहा कि हाथी की सवारी के बाद गधे की सवारी करने से बेहतर मर जाना है। इस तरह भारत मे ईस्ट इंडिया कम्पनि का सिक्का जम गया। इसके बाद बंगाल के नवाब मीर कासिम ,दिल्ली के निर्वासित बादशाह शाह आलम और अवध के नवाब शुजाउद्दोला ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से बक्सर में 1764 में युद्ध किया। जिसमें ईस्ट इंडिया कम्पनी विजयी रही और भारत में अंग्रेज एक बड़ी सैन्य शक्ति के रूप में उभरे। सभी भरर्तीय राजे ,महाराजे ,नवाब आदि अंग्रेजो से सैन्य समझौते कर अपने राज्य को पड़ोसी राजाओं कि हड़प नीति से सुरक्षित करने में उनके साथ हो लिए। अचंभा देखो अपने पड़ोसी से सभी को डर था लेकिन सब अंग्रेजों पर भरोस करते थे। मुग़ल शक्ति इस तरह कमकोर होकर विल्कुल ही समाप्त हो गयी। अतः मराठे , सिख, जाट, अंग्रेज सभी देशी बिदेशी शक्तियों ने मिलकर मुग़लों का आन्त किया। धीरे धीरे ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपनी बांटो और राज करो कि नीति से भर्तीय राजाओ और नवाबो को अपने साथ मिलकर आपस में लड़ाकर , सभी को उनके पड़ोसियों से रक्षा का भरोसा देकर समस्त भारत पर अधिकार कर लिया। ये भारत आज का पाकिस्तान बंगलादेश और अफ़ग़ानिस्तान के कुछ हिजड़ों को शामिल कर बना था।
अतः 1707 से1739 तक मुग़ल ख़ूब शक्तिमान थे, फिर उनका प्रताप घटा,कम हुए और कम हुए और 1739 से 1774 तक अंग्रेज अपनी शक्ति स्थापित कर पाए और भारत पर उनके सैन्य शक्ति के मनसूबे सफल हुए। वेसे मुग़लों के पतन कि शुरुआत औरंगजेब के समय ही हो गयी थी जब पूरे भारत मर उसका खिलाफत पंजाब से लेकर दक्कन तक बिभिन्न भारतीय राजाओ ने की। इसके बाद 1761 मे मराठो की पानीपत में हार ने अंगर्जो की जीत के दारवजे खोले। 1757 का प्लासी और 1764 का बक्सर का युद्ध मुंगलों के लिए अति घातक सिद्ध हुए और सर्वभौम सम्राट की उनकी छवि ध्वस्त हो गयी। कुल मिलाकर मुग़लों को भारतीयों ने ही समाप्त किया। लेकिन इसका पूरा लाभ अंग्रेजों ने उठाया। अंग्रेज फिर ईस्ट इंडिया कम्पनी के रूप में भारत पर शाशन करने लगे। पहले मुग़ल बादशाह के कर वसुलने वाले के रूप में ,फिर 1857 में प्रथम स्वस्तंत्रता संग्रम के विफल होने पर रानी विक्योरिया के शाशक बन जाने पर सार्वभौम सम्राट के रूप में।