सुप्रीम कोर्ट ने मुर्शिदाबाद हिंसा की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने से ही इनकार कर दिया
बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग पर कहा कि हम कार्यपालिका में हस्तक्षेप नहीं कर सकते जबकि तमिलनाडु विधेयक मामले में राष्ट्रपति को 3 महीने में निर्णय लेने का आदेश देते हैं
जब हिंदू पक्ष वक्फ बोर्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट जाओ, हिंदू पक्ष की 140 याचिकाएं अलग-अलग हाईकोर्ट में घूम रही हैं
जब नए वक्फ कानून के खिलाफ मुस्लिम पक्ष SC गया तो जज साहब ने हाईकोर्ट नहीं भेजा बल्कि खुद ही सुनवाई कर रहे हैं
राम मंदिर पर सुनवाई: कोर्ट को प्रमाण और कागज चाहिए
काशी ज्ञानवापी पर सुनवाई: कोर्ट को प्रमाण और कागज़ चाहिए
कृष्ण जन्मभूमि पर सुनवाई: कोर्ट को प्रमाण चाहिए
वक्फ कानून सुनवाई: SC कहता है कि कुछ मस्जिदें 300-400 साल पुरानी हैं. वक्फ बोर्ड कागज कहां से लाएगा ?
अर्थात अगर मुसलमान किसी जगह पर नमाज आदि पढ़ते रहे हैं, इबादत करते रहे हैं तो वो जमीन मुस्लिम पक्ष की मानी जाए ? सरकार उनसे प्रमाण भी नहीं मांग सकती ?
लेकिन जब श्रीराम जन्मभूमि का मामला था तो सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष से प्रमाण मांगे कि साबित करो कि ये जमीन हिंदुओं की है या यहां राम मंदिर ही था
हिंदू पक्ष ने स्कंद पुराण का संदर्भ, एडवर्ड स्तंभ और हंस बेकर का नक्शा प्रस्तुत कर यह साबित किया कि यह वही स्थान है जहां राम का जन्म हुआ था और इसके बाद हिंदू पक्ष ने केस जीता
लेकिन मस्जिदों के मामले में माननीय जज साहब कह रहे हैं कि 5 सदी पुरानी मस्जिद के कागज कहां से आएंगे ?
हिंदू पक्ष ने काशी ज्ञानवापी मंदिर, धार के भोजशाला मंदिर, संभल के हरिहर मंदिर, कृष्ण जन्म भूमि मंदिर को लेकर तमाम प्रमाण और वैज्ञानिक साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, लेकिन फिर भी SC और और स्थानीय न्यायालय हिंदुओं के पक्ष में फैसला नहीं दे रहे हैं और तारीख पर तारीख मिल रही है
वहीं वक्फ मामले में माननीय कोर्ट कह रहा है कि सैकड़ों साल पुरानी मस्जिदों के कागज कहां से लाए जा सकते हैं ?
अर्थात कागज देने के बाद भी हिंदुओं के पक्ष में फैसला नहीं और मुस्लिमों से कागज ही नहीं मांगे जा रहे ?
शेषमल केस (1972)
शेषमल एवं अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में 14 मार्च, 1972 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति एक धर्मनिरपेक्ष कार्य है और राज्य सरकार को मंदिरों के प्रबंधन और प्रशासन जैसे धर्मनिरपेक्ष कार्यों को विनियमित करने का अधिकार है, जिसमें पुजारियों की नियुक्ति भी शामिल है
वही कोर्ट कह रहा है कि वक्फ बोर्ड की नियुक्ति में हस्तक्षेप क्यों?
सबरीमाला मंदिर केस (2018)
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, यह इस मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा है लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करते हुए इस परंपरा को खत्म कर दिया, जिसके बाद वामपंथी महिलाओं ने मंदिर में फिजूल में प्रवेश किया
सबरीमाला मामले के बाद मुस्लिम महिलाओं ने भी मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस जनहित याचिका को उतनी गंभीरता से नहीं लिया, जितनी सबरीमाला जनहित याचिका को लिया
सबरीमाला में महिलाओं को प्रवेश के पक्ष में निर्णय देने वाला माननीय कोर्ट वर्षों बाद भी मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश वाली याचिका पर निर्णय नहीं सुना सका है और इस मामले में नियमित सुनवाई भी नहीं हो रही है
ए.एस. नारायण दीक्षितुलु बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1996) और एन. अदित्यन बनाम त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड (2002) में सुप्रीम कोर्ट ने खुद कई बार यह स्पष्ट किया है कि कौन-सी धार्मिक प्रथाएं अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित हैं और कौन-सी नहीं
कोर्ट ने यह भी कहा है कि किसी धार्मिक संस्था का प्रबंधन अनुच्छेद 26 के तहत नहीं आता
तो फिर सुप्रीम कोर्ट वक्फ बोर्ड (जो कि एक प्रबंधन संस्था है) में गैर-मुस्लिम की नियुक्ति पर सवाल क्यों उठा रहा है? सुप्रीम कोर्ट को अपनी ही पुरानी टिप्पणियों को पढ़ना चाहिए
लेकिन ठहरिए
उन सभी टिप्पणियों और निर्णयों को हिंदू मंदिरों के सरकारी नियंत्रण के संदर्भ में दिया गया था
भारत में मंदिरों का नियंत्रण सरकार के हाथों में है. सरकार मंदिरों का धन लेती है और उसे धर्मनिरपेक्ष उद्देश्यों में खर्च करती है.
वहीं, मस्जिदों और चर्चों को पूरी स्वतंत्रता दी जाती है. पिछले 10 वर्षों से हिंदू लगातार इस विषय पर ध्यान देने की मांग कर रहे हैं, लेकिन हर बार सुप्रीम कोर्ट उन्हें हाई कोर्ट जाने की सलाह देकर पल्ला झाड़ लेता है.
पशु बलि और बकरीद
न्यायालय ने त्रिपुरा के मंदिर में पशु बलि पर प्रतिबंध लगा दिया और कहा कि पशुओं के साथ क्रूरता नहीं होनी चाहिए
हालांकि माननीय कोर्ट ईद पर बकरी काटने से रोकने का आदेश नहीं दे सके हैं
बकरीद पर कटने वाली बकरियां चीख-चीख कर कह रही हैं कि जज साहब हमें बचाओ, लेकिन मंदिर में पशु बलि रोकने की तरह ईद पर बकरी को काटने से रोकने का आदेश नहीं आ सका है
हमने तो केवल कुछ उदाहरण ही उजागर किए हैं, लेकिन ऐसे अनेक मामले हैं जहाँ सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) की व्याख्या असंगत और याचिकाकर्ता की धार्मिक पहचान से प्रभावित प्रतीत होती है।
इसका नतीजा यह है कि भारत में हिंदू समुदाय का एक बड़ा हिस्सा अब सुप्रीम कोर्ट पर से अपना विश्वास खोता जा रहा है। वे न्यायपालिका से अपेक्षा करते हैं कि वह निष्पक्षता बनाए रखे और सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान तथा तटस्थता का पालन करे।
साभार