2009 में, गोपाल पर बलात्कार का आरोप लगाया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सात साल की सजा सुनाई गई। हालांकि, उन्होंने लगातार अपनी बेगुनाही की दुहाई दी, लेकिन उनकी आवाज़ अनसुनी रही।
इस गलत सजा के कारण गोपाल के जीवन में त्रासदी की लहर दौड़ गई। उनके पिता इस सदमे को सहन नहीं कर सके और उनका निधन हो गया। पत्नी ने साथ छोड़ दिया, और उनकी दो बेटियां अनाथालय में पहुंच गईं। इस दौरान, गोपाल ने जेल में रहते हुए सूचना का अधिकार (RTI) का उपयोग कर अपने मामले की जानकारी जुटाई। उन्होंने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी और अंततः छह साल बाद, 2015 में, उन्हें बरी कर दिया गया।
अपनी जिंदगी के कीमती साल खोने और परिवार की बर्बादी के बाद, गोपाल ने न्याय के लिए एक बड़ा कदम उठाया। उन्होंने पुलिस, वकील और न्यायाधीश के खिलाफ 200 करोड़ रुपये के हर्जाने का दावा दायर किया। यह कदम न केवल उनकी व्यक्तिगत पीड़ा का प्रतीक है, बल्कि न्यायिक प्रणाली की खामियों को उजागर करने का भी प्रयास है।
गोपाल शेट्टे की यह कहानी हमें सिखाती है कि न्यायिक प्रणाली में सुधार की कितनी आवश्यकता है, ताकि भविष्य में किसी निर्दोष को इस तरह की यातना न झेलनी पड़े।