1. जब आपकी मानसिक स्थिति सुखद है तब ध्यान में बैठे।
2. आपके मन में भय व्याप्त है तब ध्यान में मत बैठे।
3. जब आप प्रेम से भरे हुए हो तब ध्यान में बैठे।
4. सुबह स्नान करने के बाद और रात्रि को सोते वक्त स्नान करने के बाद ध्यान में बैठे।
5. दोपहर भोजन करने के बाद और रात्रि के भोजन करने के बाद ध्यान में मत बैठे क्योंकि भोजन करने के बाद हमारा शरीर भारी हो जाता है।
6. ध्यान ब्रह्म मुहूर्त में करना जरूरी नहीं है जब भी आप महसूस करो कि आपका शरीर और मन फ्रेश है तब ध्यान में बैठना, वह समय ही आपका ब्रह्म मुहूर्त है।
7. घर में जब तनाव का वातावरण है कोई ऐसा दुखद प्रसंग घर में घटा है तब ध्यान में मत बैठे।
8. ध्यान का सबसे बढ़िया समय है जब आपको गीत गाने का मन होता है गुनगुनाने का मन होता है, तब ध्यान में बैठ जाओ।
9. ध्यान करना नहीं है ध्यान में बैठना है। ध्यान करने का भाव नहीं,ध्यान में बैठने का भाव रखना है। सिर्फ बैठना है।
10. ध्यान में बैठने के बाद एक ही बात का ख्याल रखना है ध्यान में एक बार बैठ जाने के बाद शरीर को हिलाना डूलाना नहीं है।शरीर को स्थिर,अडोल,अचल बैठा देना है।और किसी भी प्रकार का मंत्र जाप भीतर नहीं करना है,कोई गुरु का या अपने कुल धर्म की मूर्ति या प्रतिमा को याद नहीं करना है। शरीर को निराधार बिठा देना है। दिवाल या किसी भी चीज को चिपक कर नहीं बैठना है।
11. ओशो ने जो भी ध्यान के प्रयोग दिए है सब संगीत के साथ,नृत्य के साथ संयोजित किए है। लेकिन सभी ध्यान का आखरी चरण सिर्फ मौन वेठनें का है। शरीर को सक्रिय ध्यान में क्रियान्वित करने के बाद लास्ट में मन की निर्विचार अवस्था प्रगट होती है।उस निर्विचार मनोदशा को ही ध्यान लगना कहते है। नाचने, कूदने के बाद मन, शरीर निर्भार हो जाते है और ध्यान की आखरी निस्पत्ती निर्विचार चित्त दशा प्रगट होती है।
12. ध्यान लगना स्टेट ऑफ माइंड है, जहां कुछ भी नहीं होता है सिर्फ सन्नाटा होता है।
13. ध्यान की गहराई में जाने के लिए भोजन की मात्रा कम होनी चाहिए और जितना हो सके उतना फ्रूट और फ्रूट ज्यूस लेना चाहिए। हमारे दिमाग को उत्तेजित करे ऐसा खुराक या लिक्विड जैसे दारु, बियर, आल्कहोलिक पेय नहीं लेना चाहिए।तीखा, तला हुआ, भूंजा हुआ और नॉन वेज भोजन बिल्कुल नहीं लेना चाहिए।
14. ध्यान और प्रेम दोनो में विचार की मृत्यु हो जाती है।
15. गहरी नींद और गहरा ध्यान दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू है।नींद में भी निर्विचार अवस्था प्रगट होती है और गहरे ध्यान में भी निर्विचार अवस्था प्रगट होती है।फर्क इतना ही है की नींद में हम बेहोश होते है जब निर्विचार अवस्था प्रगट होती है और ध्यान में पूरी जागृति होती है जब निर्विचार अवस्था प्रगट होती है।
16. ध्यान के प्राथमिक चरण में नित्य एक समय,एक आसन और एक ही स्थान पर नियत समय तक बैठने के प्रयास करना चाहिए। एक बार ध्यान सध जाने के बाद आप किसी भी आसन में,किसी भी समय पर, कीसीभी स्थान पर,उठते,बैठते,सोते जागते ध्यान में होते हो।
17. ध्यान स्त्री हो या पुरुष सभी को समान अवसर देता है और सभी को समान अनुभूति में ले जाता है। किसी भी जाति का, किसी भी देश का इंसान ध्यान में समान अनुभव से पसार होता है।ध्यान में मन क्रमशः विलीन होता है इसलिए धारणा, ध्यान और समाधि की क्रमिक साधना दी गई है।
18. ध्यान से बाहर का धन बढ़े या ना बढ़े यह पक्का नहीं है लेकिन भीतर का धन जरूर बढ़ता है। शान्ति, शक्ति, सौन्दर्य ज्ञान, आनन्द और प्रेम रूपी छे प्रकार के धन का लाभ ध्यानी को मिलता है।
19.ध्यान से ध्यानी सुख,दुख, हर्ख,शोक,भाव, कभाव, हानी, लाभ, मान, अपमान, देश,विदेश, स्त्री पुरुष जैसे ऑपोज़िट भावो से विरक्त होकर दृष्टा भाव में स्थित हो जाता है, आनंद के सागर में डुब जाता है।
20. सिर्फ ध्यान ही मनुष्य की मनुष्यता का प्रमाण है।