क्या इस केस में सुप्रीम कोर्ट के उस जज के ऊपर भी बलात्कार का केस नहीं चलना चाहिए जिसने इस दुष्कर्म की सजा माफ करके अपराधी रिहा किया था? एक जघन्यतम अपराधी को हमदर्दी के नज़रिए से देखना अपराध ही बढ़ाता और अन्यायपूर्ण व्यवहार हैं पीड़ित परिवार के साथ।
ऐसा पहले भी कई बार देखा गया है कि कोर्ट द्वारा सजा माफ करने अथवा अपराधी को बेल देने के बाद अपराधियों द्वारा अपराध किया जाता है। क्या ऐसे मामलों में कोर्ट दोषी नहीं हो जाता? आखिर सजा माफ करने या बेल देने का क्या क्राइटेरिया है? कोर्ट ने तो दरियादिली दिखा दी लेकिन फिर अपराधी के जो शिकार बने उनका क्या? घटिया कानून भी अपराधों को बढ़ावा देता है।
हमारे देश का कानून घटिया है और कुछ कोर्ट में इकोसिस्टम कॉलेजियम के जज महोदय हैं वह अपराधियों को बढ़ावा देते हैं जैसे जिहादी आतंकवादी देशद्रोही पत्थर बाज देश में सामूहिक डस कम करने वाले दोषियों को बम फोड़ने वालों को कैसे हमारा कोर्ट छोड़ देता है बलात्कारियों को अब तो कोर्ट के ऊपर से ही भरोसा उठ रहा है पानी शहर से ऊपर जा रहा है क्या हमारे देश में दो कानून है जो मजहब के लोगों के लिए अलग और बहुसंख्यक समाज के लिए अलग बड़ी विद्म ना होती है समान नागरिक संहिता लागू करो बहु संकेत समाज के भरोसे ही देश का सुप्रीम कोर्ट हो हाई कोर्ट हो कोड कचहरी थाना हो संविधान की माला जपने वाले संविधान को नहीं मानते बहुत सिंह के समाज ही संविधान और कानून का पालन करते हैं बाकी विस्तारवादी नीति सरकारी जमीन सरकारी दफ्तर पुलिस थानों को कोई नहीं मानते वह अपने मजहब को ऊपर मा से और माननीय जज महोदय से हाथ जोड़कर विनती है देश में बढ़ते हुए अपराध को बढ़ावा मत दो राष्ट्रीय हित के लिए देश की जनता जनार्दन के हित के लिए कठोर से कठोर कदम उठाने चाहिए डर के बिना कोई कानून का पालन नहीं करता है राष्ट्रीय हित सर्वोपरि जय हिंद
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