मराठा शौर्य से टकराने में औरंगज़ेब इतना थक गया कि दिल्ली भी न लौट सका। 23 साल दक्कन में फँसा रहा और वहीं मर गया। 40 साल के अंदर मुग़ल सल्तनत दिल्ली के लाल क़िले तक सिमट गया। एक समय ऐसा आया कि मराठों का दिल्ली पर क़ब्ज़ा हो गया और मुग़ल मराठों की दया पर निर्भर हो गए।
मुग़लों का ख़ानदान इन दिनों कोलकाता में चाय की ठेली लगाता है और कपड़े सिलता है।मराठों का जलवा क़ायम था और है। मुग़ल इतिहास के कूड़ेदान में समा गए। अब जरूरत है तो गलत इतिहास को हटाकर सही इतिहास पढ़ाने की।