झारखंड की इस घटना ने जालियांवाला बाग हत्याकांड की याद दिला दी. ये घटना खरसावां के हाट मैदान में 1 जनवरी 1948 को घटी थी. इस गोलीकांड की प्रमुख वजह खरसावां का उड़ीसा राज्य में विलय का विरोध करना था. इस कारण हजारों आदिवासी मैदान में जमा होकर सरकार के इस फैसला का विरोध कर रहे थे. इस दौरान पुलिस ने निहत्थे आदिवासियों पर गोली चली दी. जिससे कई लोगों की मौत हो गयी.
आजादी के मात्र साढ़े चार महीने बाद एक जनवरी 1948 को खरसावां में आदिवासियों की भीड़ पर उड़ीसा (अब ओडिशा) पुलिस की ओर से अंधाधुंध फायरिंग की घटना ने जलियांवाला बाग की याद दिला दी थी. इस घटना के कारण साल के पहले दिन ही खरसावां सहित कोल्हान के लोगों की आंखों में आंसू रहते हैं. कोल्हान में नववर्ष की शुरुआत शहीद आदिवासियों को नमन कर होती है. माना जाता है कि उनकी शहादत का झारखंड बनने में बहुत बड़ा योगदान है. खरसावां गोलीकांड के 77 साल हो गए, लेकिन इसमें शहीद हुए लोगों की संख्या आज भी अबूझ पहेली बनी हुई है. घटना की जांच के लिए ट्रिब्यूनल (न्यायाधिकरण) का गठन किया गया था, पर उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गयी. घटना में कितने लोग मारे गए? इसका कोई दस्तावेज नहीं है.।।