हर वर्ष दीपावली के एक दिन बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पूजा का संबंध द्वापर युग से है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। प्रकृति और मानव के बीच संबंध का पर्व है गोवर्धन पूजा। यह मुख्य रूप से उत्तर भारत में अधिक मनाया जाता है। इस दिन भारत में सभी घरों में गौमाता के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है साथ ही गौमाता की भी पूजा की जाती है। उत्तर भारत में इस दिन धोक पड़वा भी मनाई जाती है। बहुत जगह अन्नकूट का भी आयोजन किया जाता है। गोवर्धन पूजा का पर्व दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है लेकिन इस बार अमावस्या तिथि दो दिन होने की वजह से गोवर्धन पूजा 02 नवंबर को है।
🔅 `गोवर्धन पूजा तिथि`
पंचांग के अनुसार इस बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 01 नवंबर को शाम 06:16 मिनट पर शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 02 नवंबर को रात्रि 08:21 मिनट पर होगी। ऐसे में उदया तिथि को आधार मनाते हुए गोवर्धन पूजन 02 नवंबर को है।
🔅 `गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त`
इस वर्ष गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 02 अक्तूबर को दोपहर 03:22 मिनट से लेकर शाम 05:34 मिनट तक का है। इस शुभ मुहूर्त में गोवर्धन पूजा करना बहुत ही शुभ है।
- गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त : 06:34 से 08:46 तक।
- गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त :03:22 से 05:34 तक।
🔅 `धोक पड़वा`
उत्तर भारत में इस दिन गोवर्धन पूजा के साथ धोक पड़वा से मनाई जाती है। इस दिन सभी लोग अपने से बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। इसे स्थानीय भाषा में धोक देना भी कहा जाता है। गुजराती नववर्ष की शुरुआत भी इसी दिन से होती है।
🔅 `गोवर्धन पूजा का महत्व`
भारत के प्रत्येक त्यौहार में वैज्ञानिक महत्व निहित रहता है। गोवर्धन पूजा का यह त्यौहार प्रकृति और मानव के बीच संबंधों को स्थापित करता है। इस दिन पशुधन की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में गौमाता को साक्षात ईश्वर का रूप माना गया है। इस दिन सभी किसान अपनी पशुओं का श्रृंगार करते हैं। भगवान श्री कृष्ण इंद्र के अभिमान को तोड़कर बृजवासी पर्यावरण के महत्व को समझें और उसकी रक्षा करें यही उनका उद्देश्य था। इस दिन बहुत से श्रद्धालुओं के राज पर्वत की परिक्रमा भी करते हैं।
🔅 `गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा`
पुरानी कथाओं के अनुसार देवराज इंद्र को अपनी शक्ति और वैभव पर अभिमान हो गया था। उसे ही नष्ट करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने यह लीला रची थी। एक दिन जब यशोदा मैया भगवान इंद्र की पूजा की तैयारी कर रही थी तभी उस समय श्री कृष्ण माता यशोदा से पूछा कि वह किस लिए भगवान इंद्र की पूजा कर रही हैं। कृष्ण जी को माता यशोदा ने उत्तर दिया कि अरे गांव वाले गांव में अच्छी बारिश की कामना के लिए भगवान इंद्र की पूजा कर रहे हैं जिससे हमारा गांव हरा भरा और फसल की पैदावार अच्छी हो सके।
इस पर श्री कृष्ण ने माता यशोदा से कहा कि गिरिराज पर्वत से भी हमें गायों के लिए घास प्रदान करता है इसलिए गोवर्धन पर्वत की भी पूजा अवश्य होनी चाहिए और इंद्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते जबकि गोवर्धन पर्वत पर साक्षात हमारे समक्ष प्रस्तुत हैं।
श्री कृष्ण की इस बात पर सभी गांव वाले सहमत हो गए और सभी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात से नाराज होकर देवराज इंद्र क्रोधित हो उठे और देवराज इंद्र ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए ब्रज में मूसलाधार बारिश शुरू कर दी और पूरे गांव में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।
चारों ओर पानी ही पानी से हाहाकार मच गया। सभी गांव वालों की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण सभी को गोवर्धन पर्वत की ओर ले गए। जहां उन्होंने गिरिराज पर्वत को प्रणाम कर उसे अपनी सबसे छोटी उंगली पर धारण कर लिया और उसी के नीचे सभी गांव वालों ने शरण ली।
यह देख इंद्र और क्रोधित हो गए और उन्होंने वर्षा का प्रभाव और तेज कर दिया। तभी श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र ने वर्षा की गति को नियंत्रित किया और शेषनाग को आदेश दिया कि वे पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इस तरह 7 दिनों तक भगवान कृष्ण ने गांव वासियों की वर्षा से रक्षा की।
`जय हो बाबा गोवर्धन, जय श्री कृष्णा।` 👏