विद्यालय को वेदों में देवालयों के समांतर स्थान दिया गया है, विद्यालय देवी सरस्वती का मूल ग्रह भी माने जाते हैं। यह पहले आश्रम और गुरुकुल व्यवस्था के रूप में निर्धारित थे जिन्हे आज के वर्तमान रूप में विद्यालय से स्कूल और कालेज रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। विद्यालय वह संस्थान हैं जो एक बच्चे के भविष्य के लिए एक नींव के रूप में काम करते हैं। जागरूकता के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में आए बिना कोई भी बच्चा अर्श तक नहीं पहुंच सकता जिसमे वास्तु शास्त्र की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है , विद्यालय के निर्माण, क्षेत्र को सकारात्मक रखने, दिमाग को केंद्रित रखने और बच्चों और स्कूल अधिकारियों को समृद्धि प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विद्यालय वास्तु हर उस कारक का विश्लेषण करता है जो बच्चो के मन को केंद्रित करना और मानसिक तनाव को कम करना सिखाता है, इस तरह वास्तु शास्त्र अपने छात्रों को उज्ज्वल और प्रतिभाशाली बनाने में मदद करता है। विद्यालय के लिए वास्तु शास्त्र में उनका उपयोग करने और नकारात्मकता से छुटकारा पाने के लिए यहां कुछ दिशा निर्देश दिए गए हैं, इन वास्तु शास्त्र में निर्धारित नियमों के अनुसार, स्कूल/ विद्यालय बनाकर उस जगह से नकारात्मकता को दूर किया जा सकता है जिससे बच्चों में कौशल और उल्लेखनीय प्रतिभा का स्वरूप विकसित होगा । विद्यालय का निर्माण वास्तु के सिंद्धांतों के अनुरूप करना चाहिए ताकि छात्र मेधावी तथा सफल हों। किंतु खेदजनक बात यह है कि आजकल इस दिशा में बहुधा इन सिद्धांतों की अनदेखी की जाती है। फलतः अच्छे परिणाम नहीं मिल पाते हैं। विद्यालय के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण वास्तु नियम इस प्रकार हैं -
🌀 विद्यालय का स्थान -
वास्तु शास्त्र के अनुसार विद्यालय के स्थान पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। यदि विद्यालय की स्थिति सही है तब सफलता आपको निश्चित रूप से प्राप्त होगी| वास्तु के अनुसार, विद्यालय, शहर के केंद्र में होना चाहिए, क्योंकि यहां पहुंचना आसान है, विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए यहाँ आना संभव है, और यह स्थान छात्रों को भी आकर्षित करता है। विद्यालय वास्तु में किसी भी नकारात्मकता से बचने के लिए स्कूल भवन के निर्माण के लिए पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण दिशाओं का उपयोग करने की सलाह देता है ।
🌀 विद्यालय का प्रवेश द्वार -
प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तरी दिशा में होना चाहिए, चाहे वह विद्यालय हो या अन्य शैक्षणिक संस्थान। इन दिशाओं से विद्यालय में प्रवेश करना आशाजनक माना जाता है। विद्यालय में भ्रम की स्थिति को रोकने और आसान आवाजाही को प्रोत्साहित करने के लिए इन दिशाओं में एक प्रवेश द्वार चुनें।
🌀 प्रधानाचार्य कक्ष -
वास्तु अनुसार प्रधानाचार्य का कक्ष दक्षिण या दक्षिण पश्चिम दिशा में होना चाहिए तथा कार्यालय कक्ष में उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए ।
🌀 प्रार्थना कक्ष के लिए जगह -
विद्यालय में हमेशा एक प्रार्थना कक्ष होता है जहां सभी छात्र इकट्ठा होते हैं और प्रार्थना के साथ अपने दिन की शुरुआत करते हैं। उत्तर पूर्व दिशा में निर्मित विद्यालय प्रार्थना कक्ष, बच्चों के लिए पूर्ण लाभ और बेहतर केंद्रित होने के लिए उत्तम स्थान हो सकता है।
🌀 स्वागत कक्ष का स्थान -
विद्यालय में स्वागत कक्ष/रिशेप्सन बहुत जरूरी है। यहाँ पर शिक्षा, नामांकन, पाठ्यक्रम, शिक्षकों और कक्षाओं से संबंधित सभी सवालों के जवाब दिए जाते हैं। वास्तु के अनुसार, मुख्य प्रवेश द्वार के बाद स्वागत कक्ष को जल्द से जल्द आगुंतकों के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए आसान बनाने के लिए वास्तु के अनुसार इसका निर्माण किया जाना चाहिए।
🌀 बैठक कक्ष -
विद्यालय में बैठक कक्ष भवन के उत्तरी भाग में स्थित होना चाहिए
🌀 कक्षाओं का स्थान -
बिना कक्षाओं वाला कोई विद्यालय नहीं होता है। कक्षाएं, जहां छात्र बैठते हैं और सीखते हैं, विशेष रूप से छात्रों के लिए बनाए जाते हैं। कक्षाओं का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए और बैठने की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि छात्रों का मुख कक्षा के पूर्व या उत्तर की ओर हो।
🌀 कक्षाओं का रंग -
वास्तु अनुसार विद्यालयों में कक्षाओं के लिए सबसे उपयुक्त रंग हल्के पीला, सफेद, क्रीम रंग, हल्के हरे रंग प्रमुख होते है क्योंकि यह शुद्ध रंग माने जाते हैं। हरा रंग बुध ग्रह का प्रतीक है। जो सीखने और लिखने को प्रोत्साहित करता है।
🌀शिक्षक कक्ष -
वास्तु अनुसार विद्यालय में शिक्षक कक्ष यानी स्टाफ रूम उत्तर पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
🌀 हवा का आवागमन -बिना हवा के आवागमन के, क्या आप एक जगह बैठ सकते हैं? क्या आप बिना खिड़कियों वाली जगह में इतने बच्चों के साथ पढ़ सकते हैं? नहीं ! कमरे में हवा का आवागमन बहुत जरूरी है। आप इसके लिए खिड़कियां बना सकते हैं और हवा के आवागमन का इस्तेमाल कर सकते हैं। खिड़कियां पूर्व या उत्तरी दिशा में बनानी चाहिए। आप उस दिशा में छत पर निकास पंखा भी टांग सकते हैं। खिड़कियां खुली रखें और कमरे में हवा और धूप आने दें, जिससे अच्छी ऊर्जा और सकारात्मकता फैलती है।
🌀 विद्युत उपकरण -
स्कूल में कई विद्युत उपकरण होते हैं, जैसे जनरेटर, इनवर्टर, म्यूजिक सिस्टम आदि किसी भी दुर्घटना को रोकने के लिए दक्षिण-पूर्व दिशा में जनरेटर और बिजली के मीटर लगाए जाने चाहिए।
🌀 शौचालय की व्यवस्था -
विद्यालय के प्रत्येक तल पर शौचालय होते हैं। एक स्कूल में बहुत सारे छात्र होते हैं, जिसका अर्थ है कि विभिन्न मंजिलों पर शौचालय होना जरूरी है। वास्तु के अनुसार शौचालय पूर्वोत्तर खंड में स्थापित किया जाना चाहिए।
🌀 रसोई और जलपान स्थान -
स्कूल में छात्रों और शिक्षकों के लिए रसोई और जल-पान क्षेत्र होते हैं। जल-पान क्षेत्र और रसोई का उपयुक्त स्थान दक्षिण-पूर्व दिशा में होता है, और खाना परोसने के लिए पूर्व की ओर मुख करके करना चाहिए। यह दिशाएँ तृप्ति को बढ़ावा देते हैं, लाभ देते हैं और संतुष्टि प्रदान करती हैं।
🌀 शासन प्रबंध खंड स्थान -
शासन प्रबंध खंड वह स्थान होता है जहां हिसाब किताब का पूरा विभाग काम करता है। जो बजट और अनुमान में योगदान देता है। वास्तु के हिसाब से, उत्तर या पूर्व दिशा में प्रशासनिक खंड का निर्माण और वित्त विभाग को एक साथ बनाना सबसे सुरक्षित होता है। यह निर्देश वित्त को ठीक रखते हैं और खर्चों को नियंत्रित करने और आय को दोगुना करने में मदद करते हैं।
🌀 छात्रों के खेल का मैदान -
खेल के मैदान के बिना,कोई विद्यालय अच्छी तरह से काम नहीं कर सकता है। यह वह क्षेत्र है जहां छात्र खेलते हैं,तनाव से छुटकारा पाते हैं और अपने अत्यधिक संसाधनों का बेहतर उपयोग करते हैं। पूर्व,उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में खेल के मैदान का निर्माण बच्चों को सफल होने और उनके कौशल को बढ़ाने के लिए सशक्त बनाता है। सभी खेलों और बच्चों के लिए,आप समूह में काम करने वाली खेल भावना और नेतृत्व कौशल को बढ़ावा देने के लिए एक छोटा भंडार गृह भी बना सकते हैं।
इन नियमों के अतिरित विद्यालय की भूमि वर्गाकार या आयताकार होनी चाहिए। उत्तर-दक्षिण के चुंबकीय ध्रुव भूमि की लंबाई के समानांतर होने चाहिए। दिशा विद्यालय निर्माण में दिशा का विश्लेषण अति आवश्यक है। विद्यालय पूर्वाभिमुख होना चाहिए अर्थात् उसका मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए क्योंकि पूर्व दिशा से ही सूर्य निकलता है जो ज्ञान रूपी प्रकाश देकर अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करता है। उत्तर दिशा भी विद्यालय के लिए उपयुक्त होती है। पूर्व व उत्तरमुखी विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थी योग्य व बुद्धिमान होते हैं। ऐसे विद्यालयों का शैक्षणिक स्तर अच्छा और परीक्षाओं के परिणाम प्रशंसनीय होते हैं। मुख्य इमारत विद्यालय की भूमि के र्नैत्य कोण की ओर बननी चाहिए। मुख्य इमारत की ऊंचाई र्नैत्य में अधिक व ईशान में कम होनी चाहिए। विद्यालय की चारदीवारी की ऊंचाई भी दक्षिण-पश्चिम दिशा में अधिक व पूर्व-उत्तर दिशा की ओर कम होनी चाहिए। संपूर्ण विद्यालय की भूमि व छत की ढलान पूर्व व उत्तर दिशा की ओर होनी चाहिए मुख्य द्वार विद्यालय का मुख्य द्वार पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। पश्चिम दिशा का द्वार मध्यम फलदायी और दक्षिण दिशा का अशुभ होता है। मुख्य द्वार हमेशा साफ-सुथरा रहना चाहिए। मुख्य द्वार की ऊंचाई चैड़ाई से दोगुनी होनी चाहिए। मुख्य द्वार के सामने कोई वेध नहीं होना चाहिए। जल व्यवस्था उद्यान, फव्वारे, तरणताल, भूमिगत टैंक आदि विद्यालय के भूखंड के ईशानकोण की तरफ होने चाहिए। ओवरहेड पानी का टैंक इमारत के दक्षिण-र्नैत्य की ओर होना चाहिए। विद्यार्थियों के जल पीने की व्यवस्था मुख्य इमारत के पूर्व या उत्तर दिशा की ओर की जा सकती है। बिजली उपकरण आदि जेनरेटर, मीटर, मेनस्विच, फ्यूज आदि की व्यवस्था अग्निकोण की तरफ होनी चाहिए। आपात स्थिति से बचने के लिए अग्निशामक उपकरणों की भी उचित व्यवस्था अग्निकोण में ही होनी चाहिए। शौचालय व प्रसाधन शौचालय विद्यालय के भूखंड के वायव्य-पश्चिम की ओर होना चाहिए। प्रसाधन व सुविधाकक्ष उत्तर-पश्चिम या पश्चिम में बनवाने चाहिए। शौचालय या प्रसाधन कक्ष का प्रयोग करते समय विद्यार्थी का मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। स्वागतकक्ष के प्रवेश द्वार की बनावट ऐसी हो कि आगंतुक का प्रवेश पूर्व या उत्तर की तरफ से हो। स्वागतकक्ष में रिसेप्शनिस्ट की डेस्क व कुर्सी की सजावट ऐसी हो कि उसका मुख पूर्व या उत्तर की ओर हो। प्रधानाध्यापक कक्ष प्रधानाध्यापक का कक्ष मुख्य इमारत के र्नैत्यकोण की ओर हो तथा प्रधानाध्यापक की कुर्सी के पीछे कोई दरवाजा या खिड़की नहीं होनी चाहिए। प्रधानाध्यापक की उपाधियों, पुरस्कारों आदि को दक्षिण दिशा में स्थान देना चाहिए। कक्षा विद्या के कारक ग्रह गुरु का वास ईशान कोण में होता है, अतः कक्षाओं का निर्माण विद्यालय की मुख्य इमारत के पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की तरफ होना चाहिए। यदि कक्षाएं उत्तर की ओर ही बनवानी हों तो उनका द्वार पूर्वमुखी होना चाहिए। कक्षा में विद्यार्थियों के बैठने की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि उनका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो अर्थात् ब्लैकबोर्ड पूर्व या उत्तर की दीवार पर लगाना चाहिए। कक्षा में किसी आदर्श व्यक्ति, राष्ट्रपुरुष या धर्म गुरु का चित्र लगाना चाहिए। यदि रसोई की व्यवस्था हो तो यह शिक्षक कक्ष के अग्निकोण की ओर होनी चाहिए। पुस्तकालय का निर्माण विद्यालय की मुख्य इमारत के ईशान कोण की तरफ होना चाहिए। पुस्तकालय में बैठने की व्यवस्था इस प्रकार से होनी चाहिए कि अध्यन करते समय छात्र का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रहे। पुस्तकों का संग्रह पश्चिम व दक्षिण की दीवारों पर होना चाहिए। पुस्तकालय प्रमुख की कुर्सी पुस्तकालय के दक्षिण-पश्चिम की ओर होनी चाहिए। प्रयोगशाला मुख्य इमारत के अग्निकोण की ओर बनानी चाहिए। प्रयोग करते समय विद्यार्थियों का मुख पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। प्रयोगशाला प्रमुख का मुख समझाते समय उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। वाहन स्थल वाहन स्थल के लिए विद्यालय वायव्य या अग्निकोण उपयुक्त होता है। सभी वाहनों को कतारबद्ध खड़े करना चाहिए। सभागार सभा स्थल विद्यालय के उत्तर-पश्चिम या पश्चिम की ओर होना चाहिए। सभागार के पश्चिम में मंच होना चाहिए। संगीत की व्यवस्था सभागार के वायव्य कोण की ओर की जा सकती है। अन्य विद्यालय के सम्मुख कोई अन्य ऊंची इमारत नहीं होनी चाहिए। विवाह समारोह आदि विद्यालय के अंदर नहीं होने चाहिए। विद्यालय का निर्माण सरस्वती को अर्पित करना चाहिए न कि लक्ष्मी को, क्योंकि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी अवश्य वास करती हैं।
🙏 ॐ सरस्वत्यै नमः