🚩दीपावली ३१ अक्टूबर या १ नवम्बर?🚩
ज्योतिष के श्रेष्ठ एवं प्राचीन ग्रन्थ सूर्यसिद्धांत जो मयाचार्य द्वारा प्रतिपादित है। इसका ज्ञान सूर्यरूपी सविता देव हैं जो गायत्री मंत्र के देवता हैं उनसे मयाचार्य (मयदानव) ने घोर तपस्या करके प्राप्त किया था। यह सूर्यसिद्धांतिय ज्योतिष गणित ब्रह्मज्ञान रूपी है। जिसके आधार पर भूपृष्ठिय गणित की गणना के आधार पर सनातनी महान पर्व 'दीपावली' कार्तिक मास की अमावस्या तिथि जो ३१ अक्टूबर के दिन है अर्थात यही तिथि दीपावली हेतु शास्त्रसम्मत है। अपितु, अमावस्या तिथि ३१ को सूर्य उदय से प्रारंभ नहीं हो रही है परन्तु, अमावस्या का संबंध मुख्यरूप से रात्रि से सबंधित है।
भगवान श्री रामचंद्र जी जब लंकापति रावण पर विजय प्राप्त करके पुनः वर्षों पश्चात अयोध्या लौटे तब अयोध्या वासियों ने उनका स्वागत दीपों की अवली (श्रृंखला) सजाकर किया। अर्थात वह पर्व एक महान पर्व के रूप में 'दीपावली' के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
निम्न एक प्रमाण इससे संबंधित आप सभी के समक्ष रख रहा हूं निर्णय आप स्वयं करिए;
*दीपोत्सवस्य वेलायां प्रतिपद् दृश्यते यदि ।*
*सा तिथिर्विबुधैस्त्याज्या यथा नारी रजस्वला ॥*
- (काशीनाथ भट्टाचार्य रचित शीघ्रबोध)
अर्थात - यदि दीपोत्सव (दीपावली) के समय प्रतिपदा (प्रथम तिथि) पड़ती है, तो वह तिथि त्याज्य (त्यागने योग्य) मानी जाती है, ठीक वैसे ही जैसे रजस्वला (मासिक धर्म से पीड़ित) नारी के निकट जाने से बचा जाता है।
अतः, इस श्लोक का अभिप्राय यह है कि दीपावली पर प्रतिपदा तिथि जो अमावस्य के बाद आती है जिसके उस दिन आने पर उसे शुभ नहीं माना गया है और उसे त्याग देने का संकेत दिया गया है। अर्थात १ नवम्बर के दिन प्रतिपदा तिथि भी पड़ रही है अर्थात ये तिथि दीपावली के लिए त्यागने योग्य है। इसका अर्थ ये हुआ कि ३१ अक्टूबर ही दीपावली ही शास्त्र सम्मत है।
३१ अक्टूबर को अपराह्न १४:३९:१२ बजे से १ नव⋅ २०२४ ई⋅ को १६:४०:०४ बजे तक तिथि ३१ अर्थात् कृष्णपक्ष−१५ है । अमावस्या १ नव⋅ २०२४ ई⋅ को १६:४०:०४ बजे है,जबकि सूर्यास्त उसके पश्चात १७:१२:५६ बजे है । सूर्यास्त के पश्चात तीन घटी अथवा ७२ मिनटों तक प्रदोष है जिसमें प्रतिपदा है,अमावस्या नहीं । अतः १ नव⋅ को दीपावली नहीं है। १ नवम्बर को अमावस्या की रात्रि नहीं मिल रही है अपितु, ३१ अक्टूबर को पूरी रात्रि अमावस्या में है। दीपों का पर्व दीपावली में अमावस्या की रात्रि में ही जलाने का महत्व है। इसलिए १ नवम्बर की अपेक्षा दीपावली ३१ अक्टूबर को मनाना श्रेयस्कर(कल्याणदायक)भी है और शास्त्रसम्मत भी है। अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानो में पूजा पाठ १ नवम्बर को प्रातःकाल में किया जा सकता है परन्तु, अपने अपने गृह आदि में दीप जलाने एवं लक्ष्मीपूजन के लिए ३१ अक्टूबर ही शास्त्रसम्मत है। इसका प्रमाण वाचस्पति तारानाथ भट्टाचार्य के ग्रंथ 'वाचस्पत्यम' में निम्नलिखित है ;
अमावस्या यदा रात्रौ दिवा भागे चतुर्दशी।
पूजनीया तदा लक्ष्मी विज्ञेया सुखरात्रिका।। (वाचस्पत्यम)
अर्थात - जब अमावस्या की तिथि रात में हो और दिन के भाग में चतुर्दशी हो, तब उस दिन की पूजा करनी चाहिए। ऐसी तिथि में लक्ष्मी की पूजा करने से वह सुख और समृद्धि प्रदान करने वाली रात्रि मानी जाती है।
ऊपर बताया गया संयोग ३१ अक्टूबर के दिन पड़ रहा है इसलिए इसी दिन दीपों का पर्व दीपावली एवं लक्ष्मीपूजन करना कल्याण एवं समृद्धिदायक होगा।
वेद के छ: अंगों में श्रेष्ठ वेदांग ज्योतिष जिसे परमात्मा की आँखे कहीं गई हैं उस वेदांग ज्योतिष में तीन प्रकार की गणनाएँ होती हैं - भूपृष्टिय, भूकेंद्रीय एवं भूगर्भीय हैं।
निम्न इन तीनों प्रकार की गणनाओं की विवेचना है ;
भूपृष्टिय (Topocentric): इसमें गणना पृथ्वी की सतह के किसी विशेष बिंदु (जैसे, किसी व्यक्ति के जन्म स्थान) से की जाती है। इस दृष्टिकोण में ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति उस स्थान से देखी जाती है, जहाँ पर व्यक्ति या घटना घटित होती है। यह स्थानीय स्तर की गणना के लिए उपयोगी होता है, जैसे कि कुंडली या जन्मपत्री बनाते समय एवं पृथ्वीवासियों (भूवासियों) के लिए विभिन्न पर्व त्यौहारों के गणना एवं उसपर निर्णय के लिए परंपरागत रूप से उपयोग सनातनी परंपरागत ज्योतिष शास्त्र में प्राचीन काल से मुख्य रूप से प्रयोग होता आया है।
भूकेंद्रीय (Geocentric): इस दृष्टिकोण में गणना पृथ्वी को केंद्र में रखकर की जाती है। इसका मतलब यह है कि सभी ग्रहों और नक्षत्रों को पृथ्वी से देखे जाने वाले कोण के आधार पर मापा जाता है। परंपरागत भारतीय ज्योतिष में इस दृष्टिकोण का भी उपयोग होता है, क्योंकि इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि ग्रहों का पृथ्वी पर कैसे प्रभाव पड़ता है। नासा या इसरो आदि के अतंरिक्ष यान इसी गणना के आधार पर प्रक्षेपित किये जाते हैं। इसमें गणना भू अर्थात पृथ्वी के एक मुख्य केंद्र के आधार पर किया जाता है।
भूगर्भीय (Heliocentric): इस दृष्टिकोण में गणना सूर्य को केंद्र में रखकर की जाती है। आधुनिक खगोलशास्त्र और विज्ञान में यही दृष्टिकोण मान्य है, क्योंकि पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। हालाँकि, ज्योतिष में इसका उपयोग कम ही होता है, क्योंकि ज्योतिषीय गणनाएँ सामान्यत: पृथ्वी से देखी गई स्थिति के आधार पर की जाती हैं।
इन तीनों दृष्टिकोणों का उपयोग अलग-अलग संदर्भों में होता है। ज्योतिष में प्रायः भूकेंद्रीय और भूपृष्टिय दृष्टिकोण अधिक प्रचलित हैं, क्योंकि ये पृथ्वी पर रहने वाले व्यक्ति के जीवन और घटनाओं पर ग्रहों के प्रभाव का आकलन करने में सहायक होते हैं।
जिस प्रकार सूर्योदय एवं सूर्यास्त पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर अलग अलग होता है लोगों की जन्म कुंडलियों के साथ-साथ विभिन्न पर्व त्योहारों का निर्णय भी उस स्थान के रेखांश और अक्षांश के आधार पर होता है। जिससे कुंडलिया एवं पर्व त्यौहारों का निर्णय सही आधार पर होता है। भूकेंद्रीय गणना में भू अर्थात पृथ्वी का एक ही मुख्यकेंद्र होता है। इसके आधार पर लोगों की कुंडलियां एवं व्रत त्यौहारों की गणना की जाए तो लगभग एक समान ही होंगे। जो वैज्ञानिक भी नहीं हैं तथा शास्त्रसम्मत भी नहीं है।
१ नवम्बर के दिन दीपावली का खंडन अखिल भारतीय विद्वत परिषद ने भी किया है जिसके महासचिव आदरणीय आचार्य कामेश्वर उपाध्याय जी हैं। आप एक ज्योतिष के श्रेष्ठ विद्वान के साथ-साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष भी रहे हैं। भारतवर्ष के श्रेष्ठ मनीषी एवं ज्योतिष विद्वान प्राचीन सूर्यसिद्धांत के ज्ञाता बाल ब्रह्मचारी आचार्य विनय झा गुरुजी है जिन्होंने भी १ नवंबर के दिन दीपावली का खंडन किया है। आप सभी लोगों को यह जानकारी के लिए बता दूं कि आदरणीय आचार्य विनय झा गुरुजी भारत के लगभग १५ पंचांगों के गणितज्ञ भी हैं जो प्राचीन सूर्यसिद्धांतिय गणित के आधार पर उन पंचांगों में व्रत पर्व आदि के निर्णय देते हैं।
उपर्युक्त, सभी शास्त्रीय, तार्किक एवं ज्योतिष के विद्वानों के मतों आधार पर भूपृष्ठिय गणित की गणना पृथ्वी पर रहने वाले पृथ्वी वासियों से संबंधित है। उसके आधार पर सनातनी महान पर्व 'दीपावली' कार्तिक मास की अमावस्या तिथि जो ३१ अक्टूबर के दिन है अर्थात यही तिथि दीपावली हेतु शास्त्रसम्मत है।
- पं. संतोष आचार्य
(नोट - मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं ना ही बहुत बड़ा विद्वान हूँ।परंतु, सनातनी मनीषीयों विद्वानों के लेखों से जो पढ़ा जाना और जो शास्त्रसम्मत लगा वो संकलित किया एवं स्वयं के कुछ अनुसंधान से यह लेख आप लोगों को समर्पित है। )