यह तो बहुत ही सरल प्रश्न है, लेकिन मैं पूछ क्यों रहा हूँ? तो चलिए इसका कारण समझते हैं कि यह अत्यंत सोचनीय और दयनीय स्थिति हो गई है हमारे समाज की कि वह इसका उत्तर भी गलत देते हैं। कल ही मैं यू ट्युब पर श्री नीरज अत्री जी का जीवंत प्रसारण देख रहा था, उन्होंने यही प्रश्न अपने दर्शकों / श्रोताओं से किया तो जो उत्तर मिले वह सुनकर माथा पीटने का मन करता है। उत्तर इस प्रकार से थे, जमीन के लिए, राज्य के लिए, धन के लिए, द्रोपदी के कारण, शकुनि के कारण, दो परिवारों के पारिवारिक क्लेश के कारण, आदि – आदि। यह दर्शक श्रोता मेरे अनुमान से 30 से अधिक आयु के ही होंगे क्योंकि युवा पीढ़ी सिर्फ रील, ओटीटी आदि में व्यस्त है। यदि वह भी होते तो सम्भवत: पूछते कौन सा युद्ध, किसके बीच हुआ था? एक ने भी उत्तर नहीं दिया कि यह धर्म और अधर्म के बीच का युद्ध था, अधर्म के नाश के लिए युद्ध था। शेष अन्य कारण तो सहायक तत्व थे। लेकिन यह हुआ क्यों? किसी को भी सही उत्तर क्यों नहीं मिला?
आज घरों में गीता, रामायण, रामचरित मानस जैसे ग्रंथ नहीं हैं, माता पिता भी बच्चों को बाबा ब्लैक शीप, ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार, टाटा बाय बाय आदि सिखाते हैं। जैसे ही घर में अतिथि घर के द्वार पर आता है बच्चा उसे टाटा बाय बाय कर देता है। हमारे माता पिता रामायण और महाभारत के प्रसंग सुनाते थे। पाठशाला में भी गुरुजन पढाते समय रामायण, गीता व महाभारत के प्रसंग सुना देते थे। पाठ्यक्रम में भी अधिक नहीं तो सरसरा परिचय तो होता ही था। लेकिन आज हमारे धर्म और सस्कृति के विषय में NCERT की पुस्तकों में क्या पढाया जा रहा है उसके पृष्ठ का एक चित्र संलग्न है। हमारे धर्म में पित्रसत्तात्मक सत्ता है, मात्र सत्ता नहीं है। धन सम्पत्ति पिता से पुत्र को प्राप्त होती है पुत्री को नहीं। जबकि हमारे यहाँ पुत्री को विवाह में चल सम्पत्ति देने का प्रचलन है जिसे दहेज कह दिया गया। कुछ लालची लोगों ने दहेज के लिए प्रताड़ित करना भी प्रारम्भ किया, इससे दहेज प्रथा जो अच्छी प्रथा थी, पुत्री को अचल सम्पत्ति में अधिकार देती थी वह कलंकित हो गई। मनुस्मृति में लिखा है:
तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः। भूतिकामैर्नरैर्नित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च॥3.59॥
इसलिये स्त्रियों को हमेशा भूषण, वसन और भोजन से सन्तुष्ट करना चाहिये। समृद्धि की इच्छा वाले पुरुषों को नित्य मंगलकार्य उत्सवों में स्त्रियों को भूषण से सन्तुष्ट रखना चाहिये।
स्त्रियां तु रोचमानायां सर्वं तद्रोचते कुलम्। तस्या त्वरोचमानायां सर्वमेव न रोचते॥3.62॥
अलंकारादि से युक्त प्रसन्नचित्त स्त्री से सारा कुल दीप्तियुक् हो जाता है। यदि स्त्री असन्तुष्ट हो तो सारा कुल मलिन हो जाता है।
इसके ठीक विपरीत विद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है। सीधी, मध्यप्रदेश में 12,000 वर्ष पूर्व की एक मंदिर के दबे हुए अवशेषों माँ के देवी स्वरूप की मूर्ती पुरातत्व विभाग को खनन में प्रात हुई है। आस पास के गांवों में जाकर देखने में मिला कि उसी प्रकार की मूर्तियाँ उनके घरों में भी देवी माँ के रूप में विराजमान हैं। अंत में सरकार से अनुरोध है कि शिक्षा विभाग तुरंत ही कार्यवाही करे और NCERT की पुस्तकों द्वारा हमारे सनातन धर्म का अपमान करने वाले पाठों को हटाए।
इसके अतिरिक्त एक स्वघोषित आचार्य भी हैं जो प्रवचन देता है नाम है प्रशांत वह बता रहा है कि भगवान श्री कृष्ण ने तो युद्ध करने की बात ही नहीं करी। ऐसे कथित आचार्यों का बहिष्कार करना चाहिए और हमें इसके विरुद्ध जन जागरण अभियान चलाना चाहिए। अगले लेख तक के लिए जय श्री राम! जय हिंद!
साभार : इंद्रेश उनियाल