यह एक बांग्लादेशी हिन्दू बच्चा है। जिसे अपने घर के बाहर फेंक दिया गया है और अंदर उसकी माँ का आर्तनाद सुनाई पड़ रहा है, उसका बलात्कार हो रहा है और शायद उसकी हत्या भी हो गई होगी। यह बच्चा यदि गाजा की सड़कों पर होता तो आज विश्व मीडिया का आवरण चित्र बना होता।
भारत की उस भूमि पर जिसे अखण्ड भारत कहते हैं आज से नहीं ईस्वी सन् 712 से ऐसा ही हो रहा है। इसी बर्बरता से बचने के लिए जौहर और सती प्रथा का प्रचलन हुआ।
आज के ये भौंडे बुद्धिजीवी अपने पाश्चात्य और वामपंथी मानस पिताओं के पदचिन्हों पर चलते हुए जिसे हिन्दू समाज की दुर्गुणों के रूप में चित्रित करते हैं वे दुर्गुण नहीं थे, बल्कि अपनी अस्मिता और आत्मसम्मान को बचाने के लिए किया गया महान प्रयत्न था।
अभी कुछ दिनों पूर्व सोशल मीडिया पर एक पोस्ट प्रसारित हो रही थी, जिसका प्रसारण तथाकथित राष्ट्रवादी भी कर रहे थे कि कोई महिला सती कैसे होती थी। उसमें बताया गया था कि पति की मृत्यु के बाद उस महिला को खूब नशा पिलाया जाता था और जब वे नशे में प्रमत्त होकर सुध-बुध खो बैठती थी तब उसे चिता पर बैठा दिया जाता था और वह सती हो जाती थी।
यह दुर्भाग्य है कि आज हिन्दू पशु की तरह जीवन जी रहा है। न उसे अपने अतीत का बोध है और न भविष्य की चिन्ता। सामने जो भौतिक संसाधनों का चारा पड़ा है उसे ही चरने में वह मस्त है। अपनी-अपनी दुकानें सजी हुई हैं और ग्राहकों को अपने सुविधा के अनुकूल बनाने का प्रयास हो रहा है, उन्हें जो कुछ याद है उसे भी भुलवाया जा रहा है। वे मुहम्मद गोरी, गजनी और अलाउद्दीन, औरंगजेब को याद कर सकेंगे, उन्हें कश्मीर, केरल, बंगाल तो छोड़िए, उन्हें तो वह दिल्ली भी याद नहीं है जहाँ अभी चार-पांच वर्ष पहले हिन्दुओं को सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर मारा गया था और पैसठ लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी।
जिस समाज के विचार और स्मृति पर पहरा बैठा दिया जाता है उस समाज को समाप्त करने के लिए कुछ करना नहीं पड़ता वह स्वतः समाप्त हो जाता है।( सनद रहे, यहां हिन्दू सम्बोधन में जैन, बौद्ध, वैदिक, शैव, वैष्णव व सिख सभी शामिल हैं)

