मां सीता के बारह दिव्य नामों का वर्णन
श्रीललीजी के ये बारह नाम मनोवाञ्छित सिद्धिको प्रदान करने वाले हैं।
मैथिली जानकी सीता वैदेही जनकात्मजा ।कृपापियूषजलधिः प्रियार्हा रामवल्लभा ॥
सुनायानासुता विर्यशुल्काऽयोनी रसोद्भवा ।
द्वादशैतानि नामानि वाञ्छितार्थप्रदानि हि ॥
(श्रीजानकी-चरितामृतम्)
(१) मैथिली - सर्वोच्च देवी जो महाराज मिथि के वंश की मुकुटमणि के रूप में प्रकट हुईं।
(2) जानकी - जो वात्सल्य रस की पूर्ति के लिए महाराज जनक के यज्ञ-क्षेत्र की भूमि से उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुईं।
(3) सीता - जो अपने आश्रितों के सभी दुखों का नाश करती हैं तथा सभी प्राणियों का परम कल्याण करती हैं, जिन्हें वेदों ने सभी लोकों में सभी की परम प्रिय देवी तथा श्री राम की सनातन पत्नी तथा स्वयं सुखदायी शक्ति कहा है।
(क) ‘सूयते (चराचरं जगत्) इति सीता’ - जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति करती है, उसे ‘सीता’ कहते हैं। यहाँ सीता शब्द ‘शूङ् प्राणिप्रसवे’ सूत्र से बना है।
(ख) ‘सवती इति सीता’ अर्थात् जो ऐश्वर्ययुक्त हैं, जो श्रेष्ठता तथा ऐश्वर्य से युक्त हैं, उन्हें ‘सीता’ कहते हैं। यहाँ सीता शब्द ‘शू प्रसवऐश्वर्ययोः’ सूत्र से बना है। जो ऐश्वर्य से युक्त है, वह दूसरों का भरण-पोषण, पालन तथा रक्षा कर सकता है, इसलिए सीता सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की पालनकर्ता, पालक तथा रक्षक है, वह सभी के लिए आश्रय (ऐश्वर्य शक्ति) है।
(ग) 'स्याति इति सीता' अर्थात् जो संहार करती है - जो (सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का) नाश करती है अथवा जीवों के समस्त दुःखों का नाश करती है, उसे 'सीता' कहते हैं। यहाँ सीता शब्द 'शोऽन्त कर्मणि' सूत्र से बना है। इसका अर्थ है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का नाश करने वाली तथा जीवों के समस्त दुःखों (संहार-शक्ति तथा कृपा-शक्ति) को दूर करने वाली।
(घ) 'सुवति इति सीता' अर्थात् जो सत्प्रेरणा देती हैं - जो प्रेरणा देती है, इसलिए उसे 'सीता' कहते हैं। यहाँ सीता शब्द 'षु प्रेरणा' सूत्र से बना है। वह अपने प्रभु में दीन-दुखियों के प्रति ईश्वरीय करुणा तथा प्रेम तथा पापियों पर ईश्वरीय दया जगाने में तथा हमें परम प्रभु श्री राम की शरण में जाने के लिए सर्वोत्तम मार्ग पर प्रेरित करने में सबसे अधिक निपुण है। सीता जीवों को परिष्कृत बुद्धि देकर प्रेरणा देती हैं और इस प्रकार वे सभी प्रकार से जीवों का कल्याण करती हैं।
(ई) ‘‘सिनौति इति सीता’’ अर्थात् जो बाँधनेवाली - जो बाँधती है, उसे ‘सीता’ कहते हैं। यहाँ सीता शब्द ‘शिञ् बन्धने’ सूत्र से बना है। जो श्री राम को अपने प्रेम में बाँधती है, वह ‘सीता’ (आह्लादिनी-शक्ति) है और जो श्री राम और जीवों के बीच महासेतु (मध्यस्थ) के रूप में बाँधती है, वह ‘सीता’ है।
वह अपने सौन्दर्य और अनन्त माधुर्य से अपने प्रभु को वश में करती है, अपनी दया से जीवों को परिवर्तित करती है और अपने सौन्दर्य और माधुर्य से परम स्वतंत्र प्रभु श्री राम को परिवर्तित करती है। इस प्रकार सीता श्री राम की आह्लादिनी-स्वरूपा-शक्ति है और अपने प्रभु से लेकर सभी जीवों तक समस्त ब्रह्माण्ड की इष्ट-देवी है।
(४) वैदेही - सभी देवियों में श्रेष्ठ, जो अपने प्रिय भगवान श्री राम के विचारों में लीन होने के कारण अपने शरीर की सुध भूल जाती हैं।
(५) जनकात्मजा - जिसने महाराज सीरध्वज जनक की आत्मजा (अपने पिता अर्थात पुत्री की आत्मा से उत्पन्न होने वाली) होने का भाव स्वीकार किया।
(६) कृपापीयूष-जलधि (कृपापीयूषजलधिः) जो अपनी कृपा (दया) बरसाती हैं, जो आत्मा की तृप्ति के लिए प्रचुरता का सागर और अमृत के समान है।
(७) प्रियार्हा - जो प्रियतम श्री राम के सर्वथा अनुकूल है और प्रियतम श्री राम भी सब प्रकार से उसके समान हैं - रूप, लावण्य, आयु, शुभ लक्षण, स्वभाव और आचरण आदि में।
(8) रामवल्लभ (रामवल्लभा) जो श्री राघवेंद्र सरकार के सबसे प्रिय हैं।
(९) सुनयनासुता (सुनयनासुता) जो अपनी माता महारानी सुनयना के स्नेह की भावना से सुख और आनंद को बढ़ाती हैं।
(१०) वीर्यशुल्का (वीर्यशुल्का) भगवान शिव के पौराणिक धनुष को तोड़ने वाली वह कन्या है जिसे वधू के रूप में प्राप्त किया गया था
(११) अयोनि (अयोनि) जिनका प्रकट होना किसी अन्य अस्तित्व (कारण) से नहीं है, बल्कि जो अपने भक्तों पर स्नेह और उनकी भक्ति की पूर्ति के लिए स्वयं की इच्छा से प्रकट होती हैं।
(12) रसोद्भव (रसोद्भव) जो माँ के गर्भ से जन्म लेने के बजाय, पृथ्वी से प्रकट हुई और जन्म से ही अपना दिव्य स्वरूप दिखाया।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीव लोचनम् l जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितत्म् ll