महाभारत युद्ध के बाद पांडवों में जीत की खुशी थी और वे इसी खुशी में झूमते हुए शायद बहादुरी की प्रशंसा पाने हेतु इस महाभारत युद्ध को शुरुआत से अंत तक देखे महाबली बर्बरीक के सर के पास पहुंचे और उनसे पूछा :
हे महाबली बर्बरीक...!
आपने तो इस महाभारत के युद्ध को शुरुआत से अंत तक देखा है.
तो, पूरे युद्ध को देखने के बाद आप हमें अपना निष्कर्ष दो कि... इस महाभारत युद्ध में सबसे बहादुर कौन था ??
और, महाभारत का युद्ध किसके कारण जीता गया ??
क्या वे सर्वश्रष्ठ धनुर्धारी अर्जुन रहे, गदाधारी भीम रहे या फिर धर्मपरायण युधिष्ठिर रहे ???
ये प्रश्न सुनकर महाबली बर्बरीक आश्चर्यचकित होते हुए पूछा : कौन अर्जुन , कौन भीम और कौन युधिष्ठिर ???
मुझे तो इस युद्ध में हर तरफ वासुदेव ही वासुदेव नजर आ रहे थे.
और, बर्बरीक ही क्यों ???
कमोबेश यही बात... गंगापुत्र भीष्म ने भी महाभारत युद्ध के पश्चात अपने अंतिम समय में कहा था कि ये युद्ध अर्जुन, भीम या युधिष्ठिर ने लड़ा ही नहीं बल्कि ये युद्ध तो श्रीकृष्ण लड़ रहे थे...!
जबकि, मजे की बात है कि.... भले ही दोनों महाबलियों ने महाभारत युद्ध के जीत का क्रेडिट श्रीकृष्ण को दे रहे हों..
लेकिन, सच्चाई तो यही थी कि... महाभारत युद्ध के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों के पक्ष से एक मच्छर तक नहीं मारा था.
मच्छर मारना तो छोड़ो... युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण ने तो सबका साथ-सबका विकास की बात करते हुए अपनी सर्वश्रेष्ठ एक अक्षौहिणी नारायणी सेना (शस्त्रों से सुसज्जित) दुर्योधन को दे दी थी जिसके बारे कहा जाता था कि वो सेना कभी किसी से युद्ध नहीं हारती है.
लेकिन, महाभारत का परिणाम क्या हुआ... ये हम सब जानते हैं.
और फिर, महाभारत युद्ध ही क्यों ... अपने बाल्यकाल में ही मल्लयुद्ध में पारंगत कंस को यमलोक पहुंचाने वाले श्री कृष्ण ने जरासंध मामले में खुद से लड़ने नहीं गए बल्कि उन्होंने भीम को आगे किया..!
इस मामले में टिप्पणी करने वाले ये भी टिप्पणी कर सकते हैं कि श्री कृष्ण ... जरासंध से डरते थे इसीलिए उन्होंने खुद लड़ने की जगह भीम को लड़वाया.
लेकिन, जब आप महाभारत पढ़ेंगे तो आपको समझ आएगा कि वास्तव में महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण की क्या भूमिका थी और हमेशा सबका साथ-सबका विकास की पीपनी बजाने के बाद भी क्यों महाभारत काल के हर योद्धा एवं विशेषज्ञ उस जीत को भगवान श्री कृष्ण की ही जीत बता रहे थे ???
समझने के लिए लिए सिर्फ इतना हिंट काफी है कि.... क्या भगवान श्री कृष्ण के सलाह के बिना जरासंध का वध संभव था ??
और , सिर्फ जरासंध ही क्यों ???
क्या भगवान श्री कृष्ण के रणनीति के बिना... गंगा पुत्र भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कर्ण या फिर महाबली बर्बरीक का अंत संभव था ????
ध्यान रहे कि.... महाभारत काल में गंगा पुत्र भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कर्ण, महाबली बर्बरीक या फिर अश्वस्थामा ऐसे योद्धा थे.... जो अकेले दम पर युद्ध का रुख बदल देने में सक्षम थे...
बिल्कुल, आज के बड़के कोठा, अल्पसंख्यक आयोग, इंटरनेशनल मीडिया आदि की तरह.
इसीलिए, दुर्योधन को निपटाने से पहले रणनीति के तौर पर प्राथमिकता में उन लोगों को निपटाया गया जो इस तरह की क्षमता रखते थे.
और, यही बात महाबली बर्बरीक एवं भीष्म भी समझ रहे थे इसीलिए उन्होंने इस पूरे महाभारत का क्रेडिट श्री कृष्ण के अलावे किसी अन्य को नहीं दिया.
कहने का मतलब है कि.... हमारे धर्मग्रंथ स्पष्ट रूप से हमें यह बताते हैं कि युद्ध में लाठी चलाने से ज्यादा महत्वपूर्ण युद्ध की रणनीति होती है.
और, दुर्योधन को मारने से पहले उसमें अड़चन बन सकने वाले हर बाधाओं को येन-केन-प्रकारेण दूर करना पड़ता है...
तभी, युद्ध में जीत की गारंटी बन पाती है.
इसीलिए, जो भी मित्र इस बात से कुपित एवं अग्रेसिव रहते हैं कि 10 साल तो हो गए...
इन 10 सालों में उन्होंने जान नहीं मारा तो कोई बात नहीं..
उस दुर्योधनवा के सौ भाई में दू-चारो गो को लाठी भी काहे नहीं मारा ???
उन्हें एक बार महाभारत जरूर पढ़नी चाहिए कि.... जब चारों तरफ से दबाव हो और सामने एक सौ कौरव की तुलना में पांडव सिर्फ पांच ही हों तो युद्ध कैसे लड़ा जाता है..
तथा, कैसे जीता जाता है .
जय श्री कृष्ण...!!
जय महाकाल...!!!