अधीर रंजन वे मुस्लिम बहुल बेहरामपुर से 25 साल तक सांसद रहे, उन्हें मुस्लिम वोट मिलते थे।वे भाजपा और हिन्दुत्व के खिलाफ बोलते थे ।अपने आप को सेकुलर का सूरमा समझते थे । #काफिर पहली बार टीएमसी ने उनके खिलाफ गुजरात से एक मुस्लिम उम्मीदवार यूसुफ पठान को मैदान में उतारा और मुसलमानों ने यूसुफ को वोट दिया, जबकि वह बंगाली नहीं थे, बंगाली नहीं जानते थे, बंगाल में कभी रहे ही नहीं। वैसे अधीर रंजन का हाल तक नहीं पूंछा कांग्रेस ने हारने के बाद.... हारा आदमी कांग्रेस के लिए बेकार
उन्होंने मुस्लिम उम्मीदवार के लिए धर्मनिरपेक्ष अधीर बाबू को छोड़ने से पहले एक बार भी नहीं सोचा.. यह है धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) की सच्चाई है। एक बार जब वे बहुमत में आ जाते हैं, तो वे उन सभी हिंदुओं को छोड़ देते हैं जिन्हें पहले अपना नेता हितैषी मानते थे ।उनका विजन साफ है।मूर्ख हिंदू कब समझेंगे ।
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और दूसरी तरफ़ आप अयोध्या देख लीजिए 👀 अब नए नए बहाने सुना रहे है कुछ लोग अयोध्या में भाजपा के हारने की