गूढ़ योगी,योग का छिपा हुआ सत्य ….
हमारे शरीर के अन्दर स्नायुतंत्र वह संस्थान है जिनसे गति, भाव या चेतना की अनुभूति होती है, इसे सम्बन्ध में विशिष्ट अध्ययन हम इस प्रकार कर सकते हैं।
१. संवेदनिक नाड़ियां
२. सौषुम्न या मस्तिष्क मेरूदण्ड सम्बन्धी नाड़ियां
सांवेदनिक नाड़ियों से पोषण संस्थान, रक्तवाहिनियों संस्थान के अवयव (Organs) एवं ग्रंथियों को स्नायु प्राप्त होते हैं। ये सौषुम्न नाड़ियों से मिली हुई होती है। इनके दो भाग होते हैं जो कि कशेरूकाओं के दोनों ओर लगे होते हैं। प्रत्येक भाग में गुच्छे सदृश स्नायु हैं। इन गुच्छों को नाड़ी गण्ड (Gangliza) कहते है। नाड़ी या स्नायु सूत्र के सिरे जो नाड़ी गण्ड से मिले होते हैं। उन्हें नाड़ी जाल या स्नायु जाल (Plexuses) कहते हैं।
सौषुम्न नाड़ी संस्थान इस प्रकार है :
१. मस्तिष्क – बृहत्त मस्तिष्क (Cerebrum) लघु मस्तिष्क (Cereleellum)
२. मस्तिष्क सेतु (Pons Verdii)
३. सुषुम्ना
४. नाड़ी धर, नाड़ी सूत्र, नाड़ी-पुच्छ
वृहत मस्तिष्क (Cerebrum)- यह दो भागों में बंटा होता है। दोनों भागों के बीच एक दरार (Sagital fissures) होती है। इस दरार के द्वारा मस्तिष्क जिन दो भागों में बंटता है उन्हें मस्तिष्क गोलार्ध (Cer- ebral hemispheres) कहते हैं। ये दोनों गोलार्ध दायें और बायें ओर अवस्थित होते हैं, दायीं ओर वाले को दायीं गोलार्ध (Right hemi- sphere) और बायीं ओर वाले को बायीं गोलार्ध (Left hemisphere) कहते हैं। दोनों गोलार्ध दो भागों में मात्र ऊपर से विभक्त होते हैं, दोनों के निम्न भाग मिले ही होते हैं उसे महा संयोजक कहते हैं। अंग्रेजी में यह कोर्पस कैलोजम (Corpus Callosum) नाम से जाना जाता है।
वृहतः मस्तिष्क का आन्तरिक भाग मटमैले रंग के पदार्थ से निर्मित होते हैं जो लहरदार होते हैं, अर्थात कहीं गहराई तो कहीं उभार होते हैं, उभरे भाग को क्राक (Convolution) कहते हैं। इसका भीतरी भाग सफेद पदार्थ (white matter) से बना होता है दूसरे अंश को बल्क (Graymatter or cortex) कहते हैं। मस्तिष्क का बारी भाग कोशिकाओं (Cells) के द्वारा निर्मित होता है, जबकि आन्तरिक भाग नाड़ी तन्तुओं (Nervous Tissues) से। प्रत्येक गोलार्ध का निम्नभाग खोखला होता है। दोनों गोलार्धो के बीच में एक पत्ला सा पदार्थ होता है जिसके अन्दर कुछ तरह सदृश होता है।
लघु मस्तिष्क (Cerebellum)
वृहत मस्तिष्क की तरह इसके भी दो भाग होते हैं। जो कि वृहत मस्तिष्क के नीचे होते हैं। इनमें अनेक सीतायें (Sulenses) होती हैं जोकि अपेक्षाकृत गहरे होते हैं इसके तीन भाग हैं। ऊपर के दोनों भाग दो गोलार्ध (Hemispheres) और निचले भाग को मध्यांश (Vernis) कहते है। इनके बीच में एक डण्टलनुमा रचना होती है जिसे कार्पस डेन्टेटम (Corpus dentatum) कहते हैं। ये तीन स्तम्भों से युक्त होते हैं।
मस्तिष्क सेतु (Pons verolli) यह लघु मस्तिष्क के सामने का एक घुमा हुआ (Curved) भाग है। जिसका रंग सफेद है। यहीं से सुषुम्ना, लघु मस्तिष्क और वृहत मस्तिष्क की ओर जाने वाली नाड़ियां निकली हैं। सेतु के नीचे छोटे-छोटे दो गोल रचनायें होती हैं। जिन्हें मैमिलेयर (Mammillare) कहते हैं। उसके सामने एक पिण्ड होता है। जिसे वृहत पिण्ड (Hiphosis) फिर दृष्टि योजिका (Optec chisam) और उसके वादघ्राण पथ (Medeela oblongata) है।
सुषुम्ना : यह सुई के सदृश, लगभग एक इंच सिरा ऊपर की ओर बढ़ा होता है। यह कहीं मोटा होता है तो कहीं पतला। ऊपरी भाग सफेद पर भीतरी भाग मटमैला होता है। इसके मध्य में एक छिद्र है। छिद्र में एक नली होती है। यह नली मस्तिष्क के चतुर्थ कोष्टक (Fourth Chamleer) से जाकर मिलती है। इस नली का दूसरा हिस्सा मेरूदण्ड की प्रणाली में होता है।
मेरूदण्ड (Spinal Cord) मेरूमज्जा - यह एक से डेढ फुट लम्बी होती है। पूरे मेरूदण्ड में छिद्र रहते हैं, इससे ३१ (इकतीस) जोड़े नाड़ियां निकलती हैं बाह्य भाग धूसर रंग के पदार्थ से और भीतरी भाग सफेद रंग के पदार्थ (White matter) से बना है। मध्य में सौषुम्न पथ है।
वृहत मस्तिष्क, सेतु सुषुम्ना और मेरूदण्ड पर झिल्लियां होती हैं, जिसके तीन परत होती हैं, बाहरी आवरण परत को मस्तिष्क ब्राह्यावरण (Duramater) कहते हैं। इसका अस्थिगत्रावरण से सम्बन्धं होता है। मध्यावरण को मस्तिष्क मध्यावरण (Archnoid) कहते हैं। सबसे भीतरी आवरण को मस्तिष्क अन्तर आवरण कहते हैं। यह अंग्रेजी में पायामेटर नाम से जाना जाता है। इनमें रक्त वाहिनियों का जाल सा होता है जिसके द्वारा एकएक कोशिका तक रक्त का संचार होता है।
नाड़ी या स्नायु (Nerves) – स्नायु तंत्र शरीर के एक एक कोशिका से जुड़ी होती है। मस्तिष्क से विभिन्न अंगों तक सम्वाद या सूचना पहुंचाने का काम यह स्नायुतंत्र ही सम्पादित करता है इसे हम निम्न रूप से अध्ययन कर सकते हैं।
मस्तिष्क नाड़ियां (Cranial nerves) – ये वो नाड़ियां हैं जो लघु मस्तिष्क के भीतरी पटल से निकलती हैं संख्या में दो जोड़े हैं प्रत्येक पार्श्व में एक-एक।
सौषुम्न नाड़ियां (Spinal nerves) - मेरूदण्ड या सुषुम्ना के
दोनों पार्श्वों से जो नाड़ियों के ३१ (इकतीस) जोड़े निकलते हैं उन्हें सौषुम्न नाड़ियां कहते हैं।
(i) घ्राणं नाड़ियां (Olfactory nerves) इससे घ्राण शक्ति (सूंघने का ज्ञान) प्राप्त होता है।
(ii) दृष्टि नाड़ियां (Optec nerves) यह चक्षुगोलक में प्रवेश कर भीतरी पटल (Ratina) पर फैलती है इससे हम देखने की शक्ति प्राप्त करते हैं।
(iii) नेत्र चालिनी नाड़ियां (Oculo-motor nerves) इनके सहारे हम चक्षु गोलकों को ऊपर नीचे बायें-दायें संचालित करने में सक्षम होते हैं।
(iv) नेत्रचालिनी द्वितीया (Trachlaear) इसके द्वारा आंखों की पलकें हम ऊपर उठा पाते हैं।
(v) त्रिशाखा नाड़ी (Trigeminal nerves) इसके सहारे निचला जबड़ा, मुंह, नाक, जीभ का दो तिहाई भाग, चेहरा आदि में हम गति पैदा करते हैं या इन अंगों की संवेदना अनुभव करते हैं, निचले जबड़े को संचालित कर दांतों, के सहारे किसी चीज को जो चबाते या काटते हैं उस समय यही नाड़ी कार्य करती है।
(vi) छठा जोड़ा (Abducens) इसके सहारे चक्षु गोलक को मात्र ऊपर की ओर उठाते हैं।
(vii) मौखिकी नाड़ियां (Facial nerves) इससे खोपडी और चेहरे की पेशियों में गति शक्ति प्राप्त होती है।
(viii) श्रावणी नाड़ी (Auditory nerves) इससे सुनने की शक्ति प्राप्त होती है।
(ix) जिह्वा कण्ठ नाड़ियां (Glasso pharyngeal nerves) इससे कण्ड की पेशियों में संचालन की क्षमता एवं जिह्वा से स्वाद ज्ञान की क्षमता प्राप्त होती है।
(x) दशवी नाड़ियां (Pneumogastric nerves) इनके सहारे स्वर यंत्र टेटुआ, फेफड़ा, आमाशय पाक्वाशय, यकृत आदि का सम्बन्ध होता है।
(xi) एकादशी नाड़ियां (Spinal accessory) यह पीठ एवं गर्दन की पेशियों को गति देती है।
(xii) जिह्वाधोवर्ती नाड़ी (Hypoglossal) इससे जिह्वा की मांसपेशियों में गति होती है।
सौषुम्न नाड़ियां – सुषुम्ना से निकलने वाली नाड़ियां जो इकतीस जोड़े निकलते हैं वे सर्वांग शरीर में फैले हैं। जो नाड़ियां जिन दो भागों में जुड़ी हैं उन्हें पूर्व मूल (Anterior) और पिछले को पाश्चात्य मूल (Posterior) कहते हैं। सौषुम्न नाड़ियां निम्न प्रकार से हैं :-
कण्ड देशीय-८, गुदास्थि में १, और त्रिकास्थि स्थानीय-५, कटि स्थानीय-५, वक्ष देशीय-१२ आदि।