आजकल ऐसे कई मामले देखने मिल रहे हैं जहां बेटी अन्य समाज या मजहब में शादी कर लेती है और दिए परिवार जीवित बेटी का पिंडदान कर अपने आप को दूध का धुला सिद्ध करता है लेकिन विचारणीय बात ये है की आखिर गलती किसकी है ..? लड़की की या उन मां बाप की जो अपनी बच्ची को उचित धर्म ज्ञान और संस्कार देने का अपना कर्तव्य नहीं निभा सके।
आजकल लोग खासकर हिदू समाज के लोग बच्चे पैदा करते हैं 4 - 5 महीने में ही बच्चों को मोबाइल दिखाकर चुप करवाने का अपराध करते हैं, फिर 3 साल की उम्र में ही बच्चों को बेबी सिटिंग में भेजकर किसी और के हवाले कर देते हैं और फिर उन्हें बड़े बड़े स्कूलों में (कुछ तो कॉन्वेंट में भेजते है) भेजकर समझते हैं की हमने बच्चों को अच्छी परवरिश दे दी। लेकिन जो उनका वास्तविक कर्तव्य है अपने बच्चों को धर्म ज्ञान और संस्कार देना, उन्हें समाज की वास्तविकता से अवगत कराना, राक्षसी प्रवृति के लोगों से सतर्क करना और आत्मरक्षा के गुण सिखाना ये सब तो वो करते ही नहीं और फिर जब बच्चे गलत करते हैं तो उनके माथे आप आरोप मढ़कर या कुछ तो उनके पिंडदान की नौटंकी करके अपने आप को बिलकुल साफ सुथरा बताने का प्रयास करते हैं.... ऐसे निर्लज्ज मक्कारों पर थू है..... आक थू