कल एक जैन परिवार की शादी में ,प्रीतिभोज में जाना हुआ , स्वागत गेट में गुलाब के फूल ,मैंगो शेक,ड्राइफूट के साथ स्वागत हुआ अंदर मैदान में अद्भुत नजारा था। आर्केस्ट्रा की स्वर लहरी चारो तरफ गुंजायमान थी ।
इवेंट मैनेजमेंट का फंडा चारो तरफ बिखरा हुआ दिख रहा है। दूल्हा और दुल्हन को गेट से ही मंच तक लेकर जाने की अदभुत तैय्यारी भी रथ व नाचने गाने वालो को पूरी टीम तैयार थी जो वर वधु को लेकर बीच मैदान में ले जाकर वरमाला करवाकर स्टेज में ले गया ।
हम सब तो थके मांदे भूख से व्याकुल लोग थे जो पहुंच गए स्टार्टर की ओर पर उसी बीच एक दूसरे और तेज हो हल्ला सुनाई देने लगी, मैं भी गुपचुप का दोना रख उस और हो लिया।
वहा तो अलग ही नजारा था। चक सफेद धोती कुर्ता और कंधे में क्रीम कलर का साफी डाले लगभग 65 साल का बुजुर्ग पर उनका आवाज युवाओं से भी तेज ,लड़की वाले व केट्ररर्स को चमका रहा था और बार बार कह रहा था हम सब खाना नही खायेगे,या तो आप ये मेनू की जो सूची लिखे बोर्ड है उसे फेके या फिर भोजन को फेके ? हम सब ये खाना नही खायेगे ।
हम शादी में आए है निकाह में नहीं।
मेरी भी नजर अचानक खाने के स्टाल पर पड़ी ,जहा लिखा था #वेज_बिरयानी_हरा_भरा_कबाब_वेज_कोरमा_कबाब_वेज_हांडी_बिरयानी,।
बुजुर्ग तमतमाया हुआ था, बात बात में कहता था बिरयानी व कबाब किसे कहते है, मुझे समझाओ फिर ही हम सब भोजन करेगे और अपने इस बहस में मुझे भी शामिल कर लिया की बताइए भाईजी क्या ऐसा लिखना उचित है।
मांस के उपयोग से बने भोजन को ही बिरयानी व कबाब कहते है ,क्या हमे इस जगह पर ऐसे हालात में भोजन करना चाहिए ।मेरे और अनायास दादा के प्रश्न पर मैं भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।
एक तरफ केट्ररर्स की गलती ,समाज में चल रहे अंधाधुन पश्चात्य संस्कृति के ढल रहे लोग,और दूसरी ओर हाथ जोड़े अनुनय करते खड़े लड़की के परिवार वाले? और सबके बीच धर्म, संस्कृति व भोजन के तरीके पर अड़े दादाजी,जो अपनी जगह बिल्कुल सही थे अब उनके स्वर और तीखे हो गए कहने लगे बताओ मैं विवाह में आया हूं की निकाह में ?
बाते बढ़ते देख मैंने व वहाँ पर खड़े दो तीन मित्रो ने मिलकर केटरर्स को चिल्लाकर स्टाल से सारे स्टीगर निकाल फेके जिसमे बिरयानी व कबाब जैसे शब्द लिखे थे, तब दादाजी का गुस्सा शांत हुआ और फिर उन्होंने भोजन ग्रहण करने की हामी भरी वो भी बैठकर, ।
दादा जी की बाते वहा पर उपस्थित सभी लोगो को एक सीख दे गई की मांसाहारी भोजन के लिए ही कबाब व बिरयानी जैसे शब्द प्रयोग किया जाता है ।और खाना नही हमे भोजन करना चाहिए । केटरर्स जो भी लिखे उसे हमे भी एक बार मेन्यू तय करते समय अपनी समाज एवम संस्कृति के हिसाब से देख भी लेना चाहिए।ज़्यादातर लोग बिना जानकारी के ही कर लेते हैं हम सब यदि सोच समझकर इस दिशा में आगे बढ़ेंगे तो बदलाव लाया जा सकता है…
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*बिरयानी का मतलब होता है सब्ज़ियों एंव मांस का मिश्रण
*कवाब एक फ़ारसी शब्द है जिसका मतलब होता है पका हुआ मांस
*कोरमा मतलब भुना हुआ मांस
अब आप खुद सोचें भारतीय व्यंजन के नाम के साथ इनको जोड़ना ठीक है…?जब नाम ये होगा तो हम किस मानसिकता का खाना खाते हैं…
विरोध करिये अभी तो हमारी पकड़ में है नहीं तो वास्तव में निकाह में ही जाओगे और मांसाहारी खाना खाओगे…नई पीढ़ी वेज भूल जाएगी और मांसाहारी बन जाएगी क्यूँकि हम यही तो दे रहे हैं…?
कैटर्स को रोकिये ये नाम देने के लिये…होटल व रेस्टोरेंट में विरोध प्रकट कीजिए…
आपकी एक छोटी सी पहल समाज को एक कुरीति से बचाएगी…
आप भी करिये, मैं भी करता हूँ।