कानून, न्यायव्यस्था ये सब ऐसे होते जा रहे हैं की लोगों को इनके काम से ही झटके लग रहे हैं, लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है... ना जाने किस स्तर पर कैसे कार्य हो रहा है.? 6 वर्ष की मासूम जिसका जीवन अपनी हवस की प्यास बुझाने का लिए एक जेहादी ने छीन ली उसके लिए मानवता उमड़ रही है मिलोर्ड के दिल में और फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दे रहे हैं... ऐसे फैसलों से us बच्चे के परिवार का क्या हाल होगा जब पूरा देश ये फैंसला सुनकर सदमे में आ गया है... ऐसे फैंसले देने वालों पाए जांच होनी चाहिए
मानो आजकल जजों की स्पर्धा चल रही हैं, कोई निबंध लिखवाकर जमानत दे देता हैं,तो कोई पांच नमाजी करने वाले की सजा कम कर देता हैं और तो और कोई चुनाव प्रचार के लिए जमानत दे देता हैं , कुछ तो 1000 पेज कौन पढ़ेगा बोलकर जमानत दे रहा है..
आपके आसपास बहुत सारे छोटे बच्चे होंगे। उनमें से शायद कोई 4-5 साल की बच्ची भी हो। इस बच्ची को गौर से देखिएगा। उसकी मासूमियत देखिएगा। उसकी बातें सुनिएगा। उसकी तुतलाती आवाज में उसे बड़े होकर क्या बनना है, क्या करना है सब सुनिएगा। फिर ओडिशा का एक मामला सोचिएगा। एक ऐसा मामला जो आपको भीतर तक झकझोर दे और आप समझ पाएँ कि इस बच्ची के सपने पूरे होने के लिए कितना जरूरी है कि उसे आसिफ अली जैसों से बचाकर रख जाए।
बात साल 2014 की है। दोपहर के 2 बजे एक 6 साल की छोटी बच्ची अपने एक कजन के साथ पास की चॉकलेट की दुकान पर चॉकलेट लेने गई। घरवालों को लगा दुकान पास है तो दोनों बच्चे जल्दी आ जाएँगे, लेकिन देखते ही देखते घड़ी में 3 बजने लगे। परिवार के लोग चिंतित हो गए। उन्होंने बच्ची को ढूँढना शुरू किया। आसपास लोगों को पता चला तो वो भी निकले। इसी छानबीन में ग्रामीणों को बच्ची का शव अचेत अवस्था में मिला। साथ ही उसके नाभि पर नोचने के निशान थे, पीठ पर नाखून लगे थे और जांघ से लेकर घुटनों तक खून बह रहा था। परिजनों ने उसे देखा तो दौड़कर अस्पताल लेकर गए। डॉक्टरों ने उसकी हालत देखी तो फौरन उसे एससीबी मेडिकल कॉलेज भेजा। परिजन इस उम्मीद में थे कि वहाँ के डॉक्टर बच्ची को देखेंगे तो शायद उनकी बेटी आँख खोल लेगी। लेकिन हुआ ऐसा कुछ नहीं।
डॉक्टरों ने उसे देखा और मृत घोषित कर दिया। परिवार डॉक्टरों की बात सुन सन्न था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि घर से चॉकलेट लेने निकली बिटिया के साथ आखिर ये क्या हो गया। तब तक डॉक्टर ने उन्हें बताया कि किसी ने उनकी बच्ची के साथ दुष्कर्म करके उसका गला दबाकर उसे मार डाला है। परिवार रोता-रोता बेटी का शव लेकर गाँव आ गया। मामले में शिकायत दी गई। पुलिस भी सक्रिय हुई।
बच्ची के कजन से पूछताछ हुई तब उसने डरते हुए बताया कि जब वो दोनों चॉकलेट लेकर आ रहे थे उस समय किसी ने बहन का मुँह दबाकर उसे उठा लिया था। बाद में वह उसे लेकर अपने साथ चला गया। सारे बिंदु जानने के बाद ये साफ था कि बच्ची का दुष्कर्म हुआ है। थाने में दर्ज एफआईआर में धारा 376(ए), 376(2)(f)(g) जोड़ी गई। साथ ही पॉक्सो की धारा 6 भी केस में लगाई गई। पुलिस ने जाँच के दौरान 21 अगस्त 2014 की रात टीम को सबूत जुटाने भेजा। इस दौरान एक अकील अल्ली भी गिरफ्तार हुआ। उसे वहाँ से मेडिकल ऑफिसर के पास भेजा गया और अगली सुबह घटनास्थल की जाँच के दौरान बच्ची के अंडर गार्मेंट, तौलिया, सिगरेट, चप्पल, 40 दारू की बोतल, सोने की ईयरिंग आदि चीजें मिलीं। सबकी फॉरेंसिक जाँच हुई। शराब की बोतल से तीन तरह के फिंगल प्रिंट मिले। प्यूबिक हेयर मिले और सीमन के सैंपल मिले।
जाँच के बाद अकील को कोर्ट में पेश किया गया और बाकी दोनों आरोपितों की तलाश भी शुरू हुई। बड़ी मशक्कत के बाद 5 सितंबर 2014 को आबिद और आसिफ अली को पकड़ा। कुल मिलाकर इस मामले में 21 अक्तूबर को जो चार्जशीट दाखिल की गई उसमें आबिद अली, आसिफ अली और अकील अली का नाम था।
बच्ची के कजन ने भी कन्फर्म किया कि अकील अली ने ही बच्ची का मुँह पकड़ा था जबकि आसिफ उसे उठाकर लेकर गया था। इसके बाद उसके साथ रेप किया हुआ। सबूतों के अभाव में आबिद अली को उसी समय छोड़ दिया गया जबकि बाकियों को आईपीसी की दारा 302,376-ए, डी और पॉक्सो की धारा 6 के तहत दोषी बनाया गया और इनको सजाए-ए-मौत मुकर्रर हुई।
समय बीता और फिर इन आरोपितों ने अपनी रिहाई के लिए कोर्ट में फिर गुहार लगाई। इस बार मामला ओडिशा हाई कोर्ट में सुना गया। हाई कोर्ट ने मामले में सुनवाई के दौरान पाया कि आरोपित आसिफ अली का जेल में बर्ताव पिछले 10 साल में काफी अच्छा रहा है। कोर्ट ने कहा कि 10 साल जेल में रहने के दौरान आसिफ ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे जेल के स्टाफ को दिक्कत का सामना करना पड़ा हो इसलिए उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदला जाता है। वहीं कोर्ट ने दूसरे आरोपित अकील अली को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
जजो ने इस दौरान जो कहा वो हैरान करने वाला है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि अदालत ने इस दौरान हैरान करने वाली टिप्पणी की। जैसे एक जगह कहा गया “वह एक पारिवारिक व्यक्ति है और उसकी 63 साल की बूढ़ी माँ और दो अविवाहित बहनें हैं। वह अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था और मुंबई में पेंटर का काम करता था। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है।”
इसके अलावा कहा गया “स्कूल में उसका चरित्र और आचरण अच्छा था और उसने वर्ष 2010 में मैट्रिक पास किया था। परिवार में आर्थिक समस्याओं के कारण वह अपनी उच्च शिक्षा जारी नहीं रख सका। वह अपनी किशोरावस्था के दौरान क्रिकेट और फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी था। यद्यपि वह लगभग दस वर्षों से न्यायिक हिरासत में है, जेल अधीक्षक और मनोचिकित्सक की रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि जेल के अंदर उसका आचरण और व्यवहार सामान्य है, सह-कैदियों के साथ-साथ कर्मचारियों के प्रति उसका व्यवहार सौहार्दपूर्ण है और वह जेल प्रशासन के हर अनुशासन का पालन कर रहा है।”
रिपोर्ट्स के अनुसार, हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अपने फैसले में दोषी की सजा कम करते हुए कहा, “वह दिन में कई बार अल्लाह से दुआ करता है। वह दंड स्वीकार करने को भी तैयार है क्योंकि उसने अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस अपराध को ‘दुर्लभतम’ की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए, जिसमें सिर्फ मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है।”
अब आसिफ अली की सजा कम होने के बाद जो कोई इस बारे में सुन रहा वो इस निर्णय पर तमाम तरह के सवाल उठा रहा है, जोकि उठाना जायज भी हैं। लोगों की भावनाओं को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि 5-6 साल की बच्ची को देख उसकी मासूमियत बने रहने की हर कोई प्रार्थना करता है। कोई सोचना भी नहीं चाहता है कि बच्चियोंं को रास्ते में कभी कोई आसिफ जैसे हैवान मिलें। जैसे 2014 में उस बच्ची को आसिफ के रूप में मिला।
सोचकर देखिए, आसिफ अली भले ही 10 साल से जेल में रहते हुए अच्छा व्यवहार कर रहा हो, अपने नमाज पढ़ने से लोगों को ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा हो या शायद उसकी बातों में मिठास आ गई हो… लेकिन क्या इन सब बदलावों का अर्थ ये है कि इस बात को भुला दिया जाए कि उसने किया क्या था। 10 साल का समय बहुत लंबा समय होता है। सजा मिलने के बाद एहसास होना और व्यवहार में बदलाव आना सामान्य है। मगर ये सोचकर कानूनी रूप से किसी को रिहा किया जाना उस परिवार के लिए पीड़ादायक है जिन्होंने अपनी बच्ची खो दी सिर्फ इसलिए क्योंकि 10 साल पहले आसिफ के भीतर ये ईमान नहीं था। ये सच कोई नहीं बदल सकता कि मामले में दोषियों ने हैवान बनकर उस बच्ची को नोचा था। आज उनका हृदयपरिवर्तन होने से गुनाह कम नहीं होते। जैसे आसिफ के लिए ये 10 साल का समय बीता है वैसा उस परिवार के लिए भी तो बीता है। आज अगर वो मासूम होती तो वो भी 15-16 साल की होती। अपनी किशोवस्था में अपने सपने पूरा करने के लिए कुछ न कुछ कर रही होती। हो सकता है वो भी नमाज पढ़ती, सबसे अच्छे से व्यवहार करती… क्या उस बच्ची के होने के मायने कुछ नहीं होते।
जय श्री राम
ReplyDeleteJai shree Ram 🙏
ReplyDeleteVery dangerous part of dirty society our declaration per 3 inch cut of crime of rapiest unnatural constitution .what is rule regulations crime is very Pick sky.not for solutions of justice judgement.
ReplyDeleteजय हिन्द जय भारत वंदेमातरम हिंदू राष्ट्र की जय
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