प्रधानमंत्री मोदी जुलाई में रूस जाने वाले हैं। इसकी जानकारी अमेरिका को हुई तो अमेरिकन विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कल भारत पर दबाब डालने के लिए उपदेश दिया कि भारत में मिनियारिटी को परेशान किया जाता है, भारत में हेट स्पीच है, भारत में धर्म परिवर्तन की स्वतंत्रता नहीं है, धर्म परिवर्तन करने वालों को जिला मजिस्ट्रेट के सामने बताना पड़ता है कि वह क्यों धर्म परिवर्तन कर रहा है, इत्यादि इत्यादि.
दरअसल अमेरिका चाहता है कि मोदी रूस न जावें, रूस के साथ छोटे परमाणु रिएक्टर का समझौता न करें, रूस से स्टील फैक्ट्रियों के लिए कोयला न मंगावें, तेल खरीदने के लिए रूस को रुपए में जो भुगतान किया गया है उस रुपए को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने की मंजूरी न दी जाए, आदि आदि.
प्रमुख रूप से... भारत के सुखोई 30 एम के आई को सुपर सुखोई में बदलने के लिए रूस जो नया इंजन देगा उसका भारत में पूर्ण तकनीकी स्थानांतरण के साथ एच ए एल में उत्पादन शुरू न किया जाए, अमेरिका यह भी चाहता है कि "आत्म निर्भर भारत" के एजेंडे को भारत छोड़ दे.
सुविज्ञ है लोकसभा चुनाव में अमेरिकन और कुछ यूरोपियन देशों की खुफिया एजेंसियों और मीडिया के एक वर्ग ने भारत की मोदी सरकार को उखाड़ने या पुनः वापिस न आने देने के लिएं भरपूर प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
मोदी 3 मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री वही पुराने लोग हैं जो पहले थे, अर्थात भारत की न तो विदेश नीति बदलेगी, न रक्षा नीति और न ही अर्थ नीति. यह सब देखते हुए ही अमेरिका नया #टूल इस्तेमाल करते हुए भारत को झुकाने के लिए नया दबाब डाल रहा है.
हालांकि भारत रूस-चीन और उत्तरी कोरिया के नए सैन्य गठबंधन में शामिल नहीं होगा,, लेकिन रूस और भारत का जो नया लाजिस्टिकल समझौता होने की संभावना है, उससे रूस और भारत की प्रगाढ़ दोस्ती बनते देखकर और दोनों के लिए बहुत हितकार मानकर अमेरिका उसे नहीं होने देना चाहता है.