▪️भारत का आयुर्वेद अत्यंत प्राचीन है. भारत की आयुर्वेद चिकित्सा पद्धतियां विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति में से एक है।
महर्षि सुश्रुत ने 2600 साल पहले “सुश्रुत संहिता” के नाम से एक चिकित्सा ग्रंथ लिखा है, सुश्रुत संहिता के अनुसार सुश्रुत प्लास्टिक सर्जरी, कृत्रिम अंग लगाना, नेत्र चिकित्सा, प्रसव कराने, मनोरोग चिकित्सा, पथरी का इलाज , टूटी हड्डियों का पता लगाने और उन्हें जोड़ने आदि में भलि भांति दक्ष थे तथा कई तरह की मुश्किल सर्जरी को पूरा किया था.
◾डिलिवरी से लेकर मोतियाबिंद का ऑपरेशन
महर्षि सुश्रुत ने 2600 साल पहले प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई कठिन सर्जरी को अंजाम दिया था। आधुनिक विज्ञान के अनुसार दुनिया को सर्जरी के बारे में 400 साल पहले ही पता चला था। लेकिन सुश्रुत ने यह काम कई हजार साल पहले ही कर दिया था। कहा जाता है कि सुश्रुत के पास अपने बनाए हुए यंत्र थे जिन्हें वे उबालने के बाद इस्तेमाल करते थे। 'सुश्रुत संहिता' में सर्जरी से जुड़ी काफी जानकारी है। इसमें चाकू, सुई, चिमटे के अलावा 125 से ज्यादा सर्जिकल उपकरणों के बारे में लिखा गया है। इस ग्रंथ में करीब 300 तरह की सर्जरी का उल्लेख है।
◾️सुश्रुत संहिता में 1100 बीमारियों का उल्लेख
सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के ग्यारह सौ रोगों का उल्लेख किया गया है, तथा उनके उपचार के लिए 650 प्रकार की औषधियों का भी उल्लेख किया गया है। चाहे चोट लगने पर खून बहने को रोकने की बात हो, या टूटी हड्डियों को जोड़ने की। आपको बता दें, प्राचीन भारत में कटे हुए हिस्सों को सिलने के लिए टांके की जगह चींटियों के इस्तेमाल का भी उल्लेख मिलता है, उनके जबड़े घाव को क्लिप करने का काम करते थे।
▪️सर्जरी के बाद संक्रमण को रोकने का उपाय
सुश्रुत संहिता में उल्लेख है कि प्राचीन भारत में सुश्रुत नाक की सर्जरी के दौरान व्यक्ति के गाल या माथे की त्वचा लेते थे और सर्जरी के दौरान उसका इस्तेमाल करते थे। इतना ही नहीं, सर्जरी के बाद भी विभिन्न प्रकार के संक्रमणों को रोकने के लिए सुश्रुत के पास कई प्रकार की औषधियां थीं, जिन्हें रुई की मदद से शरीर के अंग पर लपेटा और ढका जाता था।
▪️ऑस्ट्रेलिया के सर्जन महर्षि सुश्रुत के बारे में पढ़ते हैं
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में स्थित रॉयल ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ सर्जन्स (RACS) में महर्षि सुश्रुत की एक प्रतिमा स्थापित है।
महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखित 'सुश्रुत संहिता' का अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध है, जो 1907 में आया था। कॉलेज ने कहा है कि सुश्रुत ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के क्षेत्र की नींव रखी थी। 'सुश्रुत संहिता' को शल्य चिकित्सा का वेद कहा जाता है। महर्षि सुश्रुत के पास न तो आज की तरह प्रयोगशालाएँ थीं और न ही उपकरण, लेकिन अपने ज्ञान से उन्होंने कई ऐसे उपकरणों का आविष्कार किया जिससे ऑपरेशन आसानी से किए जा सकते थे।
◾️पश्चिमी देशों तक पहुंची सुश्रुत संहिता
8वीं शताब्दी में सुश्रुत संहिता का अरबी भाषा में अनुवाद होने के बाद यह पश्चिमी देशों में भी पहुंचा। l एक ब्रिटिश सर्जन जोसेफ कॉन्स्टेंटिन ने सुश्रुत संहिता से प्लास्टिक सर्जरी की प्रक्रिया को समझने के बाद करीब 20 साल तक शवों के साथ इसका अभ्यास किया और इसके बाद 1814 में उनके द्वारा किया गया ऑपरेशन भी सफल रहा।