नर्मदेश्वर लिंङ्ग जानने के लिए ऋषियों ने एक विशेष पद्धति का निर्माण किया जानिए एवं जिसे वाणलिंङ्ग भी कहते है इसकी महिमा इतनी क्यूँ है ?
सर्वप्रथम नर्मदा से प्राप्त वाणलिंङ्ग की एक अच्छे तराजू के द्वारा चावलों से तौल लीजिए। थोड़ी देर बाद उन्हीं चावलों से लिंङ्ग को पुनः तौलिये यदि कुछ चावल लिंङ्ग के वजन से बड़ जाते हैं तो उपरोक्त लिंङ्ग गृहस्थ को ऐश्वर्य देने वाला है एवं उसके लिए पूज्य है।
यदि कुछ चावल घटते हैं तो उपरोक्त वाणलिंङ्ग साधक के मन में वैराग्य के भाव का निर्माण करेगा। किन्तु शिव लिंङ्ग यदि दो या तीन बार तौलने पर भी चावल के समान वजन का ही है तो ऐसे लिंङ्ग का पूजन नहीं करना चाहिए अर्थात लिंङ्ग अभी पूर्ण रूप से स्वरुप में नहीं आया है अतः उसे पवित्र भाव से पुनः नर्मदा में विसर्जित कर देना चाहिए।
खुरदरा, केवल एक और गोल छिद्रित, चिपटा, सिर की तरफ नुकीला या टेढ़ा वाणलिंङ्ग गृहस्थ पूजन में उपयुक्त नहीं है । अत्यंत काला भौरें के समान शिव लिंङ्ग ही पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है । बादल के समान श्याम रंग एवं दूधिया धारियों से युक्त, श्वेत रंग का वाणलिंङ्ग भी पूजा के लिए उपयुक्त होता है। कमल गट्टे के बराबर या फिर जामुन के फल के बराबर वाणलिंङ्ग जो कि सोने, चाँदी, तांबे किसी धातु की पीठिका में स्थापित हों तो गृहस्थ के घर में रखकर पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है ।
नर्मदा के कंकर सब शिव शंकर, अर्थात विश्व में यही एक मात्र अमृतदायी नदी है जिसमें प्रत्येक पत्थर लिंङ्ग का आकार ले लेता है। शास्त्रों में केवल नर्मदा में जन्मे वाण लिंङ्गों की पूजा ही गृहस्थों के लिए अति फलदायी बताई गई है। इसके प्रत्येक तट पर प्रसिद्ध शिव तीर्थों का निर्माण हुआ है। ओमकारेश्वर, ममलेश्वर ज्योतिर्लिंङ्ग शूल मालेश्वर मण्डलेश्वर, सिद्धनाथ, बद्रिकानाथ व्यास, अनसुईया भ्रमुक्षेत्र, आज भी प्रसिद्ध है। हरी, हर, विधि, कुबेर, स्कंध नचिकेत, नारद, वशिष्ठ व्यास, कश्यप, गौतम, भारद्वाज, मारकण्डेय, पुरुरवा हिरण्यरेता आदि अगणित देवर्षि. महर्षि एवं राज ऋषियों ने अपने जीवन काल में नर्मदा के तट पर तपस्या के साथ-साथ इनका सेवन भी किया।
नर्मदा क्षेत्र को सम्पूर्ण तंत्रमय शिव क्षेत्र माना गया है। शिव साधकों के लिए शिव रहस्य और शिव दर्शन प्राप्त करने के लिए नर्मदा तट से बढ़कर विश्व में कोई और दिव्य स्थान नहीं है ।
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भी नर्मदा तट पर ही दीक्षा प्राप्त की थी और उन्हीं के शब्दों में नर्मदा का महत्व यह है।
सर्वतीर्थेषु यत्पुण्यं सर्वयज्ञेषु यत्फलम् ।
सर्ववेदेषु यज्ज्ञानं तत्सर्व नर्मदातटे ॥
अर्थात सम्पूर्ण तीर्थों में स्नानादि से होने वाला पुण्य तथा समस्त यज्ञों के हो चुकने पर जो फल एवं समन्त वेदाध्ययन करने पर जो ज्ञान मिलता है, वह नर्मदा जी के तट विद्यमान है। अर्थान रेवातट पर निवास करने से भोग और मोक्ष दोनों सुलभ हो जाते हैं।