तुलसी भारतमें प्रायः सर्वत्र पायी जानेवाली औषधि है। यही सभी हिन्दुओं की पूज्या भी है। इसी कारण घर- घरमें इसका पौधा लगाया जाता है और पूजा भी की जाती है। इसको हिन्दीमें तुलसी गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, तमिलनाडु और अरबमें भी तुलसीके नामसे जाना जाता है। वैसे इसे हरिप्रिया, माधवी और वृन्दाके नामसे भी जाना जाता है। इसकी ६० जातियाँ होती हैं। प्रायः चार प्रकारकी तुलसी मुख्य है-
(१) रामा तुलसी, (२) श्यामा तुलसी, (३) वन तुलसी (कठेरक) और (४) मार बबर्द।
हमारे यहाँ प्रायः यही जातियाँ प्राप्त होती हैं।
*रासायनिक गुण-* इसमें एक उड़नशील तेल पाया जाता है। जिसका औषधीय उपयोग होता है। कुछ समय रखा रहनेपर यह स्फिटिककी तरह जम जाता है। इसे तुलसी कपूर भी कहते हैं। इसमें कीनोल तथा एल्केलाइड भी पाये जाते हैं। एस्कार्बिक एसिड और केरोटिन भी पाया जाता है।
*ओषधीय गुण-* रस-कटु, तिक्त; गुण-लघु, रूक्ष; वीर्य-उष्ण; विपाक-कटुः प्रभाव- कृमिघ्न, शूलन, भूतघ्नः कर्म-कफ, वात-शामक।
मलेरिया उपचारमें इसका गिलोय नीमके साथ उपयोग किया जाता है।
जहाँ तुलसीके पौधे होते हैं, वहाँ मलेरिया के कीटाणु नहीं आते। पद्मपुराण, चरक संहिता, हारीत संहिता, योगरत्नाकर, सुश्रुत संहिता आदि ग्रन्थोंमें इसके गुणोंका वर्णन मिलता है।
*धार्मिक महत्त्व -* भगवान् शालग्राम साक्षात् नारायण-
स्वरूप हैं और तुलसीके बिना उनकी कोई पूजा सम्पन्न नहीं होती। नैवेद्य आदिके अर्पणके समय मन्त्रोच्चारण और घण्टानादके साथ तुलसीदल-समर्पण भी उपासनाका मुख्य अंग माना जाता है।
मृत्युके समय तुलसीदलयुक्त जल मरणासन्न व्यक्तिके मुखमें डाला जाता है, जिससे मरणासन्न व्यक्तिको सद्गति प्राप्त होती है।
दाह-संस्कारके समय तुलसीके काष्ठका उपयोग किया जाता है। इससे करोड़ों पापोंसे मुक्ति मिल जाती है। तुलसीके काष्ठकी माला सिद्ध माला कहलाती है, इसी प्रकार तुलसी-मञ्जरीका भी विशेष महत्त्व है।
तुलसीका पूजन वैसे तो वर्षभर किया जाता है, पर विशेष तौरपर कार्तिकमें तुलसी-विवाहकी परम्परा है। तुलसीके समीप किया गया अनुष्ठान बहुत ही फलदायक होता है।
*औषधीय उपयोग*
(१) ज्वर-तुलसीदल और काली मिर्चका काढ़ा पीनेसे ज्वरका शमन होता है।
(२) वातश्लेष्मिक ज्वर- तुलसीपत्र स्वरस ६ ग्राम, निर्गुणपत्र स्वरस ६ ग्राम, पीपर चूर्ण १ ग्राम मिलाकर पीनेसे ज्वर ठीक हो जाता है।
(३) आंत्रिक ज्वर- तुलसीदल १०, जावित्री १ ग्राम शहदके साथ मिलाकर खिलाना चाहिये २१ दिनोंतक। आंत्रिक ज्वरमें लाभ होता है।
(४) खाँसी-तुलसीके पत्ते और अड़साके पत्ते मिलाकर बराबर मात्रामें सेवन करनेसे खाँसीमें लाभ होता है।
(५) कर्णशूल - तुलसी पत्र स्वरस कानमें डालनेसे कर्णशूल शान्त होता है।
सरसोंके तेलमें तुलसी पत्र औटावे। जब पत्तियाँ जल जायँ तो छानकर रख लें।
(६) नासारोग (नाक)- नाकके अन्दर पिण्डिकामें तुलसी-पत्र बाटकर सूँघनेसे आराम होता है।
(७) नेत्र रोग- तुलसीपत्र स्वरसमें मधु मिलाकर आँखमें लगानेसे आँखमें लाभ होगा।
(८) केश रोग- तुलसीपत्र स्वरस, भृंगराज पत्र स्वरस और आँवला बारीक पीसकर मिलाकर लगानेसे बाल झड़ना बंद हो जाता है, बाल काले होते हैं।
(९) वीर्यसम्बन्धी रोग- तुलसीकी जड़को पीसकर पानमें रखकर खानेसे वीर्य पुष्ट होता है, स्तम्भन शक्ति बढ़ती है।
- तुलसी-बीज या जड़का चूर्ण पुराने गुड़के साथ मिलाकर ३ माशा प्रतिदिन दूधके साथ सेवन करनेसे पौरुष शक्तिमें वृद्धि होती है।
-तुलसी-बीजका चूर्ण पानीके साथ खानेसे स्वप्नदोष ठीक हो जाता है।
(१०) मूत्ररोग-एक पाव पानी, एक पाव दूध - मिलाकर उसमें २ तोला तुलसीपत्र स्वरस मिलाकर पीनेसे मूत्रदाह ठीक होता है।
(११) पूयमेह - तुलसीपत्र स्वरसमें मधु मिलाकर सेवन करना लाभदायक होता है।
(१२) उदररोग- तुलसी मंजरी और काला नमक मिलाकर खानेसे अजीर्ण रोगमें लाभ होता है।
-तुलसी पचाङ्गका काढ़ा पीनेसे दाँतोंमें आराम होता है।
-तुलसी एक चम्मच, अदरक स्वरस एक चम्मच मिलाकर खानेसे पेट दर्दमें आराम होता है।
-तुलसी दल २१, बायविडंगके साथ पीसकर सुबह-शाम पानीके साथ खानेसे पेटके कृमि मर जाते हैं।
(१३) आमवात - तुलसी पत्र स्वरसमें अजवायन मिलाकर खाना चाहिये।
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