जो भी "खुलासाचंद" ये कहे कि इलेक्टोरल बॉन्ड उगाई का खेल है।उससे बस इतना पूछना कि इससे पहले पार्टियां भीख मांगकर चुनाव लड़ती थी??क्योंकि कॉरपोरेट्स आज से नही बल्कि आजादी के समय से पार्टियों को पैसा दे रहे हैं। तब कैश में देते थे जो काला धन था या गोरा धन उसका पता नही चलता था, बॉन्ड्स में तो आप काला धन दे ही नही सकते थे।
चंदा मामा को तो ये चूल मचाई गयी कि तुम ये आदेश दिलवाओ कि कौन कौन दिया है ताकि किसी तरह अडानी अम्बानी का नाम आ जाये और हम राजनीति कर ये दिखा सकें कि अडानी अम्बानी मोदी के आदमी हैं।।
बस इतनी सी बात है। डोनेशन देना कोई मुद्दा ही नही है।।
और जो मीडिया इसपर ज्यादा हल्ला मचाये उससे पूछो कि तुम खुद सरकारी चंदे पर जीते हो... कहो तो उसका भी खुलासा हो जाये कि किसने तुम्हे कितना दिया हुआ है??