धर्मरक्षाका महत्त्व
आध्यात्मिक दृष्टिकोणसे
अ. ‘धर्मका विनाश खुली आंखोंसे देखनेवाला महापापी है, जबकि धर्मरक्षाके लिए प्रयास करनेवाला मुक्तिका अधिकारी बनता है’, यह धर्मवचन है ।
*आ.* जो धर्मकी रक्षा करता है, उसकी रक्षा स्वयं धर्म (ईश्वर) करता है ।
*इ.* जो ईश्वर स्वयंमें विद्यमान है, वही ईश्वर हमारे धर्मबन्धुओंमें हैं । कुछ लोग धर्माचरण और साधना द्वारा अपनेमें विद्यमान ईश्वरको प्रसन्न करते समय धर्मबन्धुओंपर होनेवाले आघातोंके समय भी उनके विषयमें संवेदनहीन रहते हैं । उनके इस आचरणसे उनमें विद्यमान ईश्वर क्या कभी प्रसन्न होंगे ?
*ई.* कोई भी कृत्य कालानुसार करनेका अत्यधिक महत्त्व है । धर्मरक्षा करना, वर्तमानमें कालानुसार आवश्यक धर्मपालन ही है । गुरुतत्त्व भी कालानुसार उचित धर्मपालन करना सिखाता है । धर्मरक्षा हेतु कौरवोंसे लडनेके कारण शिष्य अर्जुन, गुरु श्रीकृष्णका प्रिय हुआ ।
संक्षेपमें, धर्मरक्षण हेतु प्रयत्न करनेपर हमपर ईश्वरीय कृपा होती है ।
*राष्ट्रहितके दृष्टिकोणसे*
सनातन धर्म और केवल धर्म ही हिन्दुस्थानका जीवन है । जिस दिन यह नष्ट हो जाएगा, उस दिन हिन्दुस्थानका अन्त हो जाएगा । आप कितनी भी राजनीति अथवा समाजसुधार करें, भले ही कुबेरकी सम्पूर्ण सम्पत्ति इस आर्यभूमिके प्रत्येक पुत्रपर बहा दें, सबकुछ निष्फल
होगा ।’ – स्वामी विवेकानंद
*हिन्दू धर्मकी वर्तमान स्थिति*
अवतार, ऋषि-मुनि, सन्त और राजा- महाराजाओंद्वारा अनादि कालसे रक्षित विश्ववन्दनीय हिन्दू धर्म आज सर्व दिशाओंसे संकटोंसे घिरा हुआ है । धर्मद्रोही और हिन्दूद्वेषी लोग सार्वजनिकरूप से हिन्दू धर्मपर आघात कर रहे हैं । धर्मपर आघात करनेवाले अपने कट्टरपन्थी पूर्वजोंकी परम्परा आगे बढा रहे हैं । इसके अतिरिक्त, स्वयंको धर्म-निरपेक्ष, आधुनिक, विज्ञानवादी और समाजसुधारक कहलानेवाले कुछ हिन्दू भी धर्म पर आघात करने लगे हैं । हमारे पूर्वजोंद्वारा रक्षित महान हिन्दू धर्म यदि हमें बचाना है, तो प्रत्येक हिन्दूको धर्मपर हो रहे आघातोंके विषयमें समझकर उन्हें रोकनेके लिए कार्य करना चाहिए ।
*धर्मरक्षा हेतु ये करें !*
*अ.* चित्र, विज्ञापन, नाटक, सम्मेलन, समाचार-पत्र, उत्पाद आदि माध्यमोंद्वारा होनेवाला देवताओं और राष्ट्रपुरुषों का अनादर रोकें ! इसके लिए सर्वप्रथम देवताओं और राष्ट्रपुरुषोंका अनादर करनेवाले उत्पादोंका उपयोग न करें !
*आ.* देवताओंकी मूर्तियोंकी तोडफोड और देवालयोंमें चोरियां न हों, इस हेतु देवस्थानोंके न्यासी और ग्रामीणों का प्रबोधन करें !
*इ.* हिन्दुत्वनिष्ठ नेता और सन्तोंकी हत्या रोकने हेतु ‘स्वरक्षा प्रशिक्षण’ लेकर प्रतिकारक्षम बनें !
*र्इ.* हिन्दू सन्तोंको अन्यायपूर्वक बन्दी बनाए जाने तथा कारागारमें उनपर हो रहे अत्याचारोंके विरुद्ध आन्दोलन कर
*उ.* हिन्दुओंकी धार्मिक शोभायात्राओंपर (जुलूसोंपर) होनेवाले आक्रमण, गोहत्या और ‘लव जिहाद’ जैसे हिन्दूविरोधी षड्यन्त्रोंके विरुद्ध हिन्दुओंका प्रबोधन करें !
*ऊ.* ‘अन्धश्रद्धा निर्मूलन कानून’, ‘मन्दिर सरकारीकरण कानून’ जैसे धर्मविरोधी कानूनोंकी निर्मिति तथा मन्दिरोंको अनधिकृत बताकर उसे उद्ध्वस्त करनेकी शासकीय नीतियोंका वैध मार्गसे प्रतिकार करें !
*ए.* प्रलोभन दिखाकर अथवा बलपूर्वक किए जानेवाले हिन्दुओंके धर्म- परिवर्तनका विरोध करें !
*एे.* हिन्दू धर्म, देवता, धर्मग्रन्थ, सन्त और राष्ट्रपुरुषोंकी आलोचना करनेवालोंके विरुद्ध पुलिसमें परिवाद (शिकायत) लिखवाएं !
*आे.* धार्मिक तथा सामाजिक उत्सवोंमें अनुचित कृत्य (उदा. बलपूर्वक धनसंकलन, अश्लील नृत्य, महिलाओंसे छेडछाड, मद्यपान इत्यादि) न होने दें !
*धर्मरक्षा-सम्बन्धी कार्य करनेके कुछ सामान्य चरण*
*अ.* प्रबोधन : धर्महानि करनेवाले व्यक्तिका प्रबोधन कर उसे धर्महानि करनेसे परावृत्त करें !
*आ.* विरोध : प्रबोधनके उपरान्त भी धर्महानि होती रहे, तो विभिन्न मार्गोंसे विरोध करें, उदा. पत्र, ‘फैक्स’ अथवा ‘इ-मेल’ भेजें; दूरभाष करें !
*इ.* ज्ञापन : धर्महानि रोकनेके लिए शासनको ज्ञापन दें !
*ई.* धर्मभावनाओंको ठेस पहुंचानेवालोंके विरुद्ध पुलिसमें परिवाद (शिकायत) करें !
*उ.* संयत आन्दोलन : उपरोक्त प्रयत्नोंके उपरान्त भी धर्महानि जारी ही रहे, तो संयतमार्गसे आन्दोलन करें !
ऐसे विभिन्न माध्यमोंसे कर्तव्य भावसे धर्मरक्षा करनेपर हम भगवानकी कृपाके पात्र होंगे ।
राष्ट्र और धर्म रक्षा हेतु ‘सनातन संस्था’ और ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ वैध मार्गसे आन्दोलन कर रही है । उनके कार्यमें आप भी सम्मिलित होइए !
*संदर्भ :* सनातन का ग्रंथ, ‘धर्मका आचरण एवं रक्षण’