(भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् )
हम सभी जानते हैं कि 14 अगस्त 1947 को अपना अखंड भारत विभाजित हो गया और खंडित भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली।
इस विभाजन के फलस्वरूप अनेक हिंदू परिवारों की हत्या की गई। मां-बहिन बेटियों-के साथ बलात्कार ही नहीं हुए बल्कि उनके साथ अमानवीय पाशविक अत्याचार भी हुए। हिन्दुओं को अपना घर-बार छोड़कर वहां से भागना पड़ा और उन्हें भारत में आकर शरण लेनी पड़ी।
यह सब कुछ हिंदू समाज ने केवल इसलिए स्वीकार कर लिया था कि अब आजादी के पश्चात् अर्थात् मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान बन जाने के बाद बाकी बचे अपने हिंदू राष्ट्र भारत में सुख-चैन की सांस ले सकेंगे ,अपने धर्म एवं अपनी संस्कृति का पालन कर सकेंगे तथा अपने आराध्य देव की आराधना कर सकेंगे। गुलामी के प्रतीकों को समाप्त कर देंगे तथा हिंदू मंदिरों की पुनर्प्रतिष्ठा करेंगे।
लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार ने न तो भारत को हिंदू राष्ट्र ही घोषित किया और न ही भारत के पूजास्थलों का पुनरुद्धार किया। इसके विपरीत कांग्रेस सरकार ने हिन्दुओं के आराध्यस्थलों के जीर्णोद्धार में बड़ी बाधाएं पहुंचाईं।।
श्री राम जन्मभूमि मंदिर हेतु चलाए गए दीर्घकालीन संघर्ष को स्वतंत्रता प्राप्ति के तत्काल बाद प्रारंभिक धार देने वाले नायक का नाम है - श्री के के नैयर।
1945 में वे अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा में फैजाबाद के जिलाधिकारी पद पर नियुक्त किए गए थे।नैयर ने अपने सहयोगी उप जिलाधिकारी श्री गुरुदत्त सिंह को अयोध्या विवाद के मामले पर एक आधारभूत आख्या तैयार कर पंजीबद्ध करने का दायित्व सौंपा था।उप जिलाधिकारी श्री गुरु दत्त सिंह ने 10 अक्टूबर 1949 को इस मामले पर अपनी रिपोर्ट श्री नायर को दे दी। श्री सिंह ने इस रिपोर्ट में जन्मभूमि पर एक भव्य राम मंदिर निर्माण की स्पष्ट रूप से संस्तुति की थी।
इस मामले में एक निर्णायक मोड़ तब आया , जब राम भक्तों ने 22/23 दिसंबर 1949 को ढांचे में श्री राम लला की मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना प्रारंभ कर दी।
प्रधानमंत्री नेहरू जी ने रामलला की मूर्ति को हटवाने के लिए कांग्रेसी मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को आदेश दिया। कांग्रेसी मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने श्री नैयर को आज्ञा दी कि रामलला के मंदिर से हिंदुओं को निकाल बाहर किया जाए। परंतु श्री के के नैयर ने इस आज्ञा के पालन से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि यहां मंदिर की दावेदार हिंदू जनता दीर्घकाल से पूजा करती आई है।
जिलाधिकारी श्री नैयर ने वहां ताला डलवा कर शासन की ओर से पुजारी नियुक्त कर पूजा एवं भोग की व्यवस्था कर दी थी।
प्रतिक्रियास्वरूप कांग्रेस की हिंदू विरोधी नीति के अनुसार मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने श्री के के नैयर को प्रशासनिक सेवा से निलंबित कर दिया।
परंतु श्री नैयर ने कांग्रेस सरकार के इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी और अपने जिलाधिकारी पद पर पुनर्नियुक्ति प्राप्त कर ली। श्री नैयर ने गंभीरता से विचार किया कि रामलला के लिए यदि संघर्ष करना है , तो उन्हें सरकारी जिलाधिकारी का पद छोड़ देना चाहिए क्योंकि आदेश की अवज्ञा होने से नेहरू की आंख में नैयर जी कांटे की भांति चुभने लगे थे। अतः उन्होंने प्रशासनिक सेवा से त्यागपत्र दे दिया और अन्याय के विरुद्ध न्याय के पक्ष में संघर्ष का संकल्प लिया और नेहरू की " औरंगजेबी हुकूमत " की चुनौती स्वीकार कर ली। इससे वे लाखों हिंदुओं की हृदय-हार बनकर सर्वप्रिय बन गए।
श्री नैयर तथा उनकी पत्नी दोनों जनसंघ के टिकट पर 1962 में लोकसभा के सदस्य चुने गए।
जनवरी 1950 में दो श्रद्धालुओं के आग्रह पर न्यायालय ने श्री रामलला के नित्य दर्शन - पूजन एवं सुरक्षा की व्यवस्था की। (क्रमशः)
(उपर्युक्त तथ्य हर हिंदू को जानना चाहिए।)
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।