त्रिपुरारी ने जब त्रिपुरासुर का वध किया तो उन्होंने पिनाक को वापस देवताओं को दे दिया ताकि शक्ति मर्यादित रहे और आवश्यकता पड़ने पर ही उसका उपयोग हो। भोलेनाथ अपने परिवार के पास कैलाश लौट गए और देवताओं ने उस धनुष को विदेहराज के यहां रख दिया। इसके पीछे एक गहरा मर्म है। अस्त्र शस्त्र हो या व्यक्ति, उसके द्वारा मिली विजय अपने साथ अहंकार लेकर आती है, पिनाक से इतने बड़े शत्रु का विनाश हुआ था तो उसकी महिमा पूरे त्रिलोक में फैल गई, धनुष जड़ भले था पर वह अहंकार का प्रतीक बन गया।
विदेह के यहां पिनाक इसलिए रखा गया क्योंकि वही उसके प्रति अनासक्त रह सकते थे, बाकी किसी और के यहां उसके दुरुपयोग की आशंका थी। अहंकार को उठा कर परे रख देने की क्षमता माता जानकी में ही थी। जब जनक ने उन्हें ऐसा करते देखा तो वह समझ गए कि सीता के योग्य वही है जिसने अहंकार पर विजय प्राप्त कर लिया हो।
भगवान राम के प्रमुख लक्षण हैं, रूप, बल और शील। राम रूप रस की चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं, वह अपने बल और शील द्वारा उस मर्यादा की स्थापना करते हैं जिसका निर्वहन स्वयं महादेव ने किया था। अहंकार टूटता है, केवल धनुष के रूप में नही बल्कि जनक के दरबार में आए सभी योद्धाओं का टूटता है, परशुराम का टूटता है। अहंकार को शक्ति और शील से तोड़ा जा सकता है।
उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा।।
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