राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा को लेकर इतना उत्साह क्यों है??
इसका विरोध क्यों हो रहा है?
क्यों कुछ लोग राम को लेकर अनर्गल बातें कर रहे हैं ??
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ये सारे सवाल अपने आप में बेमानी हैं..
मैं मूलतः वाल्मीकि रचित रामायण को ही फालो करता हूँ.. इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुलसीदास जी की रामचरितमानस को कमतर कह रहा हूँ.. पर दोनों में अंतर है.
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तुलसीदासजी की रामचरितमानस वस्तुतः राम के चरित्र को मात्र अलौकिक एवं भगवान् के नजरिए से देखती है.. जबकि वाल्मीकि रामायण के राम को एक पुरुष के रूप में देखा गया है.. उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है.. पुरुषोत्तम अर्थात पुरुषों में उत्तम.. इसमें राम के चरित्र को एक आदर्श के रूप में स्थापित किया गया है कि "एक आदर्श पुरुष को ऐसा होना चाहिए"
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राम हमारे लिए मात्र विष्णु का अवतार भर नहीं हैं.. वो एक जीवन शैली हैं..चरित्र के विभिन्न आदर्श पहलुओं के सम्मिश्रण से बना एक मनुष्य जो समस्त मनुष्य प्रजाति को एक आदर्श मनुष्य बनने की जीवनशैली एवं आचरण सिखाता है..
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राम हमारे लिए एक विरासत हैं। उनकी अपने घर में वापसी हमारे लिए हमारी गौरवशाली एवं समृद्ध विरासत की ओर वापसी है.. खोये हुए गौरव एवं आत्मविश्वास को पुनः प्राप्त करने की शुरुआत है.. वो गौरव एवं आत्मविश्वास जिसे विभिन्न आक्रांताओं ने समय समय पर छिन्न भिन्न किया.. उन्होंने हमारे आदर्श के अस्तित्व को समाप्त करने की कोशिश की ताकि हम अपनी जड़ों से कट जाएँ...
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राम की प्राणप्रतिष्ठा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि इस देश के स्वाभिमान का प्रतीक है... और जो भी इसके रास्ते में रुकावट डालेगा उसका सर्वनाश सुनिश्चित है...
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वक़्त है संभल जाओ...
#प्रयाश्चित_कर_लो...