अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है और कूर्म द्वादशी को रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा भी होगी। वैसे तो राम मंदिर के लिए 500 वर्षों का संघर्ष हुआ यह बात सभी जानते हैं और अनेकों लोगों ने बलिदान दिया यह भी हम जान चुके हैं परंतु न जाने कितने लोगों ने अलग-अलग प्रकार से तपस्या की, संकल्प लिए वह अब धीरे-धीरे हम सबके सामने आ रहे हैं। ऐसी ही एक 85 वर्षीय राम भक्त जो 30 वर्ष बाद अब अपना मौन व्रत प्रभु के चरणों में तोड़ेगी ।
यह राम मंदिर केवल लंबी प्रतीक्षा का ही परिणाम नहीं बल्कि एक बहुत लंबे संघर्ष और बहुत सारी तपस्या तथा संकल्पन का परिणाम है जो आज की पीढ़ियां अपने आंखों से सफल होते देख रही है। अब जरूरत है कि हम भी संकल्प ले की अब राम राज्य की तरफ पूरी निष्ठा से आगे बढ़ेंगे। धर्म मार्ग पर आगे बढ़ेंगे और अधर्म का नाश करेंगे। अपने बच्चों को धर्म ज्ञान देकर उन्हें राम राज्य में आगे बढ़ाएंगे।
सरस्वती देवी की उम्र 85 साल है। वे झारखंड के धनबाद में रहती हैं। करीब 30 साल से मौन व्रत में हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने यह संकल्प लिया था। 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही उनका संकल्प भी पूरा होगा। वे रामलला के चरणों में ही अपना व्रत तोड़ेंगी। ‘राम नाम’ के साथ ही उनका ये व्रत टूटेगा।
सरस्वती देवी ने 1992 में मौन व्रत शुरू किया था। संकल्प लिया था कि राम मंदिर बनने के बाद ही अपना व्रत तोड़ेंगी। प्राण-प्रतिष्ठा की घड़ी नजदीक आने के साथ ही धनबाद के करमटांड़ में रहने वाली सरस्वती देवी बहुत प्रसन्न हैं। वे लिखकर बताती हैं, “मेरा जीवन सफल हो गया। रामलला ने मुझे प्राण-प्रतिष्ठा में बुलाया है। मेरी तपस्या, साधना सफल हुई। 30 साल बाद मेरा मौन व्रत ‘राम नाम’ के साथ टूटेगा।”
उन्हें प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का न्योता मिल चुका है। इस न्योते से उनका पूरा परिवार खुश है। उनके भाई 8 जनवरी 2024 को उन्हें अयोध्या लेकर जाएँगे। बेटे हरिराम अग्रवाल के मुताबिक, मई 1992 में सरस्वती देवी अयोध्या में राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास से मिलीं थी। तब महंत दास ने उन्हें कामतानाथ पर्वत की परिक्रमा करने को कहा था।
इसके बाद वो चित्रकूट चली गईं। उन्होंने साढ़े सात महीने कल्पवास में एक गिलास दूध के सहारे निकाला और हर दिन कामतानाथ पर्वत की 14 किलोमीटर की परिक्रमा की। परिक्रमा करने के बाद अयोध्या लौटने पर 6 दिसंबर 1992 को स्वामी नृत्य गोपाल दास के कहने पर उन्होंने मौन धारण कर लिया।
इसी दिन सरस्वती देवी ने संकल्प किया कि वो राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दिन ही अपना व्रत तोड़ेंगी। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय का स्वागत और उनके साथ पूरा सहयोग किया। इसके बाद से उनका सारा ही वक्त लगभग पूजा-पाठ में बीतता है। किसी को कुछ कहना होता तो वो इशारों में या ताली बजाकर बताती हैं। मौन के इस संकल्प के साथ ही सरस्वती देवी ने चारों धाम की तीर्थ यात्राएँ भी पूरी की है।
इसके अलावा वे अयोध्या, काशी, मथुरा, तिरुपति बालाजी, सोमनाथ मंदिर, बाबा बैद्यनाथधाम के दर्शनों के लिए जा चुकी हैं। प्रभु राम के चरणों में अपना जीवन समर्पित करने वाली सरस्वती देवी आज से 65 साल पहले धनबाद के भौंरा के रहने वाले देवकीनंदन अग्रवाल की जीवनसंगिनी बनीं थी। उन्होंने कभी स्कूल का मुँह तक नहीं देखा था, लेकिन पति ने उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। हालाँकि उनके पति उनका साथ 35 साल पहले ही छोड़ परलोक सिधार गए।
इसके बाद से वो अकेले ही परिवार को चलाती रहीं। अपने 8 बच्चों में से तीन की मौत का दुख भी उन्हें झेलना पड़ा, लेकिन वे भक्ति मार्ग पर चलती रहीं। हर दिन धार्मिक पुस्तकें पढ़ना उनकी दिनचर्या का अंग है। इसके साथ वो केवल एक वक्त का सात्विक भोजन लेती हैं।