हर क्रांतिकारी शुरू में अकेला ही होता है और सारे उसके विरोधी होते हैं। लेकिन जैसे-जैसे उसके विचारों का ताप बढ़ता जाता है विरोध का हिम पिघलने लगता है, उसके विचारों से सहमत होने वालों की संख्या प्रतिदिन बढ़ते जाती है। हां इसमें समय लगता है।
पत्थर के कण को रत्न में बदलने के लिए बहुत ही यातनाएं सहनी पड़ती है। और फिर वह अकेला कहां है उसका विश्वास उसके साथ है और जहां विश्वास है वहां मैं (ईश्वर) हूं......