प्रदूषण की आड़ में दिवाली के पटाखों पर प्रतिबंध है। हिंदुओं की दिवाली तो काली हो गई, लेकिन Supreme Court के आदेश का असली लाभार्थी कौन हैं?
उत्तर है- ईसाई मिशनरियां और मजहबी समुदाय।
भारत के सेकुलर तंत्र ने हिंदूओं के सबसे बड़े धार्मिक त्यौहार को परंपरागत रुप में मनाने से वंचित रखा है। जबकि वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि कि प्रदूषण में दिवाली का योगदान लगभग नगण्य है।
अब तक पटाखों का उत्पादन तमिलनाडु के शिवकाशी में हुआ करता था। देशभर में पटाखों की खपत का 90 % से अधिक ShivKashi में ही बनता था। शिवकाशी के कारखानों में लगभग 5,00,000 लोगों को रोजगार मिला करता था। लेकिन भारतीय न्याय व्यवस्था की अंतर निहित हिंदू के कारण यह उद्योग अब अपनी अंतिम सांसे गिन गया है। जो भारतीय न्याय व्यवस्था खेतो में पराली जलाने को बंद नहीं करा सकी।
धूम्रपान से प्रति वर्ष 14,00,000 लोगों की मृत्यु होने के बावजूद जो सिगरेट पर प्रतिबंध नहीं लगा पाई। वर्ष में एक पर होने वाली दिवाली की आतिशबाजी और उसके व्यापार पर रोक लगा दी।
जब भी कोई व्यापार बैन हो जाता है। तो सहज रुप से उस पर एक मज़हब विशेष का कब्जा हो जाता है। जो पटाखे पहले सरकार को टैक्स चुकाकर शिवकाशी में बना करते थे। वह अब देश भर के हर शहर में बसाए गई महजबीं बस्तियों में बन रहे हैं । कुछ पटाखे पकड़े जाते हैं, कुछ फैक्ट्रियों में आग लग जाती है। दो चार दर्जन लोगों की जान चली जाती है।लेकिन कोई अंतर नहीं पड़ता। क्योंकि अवैध धंधे हैं लाभ सदैव लागत से कई गुणा होता है।
ना कोई बिजली का बिल है किसी तरह के टैक्स नहीं की चिंता नहीं । दिवाली पर आतिशबाजी तो अब भी हो रही है। लेकिन अब अधिकांश लोग अवैध फैक्ट्रियों में बने पटाखे फोड़ रहे। अपना ही त्यौहार मनाने के लिए हिंदू इस व्यापार का ग्रहाक बनने के लिए विवश कर दिए गए।
पटाखे खरीदने के लिए उन्हें चार से पांच गुना अधिक कीमत चुकानी पढ़ रही है। यह एक प्रकार का जजिया है। जो कि दीपावली की आड में हिंदू चुका रहे हैं। यह सारा धन महजबीं समुदाय की जेब में पंहच रहा है । वहां से जकात में जाएगा। जो अंततः हिंदूओं के विरुद्ध षड्यंत्रों और आतंकियों के मुकदमे लड़ने में जाएगा। दिवाली की रात में पटाखे जब आप छुड़ाएंगे तो हो सकता है कि पुलिस आपको पकड़ने चली आए । उसे भी आपको कुछ ना कुछ चढ़ावा चढ़ा पड़ सकता जो दिल्ली पुलिस जिहादी दंगाइयों के आगे लाचार दिखाई देती है वह दिवाली की रात हिंदू बच्चो और उनके माता पिता को पकड़ने के लिए सबसे अधिक चुस्त दिखती है।
दूसरी और शिवकाशी में बेरोजगार हुए पांच लाख लोग और उनके परिवार अब धर्मांतरण गिरोह का आसान शिकार होंगे कोई मौलाना पादरी उनको समझाएगा कि उनके कष्टों का कारण हिंदू देवी देवता है । कोई ध्रूत राजनेता उन्हें बताऐगा कि जातिय व्यवस्था के कारण उनके साथ अन्याय हो रहा है। इसलिए सनातन धर्म को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। ये एक प्रकार का दुष्चक्र है जो देश में कई वर्ष से चल रहा है ।
विषय पटाखों या प्रदूषण का नहीं है वास्तव में यह हिंदुओं के क्रमबद्ध उन्मूलन का प्रयास है। एक समाज के रुप में हमें इसकी व्यापकता को समझना होगा। इसके विरुद्ध बोलना और लिखना होगा। सरकारों और राजनेताओं से प्रश्न पूछना होगा। उन नेताओं को भी प्रश्नों के घेरे में खड़ा करना होगा जो ईसाई मिशनरियों द्वारा शुरू किए गए Banned Cracker, Clean Diwali और Green Diwali जैसे अभियानों के मोहरे बन गए और अपने NGO के माध्यम से दिवाली बंद कराने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।
Diwali के पटाखों पर प्रतिबंध कोई हारा हुआ युद्ध समझकर छोड़ा नहीं जा सकता। ना ही इसकी आड़ में हलाल अर्थव्यवस्था का पोषण नहीं किया जाना चाहिए।
🌸जय सनातन धर्म🚩🌺👏🏻
Deepawali जय श्री राम 🙏🚩