◆ क्यों स्नानागार और शौचालय घर से बाहर बनाये जाते थे ना कि अंदर...
◆ क्यों हम किसी वस्तु या इंसान को नाई की दुकान या किसी दाह संस्कार से लौटने पर नहाने से पहले नही छू सकते थे...
◆ क्यों चप्पल जू ते घर के अंदर नहीं बाहर ही रखे जाते थे..
◆ क्यों हमें खेलकर या स्कूल से वापिस आने के बाद हाथ-पैर धोने पड़ते थे...
◆ क्यों किसी परिवार में कोई जन्म या मृ त्यु होने पर दस दिन का आइसोलेशन रखा जाता था...
◆ क्यों किसी घर में मृ त शरीर होने पर भोजन नहीं पकाया जाता था...
◆ क्यों कपड़े घर के अंदर नहीं बाहर धोये जाते थे...
◆ क्यों रसोई में जाने और खाना पकाने से पहले नहाना जरूरी था...
◆ क्यों किसी नहाये हुए को किसी बिना नहाये हुए को छुना मना था...
पाश्चात्य शिक्षा पद्धत्ति ने हमारा माइंड वाश कर दिया और हम सब उपरोक्त कार्यों को पिछड़ापन समझने लगे ताकि हमें आधुनिक कहा जा सके. लेकिन अब यही सब कार्य हमारी जान बचाने में सक्षम सिद्ध हो रहे हैं जिन पर हम हँसा करते थे...जिसे कभी पिछड़ापन कहकर कोने में फेंक दिया गया था आज उसी सभ्यता को ट्रेंड में देखा जा सकता है
जरा सोचिये हमारे पूर्वज कितने दूरदृष्टा थे जो इन सब क्रियाकलापों को अमल में लाते थे.
अब हम अपनी जड़ों की तरफ लौटना तो चाहते हैं लेकिन पनघट की डगर हम बहुत कठिन बना चुके हैं...खैर इनमें से जो अब भी अपनाया जा सके अपनाइये।
सर्वे भवंतु सुखिन:~~ सर्वे संतु निरामय: 🙏