जय श्री राम।।
जैसा कि हमने पिछले प्रशंग में पढ़ा कि एक पशु ने ब्रह्मा जी के पास जाकर यह शिकायत की थी कि सब ग्रन्थों में मनुष्य देहि को सर्वोत्तम क्यों माना गया है।
जबकि मनुष्य तो बड़ा अत्याचारी है।
हम पशुओं और जानवरों के साथ यह मनुष्य बहुत अत्याचार करता है।
हमें इसका कारण समझाओं।
कि मनुष्य देहि दुर्लभ क्यों है?
ब्रह्मा जी ने दूसरे दिन सभी जानवरों और पशु पक्षियों को एकत्रित होकर आने का आदेश किया था।
मनुष्यों की और से भी एक मनुष्यों के प्रति निधि को बुलाया गया ।
फिर सभा प्रारंभ हुई।
ब्रह्मा जी ने मनुष्यों के प्रतिनिधि से कहा भाई बताओ,
इन पशु पक्षी और जानवरों को की तुम्हारी यह मनुष्य देही सर्वोत्तम क्यों है?
यह मनुष्य शरीर को दुर्लभ योनी क्यों कहा गया है।?
तुम्हारी इस मानव देह को देवताओं से भी उत्तम योनी क्यों माना गया है।?
यह पशु पक्षी मेरे पास तुम्हारी शिकायत लेकर आए थे।
मनुष्य ने कहा कि हम मनुष्य सर्वोत्तम है।
क्योंकि, हमारी बोली बहुत सुंदर है।
हम बहुत सुंदर बोलते हैं।
और, पशु पक्षी जानवर तो कुछ तो भी बोलते हैं।
इनकी भाषा न सुंदर है न समझ में आने जैसी है।
टैं भौं ऊं आं आदि इत्यादि।
किंतु हम मनुष्यों की बोली बहुत अच्छी है ।
इसलिए हमें सबसे उत्तम माना गया है।
जैसे ही मनुष्य ने कहा कि हमारी बोली बहुत सुंदर है।
कोयल बोली रहने दो।
यह बोली तो तुमने मुझसे उधार ली है।
सुंदर बोलने में तो मेरी बराबरी कोई नहीं कर पाता है।
मनुष्य की यदि आवाज सुंदर हो तो सब लोग यही कहते हैं ।
कि क्या कोयल जैसी मधुर आवाज है।
इसमें तुम्हारी क्या विशेषता है?
ब्रह्मा जी ने कहा भाई कोयल की बात सही है।
तुम अपनी योग्यता का कोई दूसरा उदाहरण दो।
मनुष्य ने कहा कि हम बहुत बलवान हैं।
इतने में ही शेर बोला रहने दो। मुझसे बलवान नहीं हो सकते हो।
तुम्हें यदि कोई बलवान कहता है तो उपमा उसकी मुझसे ही दी जाती है।
लोग कहते हैं यह व्यक्ति शेर जैसा बलवान है ।इसकी शेर जैसी चाल है।
इसमें तुम्हारी कोई बढ़ाई नहीं है
ब्रह्मा जी ने मनुष्य से कहा कोई और कारण बताओ।
तुम यहां भी फेल हो गए हो।
मनुष्य ने कहा हम घर बहुत सुंदर बनाते हैं ।
हमारी यह विशेषता है ।
इतने में बया पक्षी बोला रहने दो।
घर बनाने में हमारी बराबरी तुम नहीं कर सकते हो।
हमारे घर की प्रशंसा सारा जमाना करता है।
अब तो आदमी थोड़ा परेशान सा होने लगा।
कोई प्रश्न उसके दिमाग में नहीं आ रहा था।
फिर तुरतं उसे कुछ याद आया और बोला।
हम चालक बहुत है।
हमारी यह विशेषता है।
इतने में कौवा बोला मुझसे ज्यादा चालाक नहीं हो सकते हो।
चालाकी का उदाहरण भी लोग मेरा नाम लेकर ही देते हैं।
कि यह व्यक्ति कौवै जैसा चालाक है।
अब तो मनुष्य हैरान परेशान हो गया।
अंत में बोला ठीक है मैं तो मूर्ख हूं। अब तो ठीक है।
इतने में ही गधा बोल पड़ा।
मुझसे ज्यादा मुर्ख नहीं हो सकते हो ।
मूर्खता का उदाहरण भी लोग मेरा नाम लेकर ही देते हैं।
लोग यही कहते हैं।
यह आदमी नहीं गधा है, गधा।
गधे के समान मूर्ख है ।
मनुष्य ने और भी कई उदाहरण दिए।
किंतु हर उदाहरण देने पर पशु पक्षी और जानवरों ने उसे बोलने पर रोक दिया।
नाक की सुंदरता पर मनुष्य बोला तो ।
तोते ने रोक दिया।
तोता बोला।
नाक की उपमा भी सब लोग मेरी नाक से ही देते हैं।
कि क्या तोते जैसी सुंदर नाक है।
आंख की सुंदरता पर हिरण बोल पड़ा।
मेरी आंखों से अधिक सुंदर किसी की आंखें नहीं हो सकती तुम्हारी आंखों की सुंदरता की उपमा भी लोग मेरी आंखों से ही देते है ।
कि क्या हिरन जैसी आंखें हैं।
गुण दोष के संबंध में हंस बोल पड़ा।
मेरे से ज्यादा परख रखने वाले तुम नहीं हो सकते हो ।
यह उदाहरण भी सब मेरा ही देते हैं।
अब तो सब पशु और जानवर मनुष्य पर भारी पढ गए।
कहने लगे तुम किस आधार पर अपने आप को भाग्यशाली मानते हो।? क्यों है दुर्लभ मनुष्य की योनि बताओ?
क्या विशेषता है तुम्हारे में ?
सारी विशेषता तो तुमने पशुओं और जानवरों से ले रखी है। तुम्हारा अपना इसमें क्या है।?
अब ब्रह्मा जी मनुष्य से बोले।
देखो मनुष्य ।
तुमने जितनी बातें बताई है।
उन सब बातों में तुम किसी भी तरह इन पशु पक्षियों से श्रेष्ठ नहीं हो।
इन सब बातों में तुम पक्षियों और पशुओं की बराबरी नहीं कर सकते हैं।
तुम श्रेष्ठ हो, तुम्हारी मनुष्य देही श्रेष्ठ है।
उसका कारण दूसरा है।
इसलिए तुम्हारी देह को दुर्लभ बताया गया है।
यह तुम्हारा शरीर जो है यह मोक्ष का द्वार है।
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा।।
शेष जितनी भी योनियां है वह एक कमरे की दीवार की भांति है।
दीवार से निकलने का रास्ता नहीं होता है।
बाहर निकलने का रास्ता केवल दरवाजे से होता है।
तुम्हारी इस मनुष्य देहि का दरवाज़ा माना गया है।
यह मोक्ष प्राप्ति का दरवाज़ा है।
इसलिए इस मानव देहि को दुर्लभ माना गया है।
यह मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है।
स्वर्ग में सुख है, किंतु कर्म करने की स्वतंत्रता नहीं है।
स्वर्ग में सब लोग सुख भोगते हैं।
किंतु कर्म नहीं कर पाते हैं।
संत इस प्रसंग पर बड़ी सुंदर व्याख्या करते हैं।
*यह प्रसंग अब अगली पोस्ट में*
*जय श्री राम।।*🙏