कागभुसुंडि जी गरुड़ जी से कहते हैं।
है पक्षीराज गरुड़ जी, मुझे श्राप मिला
इसमें ऋषि का कोई दोष नहीं था श्री राम जी ने ही उन्हें प्रेरणा की थी।
और जब भगवान ने मन वचन और कर्म से मुझे अपना दास जान लिया।
तब फिर से मुनि की बुद्धि को फेर दिया।
*मुनी मति पुनि फेरी भगवाना।।*
ऋषि ने मेरा राम जी के चरणों में विशेष प्रेम देखा।
अपने श्राप को लेकर वह बहुत पछताए।
और मुझे आदर पूर्वक बुला लिया।
अति विसमय पुनि पुनि पछताई।
सादर मुनि मोहि लीन्ह बोलाई।।
मुझे हर तरह से संतोष करा कर फिर मुनि ने मुझे प्रशन्न होकर राम मंत्र दिया।
*हर्षित राम मंत्र तब दीन्हा।।*
कृपा निधान लोमश ऋषि ने मुझे श्री राम जी के बालक रूप के ज्ञान की विधि बताई।
*बालक रूप राम कर ध्याना।*
*कहेंउ मोहि मुनि कृपानिधाना।।*
मुनि ने मुझे कुछ समय तक उन्हीं के आश्रम में रखा।
रामचरितमानस का वर्णन किया।
मुझे श्री राम जी की पावन कथा सुनाई।
और फिर मुनि ने मुझसे कहा।
यह सुंदर और गुप्त रामचरितमानस मैंने शिवजी की कृपा से पाया है ।
और तुम्हें श्री राम जी का भक्त जानकर राम जी के सब चरित्र विस्तार से बताएं हैं।
*रामचरित कर गुप्त सुहावा।*
*शंभू प्रसाद तात मैं पावा।।*
है गरुड़ जी लोमश ऋषि ने मुझसे कहा।
कि जिनके हृदय में श्री राम जी की भक्ति नहीं है ।
उनके सामने कभी इस कथा को नहीं कहना चाहिए।
*राम भगत जिनके उर नाहीं।*
*कहहु न तात कहिअ तिन्ह पाई।।*
मुनि ने मुझे कई तरह से समझाया और मैंने उनके चरणों में प्रणाम किया।
मुनिश्वर ने अपने कर कमल से मेरे सीस का स्पर्श करके।
हरषित होकर आशीर्वाद दिया। कि अब मेरी कृपा से तेरे हृदय में सदा राम भक्ति वास करेगी।
*निज कर कमल परस मम सीसा।*
*हर्षित आशीष दीन्ह मुनीषा।।*
*राम भगति अविरल उर तोरें।*
*बसिहि सदा प्रसाद अब मोरें।।*
मुनीश्वर ने मुझे यह आशीर्वाद भी दिया।
कि इच्छा होने पर ही तुम्हारी मृत्यु होगी ।
बिना इच्छा के कभी तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी।
और इतना ही नहीं।
तुम जिस आश्रम में निवास करोगे।
वहां एक योजन चार सो कोस तक माया मोह नहीं व्यापेगी।।
*जेंहि आश्रम तुम बसब पुनि।*
*सुमिरत श्री भगवंत।*
*ब्यापिहि तंह न अविद्या।*
*जोजन एक प्रजंत।।*
मुनीश्वर ने मुझे आशीर्वाद दिया की जो इच्छा तुम करोगे भगवान की कृपा से वह सब प्राप्त कर पाओगे।
तुम्हारे लिए दुर्लभ कुछ भी नहीं रहेगा।
हरिप्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं।।
मुनिश्वर का यह आशीर्वाद सुनकर आकाश में गंभीर ब्रह्म वाणी हुई।
कि है मुनीश्वर।
तुम्हारे कहे गए वचन सब सत्य होंगे।
यह मन वचन और कर्म से मेरा भक्त है।
*एव मस्तु तव बच मुनि ज्ञानी।*
*यह मम भगत कर्म मन वाणी।।*
*कागभुशुण्डि जी कहते हैं।*
*है पक्षीराज गरुड जी।*
मैं गुरु से आज्ञा पाकर उनके चरणों में प्रणाम करके हर्षित होता हुआ इस आश्रम में आ गया।
है गरुड़ जी इस आश्रम में निवास करते हुए मुझे 27 कल्प बीत गए हैं।
यहां बसत मोहि सुनु खग ईसा।
बीते कलप सात अरु बीसा।।
यहां रहकर में सदा श्री रघुनाथ जी के गुणों का गान किया करता हूं।
और चतुर पक्षी यहां आकर आदरपूर्वक उसे सुनते हैं।
*करऊं सदा रघुपति गुन गाना।*
*सादर सुनहि विहंग सुजाना।।*
जब जब राम जी अयोध्यापुरी में भक्तों के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करते हैं।
तब तब में वहां जाकर प्रभु की बाल लीला देखकर सुख प्राप्त करता हूं।
तब तब जाई रामपुर रहहुं।
*शिशु लीला बिलोकि सुख लहहूं।*
है पक्षीराज गरुड़ जी।
मैंने किस कारण से यह कौवे की देह पाई थी।
सारी कथा आपको सुना दी है।
प्रिय श्रोताओं,।।
कागभुशुण्डि जी और गरुड़ जी के संवाद के चलते हुए बीच में यह प्रसंग छूट गया है ।
कि कागभुशुण्डि जी को
श्री राम जी के भगवान होने में संसय कैसे हुआ था।
*इस प्रसंग का वर्णन अगले पोस्ट में ।जय श्री राम।।*🙏🚩