जब रावण की अमर सेना को हनुमानजी ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा से ऊपर आसमान में उछाल दिया यह समाचार सुनकर रावण बहुत उदास हुआ।
विचार करने लगा।
मुझे डर राम से उतना नहीं है जितना इस बंदर की पूंछ से है।
अवश्य इस पूंछ में कोई करामात है।
मेरी पराजय हो रही है तो केवल इस पूंछ के कारण हो रही है ।
अब मुझे कुछ करना होगा।
एक दिन रावण ने विचार किया कि इस बंदर की पूंछ ही उखाड़ देता हूं।
इस उद्देश्य से एक दिन हनुमान जी एकांत में बैठे हुए थे।
वहां रावण चुपके से पहुंच गया। और जाकर चुपके से हनुमान जी के पीछे बैठ गया ।
उसका उद्देश्य यह था।
कि आज हनुमान जी की पूंछ को उखाड़ना है।
रावण को लग रहा था कि वानर मुझे देख कर पीछे मुड़ेगा।
और मुझसे भिड़ेगा।
किंतु हनुमान जी बुद्धिमतां वरिष्ठं है।
वह जान गए थे रावण के उद्देश्य को।
इसलिए हनुमान जी,
ना ही पीछे मुड़े ।
और ना ही रावण से भिड़े।
जैसे ही रावण ने हनुमान जी की पूंछ पकड़ी।
हनुमान जी सीधे आसमान में उड़े।
और इतनी तेजी से उड़े कि रावण कुछ समझ भी नहीं पाया। वह हनुमान जी की पूंछ को छोड़ भी नहीं पाया ।
हनुमान जी उसे लेकर आसमान में उड़ गए।
अब तो रावण बड़ा परेशान ।भगवान शंकर से प्रार्थना करने लगा।
हे भोलेनाथ कहीं ऐसा ना हो कि इस बंदर की पूंछ टूट जाए।
या मेरे हाथ से छूट जाये।
नहीं तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा।
है भोलेनाथ इस बंदर की पूंछ को कुछ होने न पाए।
यह सकुशल रहे बस इतनी प्रार्थना है।
हनुमान जी ने रावण से कहा रावण।
संत की पूंछ को तुमने पकड़ा यह तो अच्छा किया।
पकड़ना ही चाहिए।
किंतु संत की प्रतिष्ठा रुपी पूंछ को जिसने भी उखाड़ने का प्रयास किया है वह आजतक कहीं का नहीं रहा है।
दोबारा ऐसी भूल मत करना।
रावण मौन रहा।
कुछ समय तक हनुमानजी ने रावण को आसमान में घुमाया ।और फिर भूमि पर ले आए।
रावण अभिमानी था।
हनुमान जी से कहने लगा।
मेरे समान योद्धा तीनों लोक में कोई नहीं है।
तुम्हारी पूंछ का ख्याल रखते हुए मैंने आसमान में तुमसे युद्ध करना उचित नहीं समझा।
अब तुम्हारा और मेरा युद्ध हो जाए।
हनुमान जी ने कहा ।
कि हमारा और तुम्हारा युद्ध होगा तो बहुत लंबे समय तक चलेगा। क्योंकि तुम भी वीर हो ।
और भगवान की कृपा से मैं भी वीर हूं।
रावण ने कहा नहीं लंबे वाला युद्ध नहीं।
केवल एक एक मुक्के वाला युद्ध।
हनुमान जी ने कहा ठीक है ।पहला मुक्का तुम ही मार लो। क्योंकि हो सकता है ।
यदि पहले मुक्का मैं तुम्हें मारूंगा तो तुम्हें मुक्का मारने का अवसर मिले या ना मिले।
रावण ने कहा ठीक है।
जैसे ही रावण ने हनुमान जी को मुक्का मारा।
हनुमान जी भूमि पर वीरासन में बैठ गए।
गिरे नहीं।
रावण को बड़ा आश्चर्य हुआ।
अब मुक्का मारने की बारी हनुमान जी की थी ।
हनुमान जी ने रावण से कहा तैयार हो जाओ।
रावण ने कहा तैयार ही हूं।
और कर भी क्या सकता।
हनुमान जी ने रावण को मुक्का मारने के लिए जैसे ही अपना हाथ ऊपर उठाया।
तो ब्रह्मा जी ने हनुमान जी का हाथ पकड़ लिया ।
और कहा हनुमान क्या कर रहे हो?
क्या राम जी की लीला अधूरी छोड़ना चाहते हो।
रावण का वध तो रामजी ही करेंगे।
हनुमान जी ने कहा ब्रह्मा जी चिंता मत करो।
मैं रावण को थोड़ा मजा चखाना चाहता हूं।
इसे खत्म नहीं करूंगा।
और जैसे ही हनुमान जी ने रावण को मुक्का जमाया ।
रावण मूर्छित हो गया।
बहुत देर बाद भूमि से उठा। उठकर अपनी बीसों आंखें टमटमाने लगा।
अंत में निराश होकर लंका में लौट गया।
*इसके आगे का प्रसंग अगली पोस्ट में।*
जय श्री राम।।