जय श्री राम।।
कुंभकरण और मेघनाथ जैसे महान योद्धाओं के मर जाने के कारण रावण बहुत दुखी था। रावण ने रामजी की वानर सेना को समाप्त करने के लिए इस बार अपनी अमर सेना भेजी।
अमर सेना तो ब्रह्माजी द्वारा वरदान प्राप्त थी ।
कोई उन्हें मार ही नहीं सकता था।
रावण को मन में यह विश्वास था कि अमर सेना वानर सेना पर अवश्य विजय प्राप्त करेगी।
उधर जब लक्ष्मण जी को यह ज्ञात हुआ।
तो राम जी से कहने लगे।
प्रभु युद्ध भूमि में युद्ध करने के लिए रावण ने अपनी अमर सेना भेजी है।
इन्हें तो कोई मार ही नहीं सकता है।
अब इन पर विजय किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है ?।
श्री राम जी भी इस विषय पर विचार करने लगे।
जब यह समाचार हनुमानजी को लगा।
तो हनुमान जी ने कहा।
प्रभु चिंता करने की कोई बात नहीं है।
यदि यह राक्षस सेना अमर है ।
तो मुझे भी माता जानकी ने अमर होने का वरदान दिया है ।
मुझे आज्ञा दीजिए।
मैं युद्ध भूमि में जाऊंगा ।
राम जी प्रसन्न हुए ।
लक्ष्मण जी से कहने लगे लक्ष्मण। हनुमान जी को जाने दो अमर अमर का युद्ध ठीक रहेगा। हनुमान जी श्री राम जी से आज्ञा लेकर युद्ध भूमि में गए ।
अमर सेना ने वानर सेना पर आक्रमण किया ।
हनुमान जी खड़े रहे।
किसी ने हनुमान जी से कहा । इनसे लड़ते क्यों नहीं हो?।
खड़े क्यों हों?
हनुमान जी ने कहा लड़ने से कोई फायदा नहीं है।
यह मर तो सकते नहीं।
फिर मारने का प्रयास करने का क्या औचित्य।
किसी ने कहा कुछ तो करो।
यह हमारी वानर सेना को नष्ट कर देंगे।
हनुमान जी को लगा बात सही है।
हनुमान जी ने एक काम किया ।अमर सेना के राक्षसों को अपनी पूंछ में लपेट लपेट कर ऐसा फेंकना प्रारंभ किया ।
कि वह पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा रेखा से ऊपर चले गए ।
यह दृश्य रामजी ने देखा।
तो लक्ष्मण जी से कहा लक्ष्मण। हनुमान जी का कमाल तो देखिए।
लक्ष्मण जी बोले मैं वही देख रहा हूं भैया।
हनुमान जी राक्षसों को पहले पूंछ में लपेटते हैं ।
फिर जोर से आसमान की और उछालते हैं।
राम जी लक्ष्मण जी दोनों भाई हनुमान जी की वीरता को देखकर बहुत प्रसन्न हुए।
हनुमान जी ने अमर सेना के सारे राक्षसों को इसी तरह फेंका।
कि वापस आने का प्रश्न ही नहीं था ।।
हनुमान जी मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे ।
कि यह भी अच्छा हुआ कि अमर सेना युद्ध भूमि में आ गई ।
यदि यह नहीं आती तो राम जी का वह प्रण पूरा नहीं हो पाता ।कि इस पृथ्वी को निशा चरों से हीन कर दूंगा।
क्योंकि यह अमर सेना वाले राक्षस तो जीवित ही रह जाते।
अमर सेना के राक्षस वायुमंडल में घूम रहे हैं।
हनुमान जी ने मन ही मन कहा कि अब बने रहो अमर।
पृथ्वी से तो तुम्हारा सम्बन्ध खत्म हो ही गया है।
अब हमें कोई दिक्कत नहीं।
रामजी की प्रतिज्ञा तो पूरी हो जाएगी ।
रावण का वध तो प्रभु श्री राम जी कर ही देंगे।
अमर सेना के साथ आए हुए संदेश वाहक सेना के समाचार रखने वाले कुछ बचे खुचे राक्षसों ने भाग कर जाकर रावण को यह समाचार सुनाया की अमर सेना तो गई।
यह सुनकर रावण बड़ा आश्चर्यचकित हुआ।
रावण ने पूछा कहां गई ?
अब संदेश वाहक यह तो कह नहीं सकते कि मर गई ।
क्योंकि अमर सेना का मरने का तो कोई प्रश्न ही नहीं था।
तो संदेश वाहक बोले महाराज कहां गई यह तो हम भी नहीं जानते ।
किंतु उस वानर ने उन्हें पूंछ में लपेटकर ऊपर आसमान की और फेंका। अब वह कहां गई यह तो हम भी नहीं जानते।
बस हम केवल इतना ही जानते हैं कि अमर सेना का एक भी सैनिक नीचे नहीं आया।
रावण चिल्लाया नाम मत लो मेरे सामने पूंछ का।
राक्षस वोले ठीक है महाराज नहीं लेंगे।
रावण कहने लगा
मुर्ख थे वह सैनिक ।
उस वानर के सामने गए ही क्यों थे?
पीछे से हमला करना था ।
संदेश वाहक बोले महाराज हम कहेंगे तो आप फिर नाराज़ होंगे।
किंतु बात यह है कि,आगे वाले तो कुछ देर टिके भी सही।
पीछे वालों को तो उसने टिकने ही नहीं दिया।
जैसे ही कोई पीछे आया।
उसने पूंछ में लपेटा और फेंका।
रावण फिर चिल्लाया मूर्खों में कह रहा हूं मेरे सामने नाम मत लो पूंछ का ।
फिर भी पूंछ पूंछ पूंछ,किए जा रहे हो।
भाग जाओ मेरे सामने से।
रावण सब समाचार जान लेने के पश्चात विचार करने लगा।
इस बंदर की पूंछ ने तो मेरी नाक में दम कर रखा है ।
अब मुझे इसका इलाज करना ही पड़ेगा ।
पूंछ शब्द के पीछे छुपे अर्थ पर स्वामी श्री राजेश्वरानंद जी महाराज बड़ी सुंदर व्याख्या करते हैं।
महाराज श्री कहते हैं।
यह पूंछ का जो विषय है आदिकाल से चला आ रहा है। पूंछ शब्द में श्लेष है।
पूंछ का शाब्दिक अर्थ समाज में प्रतिष्ठा से भी लिया जाता है। कोई कहता है इनकी बड़ी पूंछ है इनकी यहां से वहां तक पूंछ है।
इनकी हर जगह पूंछ है।
आज भी कई घरों के सामने कई वृद्ध जन उदास बैठे रहते है। उनसे कोई पूछता है ।
क्या बात है उदास क्यों हों?
तो पहले तो वह कोई उत्तर नहीं देते हैं।
फिर ज्यादा आग्रह करने पर कहते हैं ।
अब हमारी इस घर में कोई पूंछ नहीं रही।
हमें कोई पूंछता नहीं है ।
आशय यह है कि हर कोई यह चाहता है कि मेरी हर जगह पूंछ हो।
कोई किसी को पूंछे य न पूंछे किंतु मेरी पूंछ हर जगह होना चाहिए।
संत श्री कहते हैं कि संसार में झगड़ा ही केवल पूंछ का है।
और यह पूंछ का झगड़ा आदिकाल से चला आ रहा है।
रावण भी यही सोचता है कि लंका हमारी।
और यहां पूंछ हनुमान जी की ।
हमारी लंका में तो हमारी पूंछ होना चाहिए।
सब हनुमान जी की पूंछ की चर्चा करते हैं।
हमें तो कोई पूंछ ही नहीं रहा है संत श्री कहते हैं कि जब-जब सज्जनों की पूंछ और प्रतिष्ठा बढ़ती है ।
तब तब
दुर्जन सज्जनों की बढ़ती हुई पूंछ और प्रतिष्ठा को सहन नहीं कर पाते हैं।
वह उसे उखाड़ कर फेंक देना चाहते हैं।
बस रावण का भी यही हाल था हनुमान जी की प्रतिष्ठा सहन नहीं कर पाया ।
हनुमानजी की पूंछ को उखाड़ने का रावण ने मन बना लिया।
और मन में विचार किया कि आज सबसे पहले मैं इस वानर की पूंछ को ही उखाड़ दूंगा।
राम को तो मैं बाद में देखूंगा।
*यह प्रशंग अगली पोस्ट में जय श्री राम।।*