♦️अद्भुत प्रसंग 44:लका युद्ध (भाग -४)काल नेमी वध🏹
जय श्री राम।।
हनुमान जी राम जी से आज्ञा लेकर प्रणाम करके द्रोणागिरी पर्वत की ओर संजीवनी बूटी लेने के लिए चले
*रामचरण सरसिज उर राखी।*
*चला प्रभंजन सुत बल भाषी।।*
उधर रावण को जब यह ज्ञात हुआ कि हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने द्रोणागिरी पर्वत पर जा रहे हैं।
रावण कालनेमि राक्षस के पास गया।
*उहां दूत एक मरमु जनावा।*
*रावनु कालनेमि गृह आवा।।*
और जाकर उससे कहा।
तुम्हें एक काम करना है।
रास्ता रोकना है।
कालनेमि ने पूंछा किसका रास्ता रोकना है ?आदेश करें।
रावण बोला।
हनुमान नाम का बंदर द्रोणागिरी पर्वत पर संजीवनी बूटी लेने जा रहा है ।
तुम्हें उसका रास्ता रोकना है।
वह सूर्योदय से पहले यहां आने ना पाए।
कालनेमि राक्षस ने जैसे ही हनुमान जी का नाम सुना।
तो बोला।
क्या यह वही बंदर तो नहीं जिसने लंका जलाई थी?
रावण ने कहा हां हां वही बंदर।
वही बंदर।
तुम बहुत समझदार हो।
जल्दी समझ गये।
बस तुम्हें उसी का रास्ता रोकना है ।
कालनेमि ने कहा नहीं नहीं ।
मैं नहीं जाऊंगा। मैं मरना नहीं चाहता हूं।
रावण ने कहा तुम मरना नहीं चाहते हो।
यदि नहीं जाओगे तो
मैं तुम्हें जिंदा नहीं रहने दूंगा। तुम्हें जाना तो पड़ेगा।
तुम्हारी जाने की इच्छा नहीं है ।किंतु मेरी इच्छा है कि तुम जाओ। कालनेमि ने कहा मुझे एक बात बताओ?
जिस दिन वह वानर लंका जलाकर गया।
उसदिन क्या तुम कहीं बाहर गांव गए थे?
रावण ने कहा मैं कहीं नहीं गया था यहीं था।
कालनेमि ने कहा।
तुमने उस दिन उसका रास्ता क्यों नहीं रोका था?
जिस दिन वह लंका में आया था महाराज।?
उस दिन तुम भी तो यही लंका में थे ।
तुम्हारे सामने ही तो वह लंका जलाकर गया था ।
वह महाबली वानर है।
उसका किसी के भी द्वारा मार्ग रोकना असम्भव है।
*देखत तुम्हहि नगरु जेंहि जारा।*
*तासु पंथ को रोकन पारा।।*
रावण ने कहा बेकार की बातें मत करो।
मैं जितना कह रहा हूं उतना करो।
कालनेमी बोला ठीक है।
जा तो रहा हूं किंतु इतना समझना कि मैं वापस लौटकर नहीं आ पाऊंगा ।
तुम मुझे जाते हुए तो देख सकते हो लौटकर आते हुए नहीं देख पाओगे।
रावण ने कहा जाओ तो सही।
कालनेमि राक्षस चला।
और जिस रास्ते से हनुमानजी जा रहे थे। उसी रास्ते में उसने माया से एक पर्वत, नदी और आश्रम का निर्माण किया।
*सर मंदिर बर बाग बनाया।।*
और वहां बैठकर रामधुन गाने लगा ।
हनुमान जी संत हैं।
और संत का स्वभाव होता है। जहां कहीं राम जी का कीर्तन राम जी का मंदिर दिखाई दे वही ठहरने की इच्छा करते है ।हनुमान जी के मन में भी आया कि कोई राम भक्त कीर्तन कर रहा है।
इनके दर्शन करना चाहिए। हनुमान जी वहां नीचे उतरे।
और कालनेमी के पास पहुंचे। कालनेमी ने हनुमान जी को नाम लेकर संबोधित किया।
हनुमान जी ने कहा क्या तुम मुझे जानते हो?
वह कपटी बोला अवश्य जानता हूं ।
मैं तो यह भी जानता हूं कि तुम संजीवनी बूटी लेने जा रहे हो। लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध हुआ है।
जिसमें लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए हैं।
मैं सब जानता हूं।
मैं तुम्हें अतिशीघ्र वहां द्रोणागिरी पर्वत पर पहुंचा दूंगा।
तुम यहां बैठो कथा श्रवण करो। मैं तुम्हें शीघ्रता से वहां पहुंचा दूंगा।
हनुमान जी बोले ठीक है महाराज
कालनेमि ने कथा प्रारंभ की ।
कालनेमि ने कथा आरम्भ में न मंगलाचरण कहा न गुरुवंदना न बालकाण्ड न अयोध्या काण्ड न न किष्किन्धाकाण्ड न अरणकांड न सुंदरकांड।
अब उसने कथा भी सीधे लंका कांड से प्रारंभ की ।
राक्षसों की कथा भी यहीं से प्रारंभ होती है।
क्योंकि लंका में तो रावण कथा होने ही नहीं देता था ।
कथा होना तो बात दूर की। कथाकार को लंका से बाहर निकाल देता था।
इस राक्षस को क्या मालूम।
कथा कैसे प्रारंभ करना चाहिए?
कभी सुनी होती तो सुनाता।
अब कालनेमि राक्षस ने कथा प्रारंभ की।
कथा भी रावण के नाम से सुरु की।
*होत महारण रावण रामहिं।*
मैं अपनी ज्ञान दृष्टि से देख रहा हूं
रामजी जीतेंगे यह भी तय है।
*जितिहहिं राम न संसय या महिं।*
हनुमानजी ने विचार किया।
अभी राम रावण युद्ध प्रारंभ कहां हुआ है?
फिर हनुमान जी ने विचार किया शायद पहले से ही चल रहा होगा। मैं दैर से पहुंचा हूं।
कालनेमि की कथा सुनने में हनुमान जी को प्यास लगी।
प्यास लगना स्वाभाविक है।
जब राक्षस कथा कहेंगे तो राम नाम की प्यास बुझ तो सकती नहीं ।
प्यास लगना ही है।
हनुमान जी ने पानी मांगा। कालनेमि हनुमान जी को कमन्डल देने लगा।
*मागा जल तेहिं दीन्ह कमंडल।।*
राक्षसों को गुरु परंपरा का ज्ञान तो रहता नहीं है।
हनुमान जी ने कहा कि कमंडल तो केवल शिष्य को दिया जाता है।
मुझे क्यों दे रहे हो?
कालनेमि को लगा कि कुछ गड़बड़ हो गई।
उसने बात बनाते हुए कहा तुम्हें शिष्य बनाना है।
इसीलिए तो कमंडल दे रहा हूं। फिर हनुमान जी ने कहा क्या बिना स्नान के ही शिष्य बना लोगे? दीक्षा दे दोगे ?
कालनेमि को लगा फिर गड़बड़ हो गई ।
।उसने फिर बात बनाते हुए कहा। हां हां तुम एक काम करो सरोवर में स्नान करके आ जाओ।
फिर मैं तुम्हें दीक्षा दूंगा ।
।हनुमान जी सरोवर में स्नान करने के लिए चले गए।
हनुमान जी सरोवर में स्नान कर रहे थे।
तभी एक मगरमच्छ ने हनुमान जी का पांव पकड़ा।
*सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान।*
हनुमान जी को डुबोना चाहा। तब हनुमानजी ने उस मगरमच्छ की पूंछ पकड़कर पछाड़ा।
वह मगरमच्छ किसी ऋषि के श्राप के कारण मगरमच्छ की योनि में आ गया था ।
हनुमान जी के स्पर्श से वह पाप मुक्त हो गया।
*कपि तव दरष भइऊं निष्पापा।।*
और अपने असली रूप में प्रकट होकर हनुमान जी से कहा।
तुम कपटी मुनि के कहने से इस सरोवर में आए हो ।
वह महात्मा बना हुआ कालनेमि राक्षस है।
*मुनि ने होइ यह निसिचर घोरा।।*
तुम्हारा मार्ग रोकने के लिए उसने यह रूप धारण कर रखा है। हनुमान जी ने कहा ठीक है।
मैं अभी उसको मजे चखाता हूं। हनुमान जी सरोवर से निकल कर आए ।
महात्मा बने कपटी मुनि ने कहा आ जाओ।
अब मैं तुम्हें दीक्षा देता हूं। हनुमान जी ने कहा पहले दक्षिणा ले लो।
फिर यदि जिंदा रहो तो फिर दीक्षा देना ।
*कह कपि मुनि गुरदछिना लेहू।*
*पाछें हमहिं मंत्र तुम्ह देहू।।*
हनुमानजी ने कालनेमि राक्षस का अंत कर दिया ।
*सिर लंगूर लपेटि पछारा।।*
कालनेमि रामजी का स्मरण करता हुआ ऊपर गया।
*राम राम कहि छाडेसि प्राना।।*
हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत पहुंच गए ।
*इसके आगे का प्रसंग अगली पोस्ट में जय श्री राम।।।*