समुद्र पार कर लेने के पश्चात प्रभु श्री राम जी अपने मित्र सुग्रीव जी की गोद में सिर रखकर विश्राम कर रहे हैं।
लक्ष्मण जी विभीषण जी अंगद जी और अनेक वीर वानर वहां विराजमान है ।
श्री राम जी हनुमान जी के अनन्य प्रेम की परीक्षा लेना चाह रहे हैं। श्री राम जी जानते हैं।
हनुमान जी जब लंका में गए थे ।तो उन्होंने रावण में भी मेरे ही दर्शन किए थे।
रावण में भी हनुमान जी अपने प्रभु के दर्शन कर रहे थे।
तभी तो उन्होंने रावण को प्रभु और स्वामी कहकर संबोधित किया था।
इधर राम जी जानना चाह रहे हैं ।कि वह तो लंका का विषय था ।आज मैं अपने समक्ष ही हनुमान जी के अनन्य प्रेम की परीक्षा लूंगा ।इस तरह मन में विचार करके श्री राम जी ने ऊपर आसमान की और देखते हुए अपने सभी मित्रों से एक प्रश्न किया।
कि, अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उत्तर दो।
*कह प्रभु ससि महुं मेचकताई।*
*कहहु काह निज निज मति भाई।*
कि यह बताओ ?चंद्रमा में जो यह काला निशान दिखाई दे रहा है ।वह किस लिए है?
सुग्रीव जी ने उत्तर दिया प्रभु। चंद्रमा में यह जो निशान दिखाई दे रहा है। वह पृथ्वी की परछाई है।
*कह सुग्रीव सुनहु रघुराई।*
*ससि महुं प्रगट भूमि कै झांई।।*
संत व्याख्या करते हैं की चंद्रमा में वह निशान पृथ्वी की परछाई है या नहीं। यह तो परमात्मा जाने।किंतु सुग्रीव जी अपने भाई बाली के डर से सारी पृथ्वी में भागते फिरे थे।
तो उनके मन में वह पृथ्वी ही समाई हुई थी।
इसलिए सुग्रीव जी ने अपनी बुद्धि के अनुसार वही उत्तर दिया।
संत कहते हैं कि जिसके मन में जो चल रहा होता है।
वह वही प्रकट करता है।
सुग्रीव जी के मन में भी वही पृथ्वी का दृश्य चल रहा था।
तो उन्होंने यह उत्तर दिया।
अब राम जी ने विभीषण जी से पूछा?
विभीषण जी ने उत्तर दिया। चंद्रमा का भाई राहू है।
और प्रभु मुझे ऐसा लगता है कि, राहु ने चंद्रमा को लात मारी थी। तो यह निशान उस लात का ही दिखाई देता है।
मारेउ राहु ससहि कह कोई।
उर मंह परी स्यामता सोई।।
अब चंद्रमा को राहु ने लात मारी थी या ना मारी थी ।
किंतु विभीषण जी अभी-अभी अपने भाई रावण से लात खा कर आए थे।
तो उनके मन में तो वही चल रहा था।
इसलिए उन्होंने ऐसा उत्तर दिया।
गोस्वामी जी ने स्पष्ट रूप से विभीषण जी का नाम नहीं लिखा है
किंतु चौपाई यह स्पष्ट करती है कि यह उत्तर विभीषण जी का ही था ।
*मारेउ राहु ससहि कह कोई।*
*उर मंह परी स्यामता सोई।।*
अब प्रभु ने लक्ष्मण जी की और देखा।
तो लक्ष्मण जी ने उत्तर दिया प्रभु मैंने तो चंद्रमा की और देखना ही छोड़ दिया है ।
क्योंकि जब से आप ने चंद्रमा के मुख की तुलना सीता जी के मुख से की है ।तब से मैंने चंद्रमा की ओर नहीं देखा।
इसलिए मैं इस संबंध में कोई उत्तर नहीं दे सकता हूं।
अब बारी हनुमान जी की थी ।भगवान परीक्षा भी हनुमान जी की ही लेना चाह रहे थे।
हनुमान जी भगवान के परम भक्त हैं ।
उनको हर जगह अपने इष्ट प्रभु श्रीराम ही दिखाई देते हैं।
जब हनुमान जी से पूछा गया तो हनुमान जी ने उत्तर दिया।
प्रभु आपका रूप भी सांवला है ।और इस चंद्रमा में जो परछाईं है, वह भी सांवली है।
मुझे लगता है चंद्रमा में जो स्यामलता है वह आपके रूप की ही परछाई है।
कह हनुमंत सुनहु प्रभु।
*ससि तुम्हार प्रिय दास,*
*तव मूरति बिधु उर बसति,*
*सोइ स्यामता अभास।।*
भगवान श्री राम जी हनुमान जी के इन वचनों को सुनकर प्रसन्न हुए।मानो संकेत था ।
कि हनुमान आज तुम मेरी परीक्षा में पास हो गए हो।
तुम्हारी भक्ति अनन्य भक्ति है। अनन्य भक्ति वह है जो जिसमें केवल अपने इष्ट के दर्शन करें।
कहा भी गया है।
*सियाराम मय सब जग जानी*
*करहु प्रणाम जोरि जुग पानी।*
सारी सृष्टि को जो परमात्मा मय जाने वही अनन्य भक्ति है।
उधर जब रावण को यह समाचार मिलता है कि,वानर सेना सहित राम जी, समुद्र पर सेतु बनाकर उसे पार करके इस पार आ गये है
तब वह बड़ा आश्चर्य करता है।
कि क्या सचमुच समुद्र पर सेतु बांध दिया है।?
*बांध्यो बननिधि नीरनिधि,जलधि सिंधु बारीस,*
*सत्य तोयनिधि कंपतिउदधि पयोधि नदीस।।*
रावण बड़ा व्याकुल होकर अपने भवन में जाता है।
भय को भुलाने के उद्देश्य से हंसने की चेष्टा करता है।
निज बिकलता बिचारि बहोरी।
बिहंसि गयउ गृह करि भय भोरी।
।इसके आगे का प्रसंग अगली पोस्ट में जय श्री राम।।