पुराणों के अनुसार महर्षि कश्यप ने
प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से
विवाह किया और उनसे ही सभी
जातियों की उत्पत्ति हुई।
कश्यप एवम उनकी की पत्नी क्रुदु से नाग
जाति (नाग एवम सर्प जाति भिन्न-भिन्न
है) की उत्पत्ति हुई जिसमे नागों के आठ
प्रमुख कुल चले।
इनका वर्णन नीचे दिया गया है:
💐❀अनंत (शेषनाग) –
कद्रू के पुत्रों में सबसे पराक्रमी।
उन्होंने अपनी छली माँ भाइयों का साथ
छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी
आरंभ की।
भाइयों तथा क्रुदु का का विमाता विनता
तथा सौतेले भाइयों अरुण और गरुड़ के
प्रति द्वेष भाव ही उसकी सांसारिक विरक्ति
का कारण था।
उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे
वरदान दिया कि उसकी बुद्धि सदैव धर्म में
लगी रहे।
साथ ही ब्रह्मा ने उसे आदेश दिया कि वह
पृथ्वी को अपने फन पर संभालकर धारण
करे,जिससे कि वह हिलना बंद कर दे तथा
स्थिर रह सके।
शेष नाग ने इस आदेश का पालन किया।
उसके पृथ्वी के नीचे जाते ही सर्पों ने उसके
छोटे भाई, वासुकि का राज्यतिलक कर दिया।
श्रीहरि विष्णु शेषनाग पर ही शयन करते हैं।
जब वसुदेव भगवान कृष्ण को नन्द गाँव
पहुँचाने के लिए यमुना में उतरे तो इन्होने
ही दोनों की रक्षा की थी।
श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण और श्रीकृष्ण
के बड़े भाई बलराम इन्ही के अवतार माने
जाते हैं।
💐❀वासुकि –
प्रसिद्ध नागराज जिसकी उत्पत्ति प्रजापति
कश्यप के औरस और कुद्रू के गर्भ से हुई थी।
इसकी पत्नी शतशीर्षा थी।
नागधन्वातीर्थ में देवताओं ने इसे नागराज
के पद पर अभिषिक्त किया था।
शिव का परम भक्त होने के कारण यह उनके
शरीर पर निवास था।
जब उसे ज्ञात हुआ कि नागकुल का नाश
होने वाला है और उसकी रक्षा इसके भगिनी
पुत्र द्वारा ही होगी तब इसने अपनी बहन
जरत्कारु को ब्याह दी।
जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने जनमेजय के
नागयज्ञ के समय सर्पों की रक्षा की,नहीं तो
सर्पवंश उसी समय नष्ट हो गया होता।
समुद्रमंथन के समय वासुकि को ने पर्वत
का बाँधने के लिए रस्सी की तरह उपयोग
किया गया था।
त्रिपुरदाह के समय वह शिव के धनुष की
डोर बना था।
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💐❀तक्षक –
तक्षक पाताल वासी आठ नागों में से एक है।
यह माता 'कद्रू' के गर्भ से उत्पन्न हुआ था तथा
इसके पिता कश्यप ऋषि थे।
तक्षक 'कोशवश' वर्ग का था।
यह काद्रवेय नाग है।
श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा
परीक्षित को डँसा था,जिससे उनकी मृत्यु हो
गयी थी।
इससे क्रुद्ध होकर बदला लेने की नीयत से
परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्पयज्ञ किया था,
जिससे डरकर तक्षक इंद्र की शरण में गया।
इस पर जनमेजय की आज्ञा से ऋत्विजों के
मंत्र पढ़ने पर इंद्र भी खिंचने लगे,तब इंद्र ने
डरकर तक्षक को छोड़ दिया।
जब तक्षक अग्निकुण्ड के समीप पहुँचा,
तब आस्तीक ऋषि की प्रार्थना पर यज्ञ बंद
हुआ और तक्षक के प्राण बचे।
यह नाग ज्येष्ठ मास के अन्य गणों के
साथ सूर्य रथ पर अधिष्ठित रहता है।
💐❀कर्कोटक –
कर्कोटक शिव के एक गण थे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार सर्पों की माँ
ने साँपों के द्वारा अपना वचन भंग करने से
श्राप दिया कि वे सब जनमेजय के नाग यज्ञ
में जल मरेंगे।
इससे भयभीत होकर शेष हिमालय पर,
कुलिक नाग ब्रह्माजी के लोक में,शंखचूड़
मणिपुर राज्य में,कालिया नाग यमुना में,
धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में,एलापत्र ब्रह्मलोक में,
और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए।
एलापत्र ने ब्रह्म जी से पूछा -"भगवान !
माता के शाप से हमारी मुक्ति कैसे होगी?"
तब ब्रह्माजी ने कहा कि तुम महाकाल वन
में जाकर महामाया के पास सामने स्थित
लिंग की पूजा करो।
तब कर्कोटक नाग वहां आया और उन्होंने
शिवजी की स्तुति की।
शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि -"जो नाग धर्म
का आचरण करते हैं उनका विनाश नहीं होगा।"
इसके उपरांत कर्कोटक नाग वहीँ लिंग में
प्रविष्ट हो गया।
तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं।
मान्यता है कि जो लोग पंचमी,चतुर्दशी और
रविवार को कर्कोटेश्वर की पूजा करते हैं उन्हें
सर्प पीड़ा नहीं होती।
💐❀पद्म –
पद्म नागों का गोमती नदी के पास के नेमिश
नामक क्षेत्र पर शासन था।
बाद में ये मणिपुर में बस गए थे।
असम के नागावंशी इन्हीं के वंश से है और
आज भी भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में नागों
की पूजा महत्वपूर्ण रूप से की जाती है।
ये नागों की सबसे शक्तिशाली जातियों में से
एक मानी जाती है।
💐❀महापद्म –
यह भी नाग जाति का सर्प है जो वासुकि,
तक्षक,कर्कोटक,पद्म आदि के कुल का है।
विष्णु पुराण में सर्प के विभिन्न कुलों में
महापद्म का नाम भी आया है।
पद्म और महापद्म नाग कुल में विशेष प्रीती
थी जो एक दूसरे की सदैव सहायता करते थे।
💐❀शंख –
नागों के आठ मुख्य कुलों में से एक।
कहा जाता है कि शंखों पर जो धारियां
होती है वो दरअसल इसी नाग का चिन्ह है।
ये जाति अन्य नाग जातियों की अपेक्षा
अधिक बुद्धिमान मानी जाती थी।
💐❀कुलिक –
कुलिक नाग जाति नागों में ब्राह्मण कुल की
मानी जाती है जिसमे अनंत भी आते हैं।
ये अन्य नागों की भांति कश्यप ऋषि के
पुत्र थे लेकिन इनका सम्बन्ध सीधे परम्
पिता ब्रम्हा से भी माना जाता है।
जन्मेजय के नाग यज्ञ की प्रतिज्ञा के बाद
ये परमपिता ब्रह्मा की शरण में चले गए।
कैसे हुई नागों की उत्पत्ति ?
हमारे धर्म ग्रंथो में शेषनाग, वासुकि नाग, तक्षक नाग, कर्कोटक नाग, धृतराष्ट्र नाग, कालिया नाग आदि नागो का वर्णन मिलता है। आज हम आपको इस लेख में इन सभी नागो के बारे में विस्तार से बताएंगे। लेकिन सबसे पहले हम आपको इन पराकर्मी नागों के पृथ्वी पर जन्म लेने से सम्बंधित पौराणिक कहानी सुनाते है।
इन नागो से सम्बंधित यह कथा पृथ्वी के आदि काल से सम्बंधित है। इसका वर्णन वेदव्यास जी ने भी महाभारत के आदि पर्व में किया है। महाभारत के आदि पर्व में इसका वर्णन होने के कारण लोग इसे महाभारत काल की घटना समझते है, लेकिन ऐसा नहीं है। महाभारत के आदि काल में कई ऐसी घटनाओं का वर्णन है जो की महाभारत काल से बहुत पहले घटी थी लेकिन उन घटनाओ का संबंध किसी न किसी तरीके से महाभारत से जुड़ता है, इसलिए उनका वर्णन महाभारत के आदि पर्व में किया गया है।
नागो की उत्पत्ति कद्रू और विनता दक्ष प्रजापति की पुत्रियाँ थीं और दोनों कश्यप ऋषि को ब्याही थीं। एक बार कश्यप मुनि ने प्रसन्न होकर अपनी दोनों पत्नियों से वरदान माँगने को कहा। कद्रू ने एक सहस्र पराक्रमी सर्पों की माँ बनने की प्रार्थना की और विनता ने केवल दो पुत्रों की किन्तु दोनों पुत्र कद्रू के पुत्रों से अधिक शक्तिशाली पराक्रमी और सुन्दर हों। कद्रू ने 1000 अंडे दिए और विनता ने दो। समय आने पर कद्रू के अंडों से 1000 सर्पों का जन्म हुआ।
पुराणों में कई नागो खासकर वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कार कोटक, नागेश्वर, धृतराष्ट्र, शंख पाल, कालाख्य, तक्षक, पिंगल, महा नाग आदि का काफी वर्णन मिलता है।
शेषनाग कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग थे। इनका एक नाम अनन्त भी है। शेषनाग ने जब देखा कि उनकी माता व भाइयों ने मिलकर विनता के साथ छल किया है तो उन्होंने अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी।
ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए। इस प्रकार शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया। क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे।
वासुकि नाग धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। ये भी महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान थे। इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है। इनकी बुद्धि भी भगवान भक्ति में लगी रहती है। जब माता कद्रू ने नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए। तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा।
तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया। समय आने पर जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्वान पुत्र को जन्म दिया। आस्तीक ने ही प्रिय वचन कह कर राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्रमंथन के समय नागराज वासुकी की नेती बनाई गई थी। त्रिपुरदाह के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।
तक्षक नाग धर्म ग्रंथों के अनुसार तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।
जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तीक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तीक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए। ग्रंथों के अनुसार तक्षक ही भगवान शिव के गले में लिपटा रहता है।
कर्कोटक नाग कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए।
ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की। शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके उपरांत कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रविष्ट हो गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।
धृतराष्ट्र नाग धर्म ग्रंथों के अनुसार धृतराष्ट्र नाग को वासुकि का पुत्र बताया गया है। महाभारत के युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ किया तब अर्जुन व उसके पुत्र ब्रभुवाहन (चित्रांगदा नामक पत्नी से उत्पन्न) के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में ब्रभुवाहन ने अर्जुन का वध कर दिया। ब्रभुवाहन को जब पता चला कि संजीवन मणि से उसके पिता पुन: जीवित हो जाएंगे तो वह उस मणि के खोज में निकला। वह मणि शेषनाग के पास थी। उसकी रक्षा का भार उन्होंने धृतराष्ट्र नाग को सौंप था। ब्रभुवाहन ने जब धृतराष्ट्र से वह मणि मागी तो उसने देने से इंकार कर दिया। तब धृतराष्ट्र एवं ब्रभुवाहन के बीच भयंकर युद्ध हुआ और ब्रभुवाहन ने धृतराष्ट्र से वह मणि छीन ली। इस मणि के उपयोग से अर्जुन पुनर्जीवित हो गए।
कालिया नाग श्रीमद्भागवत के अनुसार कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ।
अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया। तब कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोडऩे के लिए प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं ओर निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं ओर चला गया।
मूल आलेख~ पंडित देव शर्मा