छोटे बच्चों का विवाह करने की अनुमती सनातन धर्म देता है या ऐसा करना लोगों की मजबूरी थी?
अगर मजबूरी थी, तो उस मजबूरी को किसने बनाया और उसका फायदा किसने उठाया?
अगर इसमें भी विदेशी आक्रमणकारियों का हाथ था तो सनातन धर्म की बदनामी क्यों?
अध्याय की शुरुआत करने से पहले ही आप समझ गए होंगे कि बाल विवाह में भी सनातन धर्म को बदनाम करने की साजिश होगी जो विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा रची गई होगी। और इसको गलत साबित करने के लिए उनके द्वारा अनेकों प्रकार के तथ्य दिए गए परंतु इनके कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। भारत में बाल विवाह जैसी कुप्रथा कभी थी ही नहीं क्योंकि वामपंथियों द्वारा जो तथ्य दिए गए,
वह तर्क हीन हैं।
हमें भी इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि आज तक हमने जो कुछ पढ़ा उसको अगर किनारे रख दिया जाए और असली इतिहास पढ़ा जाए और भारत के साथ-साथ अन्य देशों का इतिहास भी पढ़ा जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। क्योंकि भारत का रिश्ता प्रायः सभी देशों से था, तो भारत का इतिहास भी अन्य देशों के इतिहास से जरूर मिलता होगा उसमें कहीं ना कहीं वह कड़ी जुड़ती होगी जिसे मैं जोड़ना चाहता हूँ।
अगर बाल विवाह जैसी प्रथाओं को देखा जाए तो राजस्थान में प्रायः देखने को मिलता है कि माँ-बाप अपने बच्चों की शादी छोटी उम्र में करा देते थे साथ ही साथ केरल जो साक्षरता दर में सबसे अधिक है वह भी बाल विवाह जैसी प्रथाओं के लिए जाना जाता है। परंतु क्या यह सत्य है?
नहीं...!!
चलिए इसका इतिहास समझने की कोशिश करते हैं :-
राजस्थान, जो अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध है जहाँ अनेकों वीरों ने जन्म लिया है। ऐसी धरती जो सदैव सनातन धर्म की रक्षा के लिए अनेकों वीरों को जन्म देती रही, उस धरती पर सनातन धर्म को बदनाम करने की साजिश किसी सनातनी द्वारा तो नहीं की जाएगी! तो फिर इसके पीछे किसका हाथ था? यह सोचने वाली बात है!
बच्चों की शादी, खासकर लड़कियों की शादी छोटी उम्र में करा दी जाती थी। ऐसा इसीलिए नहीं कि सनातन में ऐसी कोई प्रथा है बल्कि इसीलिए,
क्योंकि विदेशी आक्रांताओं द्वारा हमारी माताओं बहनों के साथ, भारतीय नारियों के साथ जो अत्याचार किया जाता था उसे कोई मां-बाप नहीं देखना चाहता था। इसीलिए उनकी शादी जल्दी करा दी जाती थी। परंतु विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ बोलने की जगह वामपंथी द्वारा सनातन धर्म को ही निशाना बनाया गया। निशाना तो बनाया ही, निशाना बनाने के साथ-साथ उन्होंने भारतीय लोगों को भी यह बताया कि उनके धर्म में कमी है। जो कमी कभी थी ही नहीं वह कमी उन्होंने हमारी किताबों में लिख दी जिसे हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं। और हमारे मन में, यह प्रश्न भी नहीं उठता कि ऐसा क्यों?
मैं फिर वही कहता हूँ कि सनातन धर्म में स्त्रियों का सम्मान सदैव किया जाता है पर वामपंथियों द्वारा बताए गए इतिहास में हमेशा उल्टा ही दर्शाया जाता है। इसमें कमी किसकी है यह हमें सोचना चाहिए!
आइए अब हम उन तर्कों को देखते हैं जो धर्म के सौदागरों द्वारा दिए गए :-
सबसे पहले तो यही तर्क दिया जाता है कि बाल विवाह जैसी प्रथा आर्यों के साथ भारत आई।
अब उनसे पूछना चाहिए कि, "आर्य क्या भारत के बाहर से आए थे? और आए थे तो किस देश से आए थे?
और जिस देश से आए थे,
तो उस देश के इतिहास में ऐसा क्यों नहीं लिखा गया कि आर्य हमारे देश से भारत गए थे?"
सब गोलमाल बातें इन वामपंथियों द्वारा बनाई गईं और भारतीय संस्कृति को धूमिल करने की पूरी-पूरी कोशिश की परंतु हमारी संस्कृति इतनी धन्य है, इतनी मजबूत है कि ये उसे धूमिल नहीं कर पाए। क्योंकि सत्य को बहुत दिनों तक छुपाया नहीं जा सकता, वह कभी ना कभी सामने आ ही जाता है।
एक अन्य तर्क जो वामपंथियों द्वारा दिया जाता है वह यह है कि भारत में निर्धनता बहुत थी इसीलिए माँ-बाप अपने बच्चों की शादी खासकर अपनी बेटियों की शादी छोटी उम्र में करा देते थे जिससे उन्हें दहेज नहीं देना पड़ता था।
अब इनसे कोई पूछे कि सौने की चिड़िया किसे कहा जाता था?
सीधा सा उत्तर है कि भारत को सौने की चिड़िया कहा जाता था। अब सौने की चिड़िया कहते हैं तो इसका अर्थ यही तो है कि भारत के लोगों के पास खूब सौना होता होगा तो गरीबी कहाँ से आ गई। दूसरा दहेज से बचने के लिए जल्दी शादी करा देते थे तो दहेज प्रथा का सही रूप तो हम पिछले अध्याय में पड़ ही चुके हैं। दहेज लालच वश नहीं लिया जाता था अपितु अपनी बेटी की सुविधा के लिए ससुराल में जो सामान भेजे जाते थे,
जो सहायता भेजी जाती थी उसे दहेज कहते थे। यह लालच के लिए नहीं लिया जाता था, और ना ही दिया जाता था। वामपंथियों का इतिहास यहाँ भी तर्क हीन साबित हुआ!
एक और बात कही जाती है कि भारत में साक्षरता की बहुत कमी थी। यहाँ के लोग पढ़ना लिखना नहीं जानते थे,
अनपढ़ होने की वजह से ही हमारे यहाँ बहुत सारी कुप्रथाएं थीं। इसलिए विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हमें पढ़ाया गया।
अब यह तो अंग्रेजों के दस्तावेज खुद बोलते हैं कि भारत में उनके आने से पहले साक्षरता कितनी थी। यहाँ स्थित नालंदा विश्वविद्यालय विश्व भर में प्रसिद्ध था जहाँ पूरे विश्व से पढ़ने के लिए विद्यार्थी आते थे। इस विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी द्वारा जला दिया गया परंतु यह हमारी किताब कभी नहीं बताएंगी। ऐसा सिर्फ एक नहीं,
अपितु अनेकों विश्वविद्यालय थे। विक्रमशिला विश्वविद्यालय, तक्षशिला विश्वविद्यालय, आदि ऐसे विश्वविद्यालय थे जो अपनी शिक्षा के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध थे परंतु यह हमारी किताबों से लुप्त हैं। ऐसे देश की साक्षरता कम थी यह बात हजम नहीं होती!
ऐसे न जाने कितने ही तर्क दिए गए जिन पर विश्वास करना थोड़ा कठिन हो जाता है तब जब हम सच्चाई जानते हों!
कौमार्य का भंग होना,
लड़की की जिम्मेदारी से मुक्त होना,
संयुक्त परिवार होना, ऐसे न जाने कितने ही तर्क दिए गए जिनका आगे-पीछे का कोई तुक नहीं बनता। परंतु हमारी शिक्षा व्यवस्था ने इसे आज भी अपना रखा है!
हम मानते हैं कि बच्चों का विवाह कराया जाता था,
परंतु उसके पीछे सनातन धर्म का कोई हाथ नहीं था,
उसके पीछे लड़कियों को प्रताड़ित करने जैसा कोई उद्देश्य नहीं था। यह तो सिर्फ लड़कियों के मान सम्मान को बचाने के लिए,
विदेशी आक्रमणकारियों से उनकी रक्षा करने के लिए किया जाता था यह कोई प्रथा नहीं थी यह उपाय मात्र था। परंतु हमारी इतिहास की किताबों द्वारा हमें सिर्फ वही बात बताई गई जिससे हमारे मन में हमारे धर्म के प्रति हीन भावना उत्पन्न हों।
अब जानते हैं कि बाल विवाह का अंत कैसे हुआ?
इसके विरुद्ध क्या-क्या नियम बनाए गए और किसके द्वारा बनाए गए?
यह भी एक चर्चा का विषय है!
बाल विवाह को समाप्त करने के लिए इतिहास में अनेकों नाम दिए जाते हैं जिनमें प्रमुख राजा राममोहन राय, केशव चंद्र सेन आदि नाम शामिल हैं जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर स्पेशल मैरिज एक्ट लागू करवाया। जिसके तहत लड़कों की शादी की उम्र 18 वर्ष और लड़कियों की शादी की उम्र 14 वर्ष कर दी गई। परंतु एक बात सोचने की है कि जिन ब्रिटिशों ने भारत पर हमला किया, भारतीय नारियों की इज्जत लूटी,
उनको बंदी बनाकर रखा,
उनको प्रताड़ित किया, जिन विदेशियों द्वारा महिलाओं का शोषण किया गया उन विदेशियों द्वारा समाज की महिलाओं का दुख नहीं देखा गया। कमाल की बात बनाते हैं ये अंग्रेज!
यह चलन अब तो प्रतिबंधित है परंतु हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि यह भारत की देन नहीं है,
सनातन धर्म की देन नहीं है,
अपितु यह विदेशी आक्रांताओं द्वारा दिया गया तोहफा है जिसको आज तक हमने सहेज के रखा है!
वामपंथियों द्वारा जिन-जिन प्रथाओं को गलत दर्शाया गया, उन सभी को हमारे धार्मिक ग्रंथों से या फिर किसी ना किसी भगवान के अवतार से जरूर जोड़ा गया था जिस से वह सही प्रतीत हो। परंतु वे यह भूल गए कि भारत में एक नहीं अपितु अनेकों ग्रंथ हैं जो एक दूसरे से मिलते हैं, जिनका आपस में सम्बंध होता है। बाल विवाह के विषय में कहा गया कि राम जी और सीता जी का विवाह बाल्यावस्था में हो गया था जिसके पीछे वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड के श्लोकों को साक्ष्य के रूप में दिया जाता है जिसमें माता सीता रावण को अपना परिचय देती हैं।
वाल्मीकि रामायण के सैंतालीसवें सर्ग के कुछ श्लोकों को आपके सामने रखता हूँ :-
उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने।
भुंजना मानुषान् भोगान् सर्व कामसमृद्धिनी ।। 4 ।।
अर्थात :- विवाह के उपरांत मैंने बारह वर्ष तक इक्ष्वाकु वंशियों की राजधानी अयोध्या में रह कर,
मनुष्य दुर्लभ भोग भोगे और अपने सब मनोरथों को पूर्ण किया।
तत्र त्रयोदशे वर्षे राजामंत्रयत प्रभुः।
अभिषेचयितुं रामं समेतो राजमंत्रिभिः ।। 5 ।।
अर्थात :- तदनन्तर तेरहवें वर्ष महाराज दशरथ ने श्रेष्ठ मंत्रियों से परामर्श कर,
श्रीरामचन्द्र का अभिषेक करने का विचार किया।
तस्मिन्संम्रियमाणे तु राघवस्याभिषेचने।
कैकेयी नाम भर्तारमार्याः सा याचते वरम् ।। 6 ।।
अर्थात :- श्रीरामाभिषेक की सब तैयारियाँ होने लगीं,
तब कैकेयी ने, जो मेरी सास लगती हैं,
महाराज से वर मांगा।
परिगृह्य तु कैकेयी श्वसुरं सुकृतेन मे।
मम प्रव्राजनं भर्तुर्भरतस्याभिषेचनम् ।। 7 ।।
अर्थात :- कैकेयी जी ने,
मेरे ससुर को धर्म के वश में कर,
मेरे पति के लिये वनवास और भरत के लिये राज्याभिषेक चाहा।
द्वावयाचत भर्तारं सत्यसंधं नृपोत्तमम्।
नाद्य भोक्ष्ये न च स्वप्स्ये न च पास्ये कथञ्चन ।। 8 ।।
अर्थात :- सत्यप्रतिज्ञ व पतिश्रेष्ठ महाराज दशरथ से ये दो वर माँगे। साथ ही यह भी कहा कि, मैं आज न किसी प्रकार भी खाऊँगी,
न पीऊंगी और न सोऊंगी।
एष मे जीवितस्यान्तो रामो यद्याभषिच्यते।
इति ब्रुवाणां कैकेयीं श्वशुरो मे स मानदः ।। 9 ।।
अर्थात :- यदि श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ तो मैं अपने प्राण दे दूँगी। जब कैकेयी ने इस प्रकार कहा,
तब बहुत सन्मान करने वाले मेरे ससुर महाराज दशरथ जी ने
अयाचतार्थैरन्वथैर्न च याञ्चां चकार सा।
मम भर्ता महातेजा वयसा पञ्चविंशकः ।। 10 ।।
अर्थात :- कैकेयी से विविध प्रकार के अन्य पदार्थ माँगने के लिये कहा- परन्तु उसने और कुछ न चाहा। उस समय मेरे पति महा तेजस्वी श्रीरामचन्द्र की उम्र 25 वर्ष की थी।
अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते।
रामेति प्रथितो लोके गुणवान् सत्यवाञ्शुचिः ।। 11 ।।
विशालाक्षो महाबाहुः सर्वभूतहिते रतः।
कामार्तस्तु महातेजाः पिता दशरथः स्वयम् ।। 12 ।।
कैकेय्याः प्रियकामार्थं तं रामं नाभ्यषेचयत्।
अभिषेकाय तु पितुः समीपं राममागतम् ।। 13 ।।
अर्थात :- और मेरी आयु जन्म काल से गणना करके 18 वर्ष की थी, श्रीरामचन्द्र जो लोक में प्रसिद्ध हैं और जो सुशील,
सत्यवादी, पवित्र, बड़े नेत्रों और लंबी वाहुओं वाले हैं तथा सब प्राणियों के हितकारी हैं- उनका, महा तेजस्वी महाराज दशरथ ने कामासक्त हो,
कैकेयी को प्रसन्न करने के लिए स्वयं राज्याभिषेक न किया।
इन श्लोकों से पता चलता है कि माता सीता जी के विवाह के समय उनकी उम्र 6 वर्ष थी और राम जी की आयु 13 वर्ष थी, क्योंकि विवाह के उपरांत 12 वर्षों तक उन्होंने महल में निवास किया और फिर जब राम जी को वनवास हुआ तब उनकी आयु 18 वर्ष थी और राम जी की आयु 25 वर्ष थी।
जबकि तुलसीदास जी रामायण में विवाह के समय राम जी की उम्र 27 वर्ष और सीता जी की उम्र 18 वर्ष दे रखी है।
वर्ष अठ्ठारह की सिया,
सत्ताईस के राम।
कीन्हो मन अभिलाष तब,
करनो है सुर काम।।
अर्थात :- तुलसीदास जी सीता जी के विवाह के समय को वर्णित करते हुए कहते हैं कि सीता जी की आयु 18 है और श्री राम जी की आयु 27 है। दोनों एक दूसरे को देख के मोहित हो रहे हैं और उनके मन में विवाह की एक मोहक अभिलाषा है।
(सुर काम अर्थात नेक कार्य, संसार के हित में किया गया कार्य। यह बात हम सब जानते हैं कि श्री राम और माता सी धरती पर अधर्म का नाश करने के लिए ही आए थे इसीलिए दोनों एक दूसरे को देख के मन ही मन प्रसन्न हो रहे हैं।)
परंतु सोचने वाली बात ये है दोनों ही रचनाकारों ने एक ही व्यक्ति की जीवनी लिखी है, अर्थात दोनों ही कवियों द्वारा राम जी के जीवन का वर्णन किया गया है, तो फिर दोनों की रचनाओं में राम जी की आयु में अन्तर कहाँ से आ गया!
और चलो मान भी लेते हैं कि राम जी आयु 13 वर्ष और सीता जी आयु 6 वर्ष रही होगी तो भगवान श्री राम तो हजारों वर्षों तक जीए भी थे।
दशवर्षसहस्राणि दशवर्षशतानि च।
रामो राज्यमुपासित्वा ब्रह्मलोकं प्रयास्यति।।
(वाल्मीकि रामायण, बाल कांड, सर्ग 1, श्लोक 97)
अर्थात:- भगवान श्री राम जी ने 11,000 वर्षों तक शासन किया तत्पश्चात वह ब्रह्मलोक को चले गए।
अगर उनसे ही तुलना करनी है तो कम से कम 1000 साल तो जी के दिखाओ!
वाल्मीकि रामायण में लिखे गए इस श्लोक का खंडन बहुत से संस्कृत के विद्वानों द्वारा किया जाता है। उनका मानना है कि ये श्लोक अंग्रेजों द्वारा प्रक्षिप्त किया गया है,
अर्थात अंग्रेजों द्वारा इसको गलत ढंग से पेश किया गया है। अब आप कहेंगे कि अंग्रेजों को तो संस्कृत आती नहीं थी,
तो फिर उन्होंने ऐसा कैसे किया।
मैं बताता हूँ, अंग्रेजों में से एक व्यक्ति था मैक्स मुलर जिसे "भारतीय शिक्षा मित्र" तक कहा गया क्योंकि उसे संस्कृत आती थी, और इसी कि सहायता से अंग्रेजों ने हमारे ही धार्मिक ग्रंथों में फ़ेर बदल कर दिए। और ये बदलाव ऐसे होते थे कि देखने और सुनने में सच लगते थे। क्योंकि भारत में गुरुकुल प्रणाली लुप्त होती जा रही है, इसीलिए किसी को संस्कृत आती भी नहीं है, और समय के साथ धीरे-धीरे भाषाओं में भी अन्तर आता जा रहा है। ऐसे में सतयुग के काल मैं लिखी गई रामायण आज के समय में समझना मुश्किल हो सकता है।
एक और उदाहरण से समझते हैं,
ये बात हम सबको पता है कि माता सीता की तीन बहनें उर्मिला, माधवी और शुतकीर्ति का विवाह राम जी के तीन भाइयों लक्षमण, भरत और शत्रुघ्न से कराया जाता है जिसके पश्चात वे सभी अपने-अपने जीवन साथी के साथ रहने लगीं। वाल्मीकि रामायण के बाल्यकांड के इस श्लोक के अनुसार :-
रेमिरे मुदिता: सर्वा भर्तृभि: सहिता रह:।
(77 वा सर्ग,
15 वा श्लोक)
यहाँ एक बात सोचने की है कि माता सीता जब 6 वर्ष की थीं तो उनकी बहनों की आयु क्या रही होगी और फिर राम जी के भाइयों की आयु क्या रही होगी? सोचने से ही समझ आ जाता है कि राम जी और सीता जी की आयु के सन्दर्भ में जो बात कही गई है वह सब झूठ है।
परंतु अंग्रेज यह भूल गए की रामायण एक बहुत बड़ा ग्रंथ जिसमें अनेकों श्लोक हैं और प्रत्येक श्लोक को विक्षिप्त करना उनके बस का नहीं था! क्योंकि जब विश्वामित्र जी दशरथ जी से, राम जी को और लक्ष्मण जी को अपने साथ ले जाने आये थे तब अयोध्या आए महर्षि विश्वामित्र को महाराज दशरथ कहते हैं कि, "राम तो अभी किशोर अवस्था में चल रहा है, यह भयंकर राक्षसों से कैसे लड़ेगा?"
सब सुत प्रिय मोहि प्रान की नाईं। राम देत नहिं बनइ गोसाईं।।
कहँ निसिचर अति घोर कठोरा। कहँ सुंदर सुत परम किसोरा।।
अर्थात:- सभी पुत्र मुझे प्राणों के समान प्यारे हैं, उनमें भी हे प्रभो! राम को तो देते नहीं बनता। कहाँ अत्यन्त डरावने और क्रूर राक्षस और कहाँ परम "किशोर अवस्था" के मेरे सुंदर पुत्र!
किशोरावस्था की उम्र 19 वर्ष तक होती है, परंतु यहाँ किशोर शब्द का प्रयोग उम्र बताने के लिए नहीं अपितु पिता का अपने पुत्र के प्रति प्रेम दिखलाने को किया गया है। क्योंकि पुत्र कितना भी बड़ा हो जाए, वह पिता के लिए छोटा ही रहता है।
और यहाँ तो विश्वामित्र जी ने राक्षसों के संहार के लिए पुत्रों को मांगा था, तो कोई पिता तो अपने अधिक उम्र के बच्चों को भी ना भेजे! पर यह सब राक्षसों से संसार के संरक्षण के लिए था, जो सिर्फ राम जी के हाथों ही सम्भव था।
इस कथन से हमें पता चलता है कि श्री राम जी की अवस्था किशोरावस्था से तो अधिक ही रही होगी। यह बात हमें आगे पता चलती है जब वाल्मीकि जी ने राम जी ने राम जी की कद-काठी का वर्णन किया।
अरुन नयन उर बाहु बिसाला।
नील जलज तनु स्याम तमाला।।
कटि पट पीत कसें बर भाथा।
रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा।।
अर्थात:- भगवान के लाल नेत्र हैं, चौड़ी छाती और विशाल भुजाएँ हैं, नील कमल और तमाल के वृक्ष की तरह श्याम शरीर है, पीताम्बर पहने हुए, कमर में सुंदर तरकस कसे हुए हैं। दोनों हाथों में सुंदर धनुष और बाण हैं।
ऐसी कद-काठी तो किसी वयस्क की ही हो सकती है! और यह वर्णन मिथिला जाने से पहले का है जब राम जी सीता जी से मिले भी नहीं थे। जिन लोगों को राम और सीता के विवाह की आयु के बहाने हिंदू संस्कृति और परंपराओं का उपहास करना है,
उनकी समस्या सीता और राम का विवाह नहीं,
बल्कि कुछ ओर है। हिंदू-विरोध की दुर्भावना उन्हें इस स्तर तक गिरा देती है, यह सोचने का विषय है।
इन साक्ष्यों के माध्यम से हम कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति में बाल विवाह जैसी कुप्रथा नहीं थी और ऐसे ना जाने कितने ही साक्ष्य मैं आपको दिखा सकता हूँ जो यह दर्शाते हैं कि भारतीय संस्कृति में बाल विवाह जैसे प्रथाएं नहीं थीं।
धर्मशास्त्र की बात की जाए तो वहाँ भी दस वर्ष तक की बालिका को "कन्या" और सोलह वर्ष तक की बालिका को "बाला" कहा गया है। कुछ ग्रंथों का मत है कि 16 वर्ष की आयु तक स्त्री "कन्या" होती है। वहीं अनेक धर्मशास्त्रीय ग्रंथों की मान्यता है कि जब तक विवाह न हो जाए,
अविवाहिता स्त्री कन्या होती है। कन्या को लेकर शास्त्रों और शास्त्रकारों के अलग-अलग मत हैं। ऐसे में निश्चित तौर पर ये नहीं कहा जा सकता कि कन्या का अर्थ दस वर्ष से छोटी बालिका ही होती है। अविवाहित बालिका भी कन्या होती है,
भले ही उसकी उम्र इससे अधिक हो। इसीलिए भारतीय समाज में लड़की के विवाह के लिए कन्यादान शब्द प्रचलन में है।
वयस्क होने की उम्र विभिन्न काल खंडों में अलग-अलग हो सकती हैं, इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि पहले मनुष्य अधिक समय तक जीवित रहते थे,
आज ऐसा नहीं है और हो सकता है भविष्य में ऐसा भी ना रहे। पर इस को आधार मानकर सनातन धर्म को बदनाम करना गलत होगा।
पर हमारी मजबूरी देखिए कि आज हमको हमारे ही धर्म ग्रंथों को सही साबित करने के लिए कितने ही प्रयास करने पड़ते हैं! परंतु सनातन धर्म कभी रुकना नहीं सिखाता, इसीलिए हम यह प्रयास करते रहेंगे!
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