आज एक विशेष दिन है आज के सात सौ वर्ष पूर्व 26 अगस्त 1303 को "महारानी पद्मिनी" के जौहर ( उच्चतम बलिदान दिवस) पर महारानी पद्मिनी और उनके साथ जौहर करने वाली 16000 क्षत्राणी विरांगनाओ को मेरा शत शत नमन।
राजस्थान का इतिहास तो साका और जौहर से भरा पडा है मुख्यतः यदि मै चितौड़ सिसोदिया घराने कि बात करु जो "बाप्पा रावल" का घराना है। उस घराने में ही तीन तीन जौहर, साका हुआ है। साका--अर्थात वीर अपने माथे पर केसरिया पगड़ी बांध कर अंतिम युद्ध के लिए तैयार होते थे। चाहे शत्रु कि कितनी भी बड़ी फौज हो लेकिन जब साका का निर्णय राज समाज ने ले लिया तो मृत्यु के अंतिम क्षण तक मातृभूमि, धर्म के लिए लडना है ""विजय या विरगती"" ।
जौहर--
जब पुरुष साका के लिए तैयार हो जाते थे तो युद्ध का निर्णय किसके पक्ष में होगा यह अनिश्चित रहता था यदि शत्रु सेना विजयी हुई तो क्या होगा? जब आक्रमणकारी मलेछ विजयी होंगे तो वो रनिवास के महारानियों के आत्मसम्मान को, उनकी पवित्रता को नष्ट करने का प्रयास करते थे क्योंकि 712 के आक्रमण के बाद भारत में एक आतंकवादी विचार जो संवेदन शून्य थी उसका उदभव हुआ। अत: हिन्दू विरांगना न केवल क्षत्राणिया अपने पवित्र, अपने सम्मान, स्वभिमान, गौरव के रक्षार्थ संपूर्ण शृंगार के जय भवानी के उदघोष के साथ पवित्र अग्नि कुंड में स्वयं को समर्पित कर देती थी, वह जौहर कुंड आज भी हम सभी के लिए वंदनीय है !
प्रथम जौहर----
मेवाडनाथ राणा रतन सिंह जी को धोखे से बंदी बना लेने पर , फिर जब युद्ध हुआ तो राणा जी के नेतृत्व में साका हुआ और माँ पद्मिनी के साथ 16000 विरांगनाओ ने आज ही के दिन 26 अगस्त 1303 में जौहर किया था।
दुसरा जौहर-
1535 में जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चितौड़ पर आक्रमण किया तब उस समय मेवाड़नाथ "राणा सांगा" जीवित नहीं थे, शासन का कार्यभार उनकी धर्मपत्नी "राणा उदय सिंह जी" की माता और राणा प्रताप की दादी "महारानी कर्णावती" (बुंदी नरेश की पुत्री थी) के हाथ में उन्होंने शत्रु कि अधिनता स्विकार नहीं किया और 13000 स्त्रियों के साथ जौहर के अग्नि में स्वयं को समर्पित कर दिया।
तीसरा जौहर----
1567 में हुआ जब अकबर ने चितौड़ पर आक्रमण किया 1 लाख कि सेना के साथ लेकिन चितौड़ कि रक्षा हेतु 20000 से कुछ ज्यादा की सेना थी जिसमें राण चुंंडावत जी, जयमल राठौड़ जी, ईशरदास जी, फत्ता, कल्ला और राजा सुरजमल्ल जैसे महानायक योद्धा थे जिन्होंने अपना आत्मोत्सर्ग किया, साका किया इसी युद्ध में और महारानी शारदा बाई, मदलसा बाई, आशा बाई परमार आदि महारानियो के नेतृत्व में हजारों विरांगनाओ ने जौहर किया।
जौहर की गाथाओं से भरे पृष्ठ भारतीय इतिहास के शौर्य स्वाभिमान की अमुल्य धरोहर है।
"वंदेमातरम्"