भारतीय जनता पार्टी ने यूसीसी का अपना तीसरा मुख्य एजेंडा लागू करने के लिए आखिर छोटे से सीमावर्ती राज्य उत्तराखंड को प्रयोगशाला क्यों बनाया? यह सवाल कईं दिनों से पूछा जा रहा है! आखिर इस शांत राज्य को परीक्षण की भूमि बनाने के पीछे मंशा क्या है? हम जानते हैं कि यूसीसी मुख्य रूप से आरएसएस का एजेंडा है और संघ का थिंक टैंक बिना वजह कोई फैसला नहीं करता!
यह ठीक है कि इस बॉर्डर क्षेत्र में जनसंख्या संतुलन तेजी से बदला है। सन 2000 में 13 जनपदों का उत्तरांचल बनते समय यहां मुस्लिमों की संख्या मात्र दो प्रतिशत थी। लेकिन 23 वर्षों में यह संख्या बढ़कर 14% हो गई है। जाहिर है इस दौरान बॉर्डर स्टेट की डेमोग्राफी बदलने के लिए तेज प्रयास हुए हैं। इसी के साथ ही उधमसिंह नगर और नैनीताल जनपदों में सिक्खों की आबादी भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है। मुस्लिम आबादी बढ़ने का ज्यादा असर हरिद्वार जिले पर पड़ा है। क्या उन सीमावर्ती जनपदों की डेमोग्राफी षड्यंत्र के तहत बदली जा रही है, जहां से पलायन हो रहा है?
जहां तक डेमोग्राफी बदलने की बात है और कईं राज्य उसके शिकार हैं। केरल और बंगाल कहीं आगे हैं। तो फिर यूसीसी ड्रॉफ्ट तैयार करने का काम उत्तराखंड में क्यों हुआ। इसका कोई उचित कारण तो दिखाई नहीं देता। लगता है कि भाजपा ने एक करोड़ से भी कम आबादी वाले राज्य में प्रयोग कर उसका असर देखने का प्रयास किया है। यह प्रयोग शायद सफल रहा।
ड्रॉफ्ट तैयार है और अभी तक कोई जन विरोध सामने नहीं आया है। उत्साहित केंद्र सरकार ने केंद्रीय स्तर पर ड्रॉफ्ट तैयार कर लिया है जो काफी हद तक उत्तराखंड के ड्राफ्ट से लिया गया है। यह ड्राफ्ट सर्वोच्च न्यायालय की निवर्तमान जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में तैयार हुआ है। संभवतः इसकी तैयारी में केंद्र की राय का भी शुमार किया गया है।
यूसीसी लागू होगा तो निश्चित रूप से देश की तरक्की का रास्ता और अधिक साफ हो जाएगा। मुस्लिम औरतों को वास्तव में इसका बड़ा लाभ होगा। नुकसान किसी भी धर्मावलंबी का नहीं होगा। लेकिन कहां साहब? लोकसभा चुनाव नजदीक हैं। उससे पहले चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। साफ बात है कि राजनीति तो खुलकर होनी है। यह तय है कि यूसीसी को लेकर जिस प्रकार विदेशी टूल किट एक्टिवेट हुई हैं, शाहीन बाग जैसे मोर्चे फिर से खोले जा सकते हैं।
एक बात तो विचारणीय है। उत्तराखंड में यूसीसी ड्रॉफ्ट बन गया है, प्रकाशन चल रहा है। सरकार कह चुकी है ड्राफ्ट को जैसे का तैसा पारित करा लिया जाएगा। लेकिन केंद्र में विधि आयोग अभी ड्राफ्ट पर काम कर रहा है। तो क्या इसी संसदीय सत्र में यूसीसी पारित हो पाएगा? संसद सत्र 20 जुलाई को शुरू होकर 21 दिनों में समाप्त हो जाएगा। यद्यपि कांग्रेस और कुछ विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद सरकार के लिए इसे दोनों सदनों में पास कराना उतना मुश्किल नहीं है। यूसीसी कानून बन गया तो इसका समर्थन करने वाले दलों को खासा चुनावी लाभ मिलने वाला है।
NOTE : विरोधी अंतिम क्षण तक विरोध करेंगे, समर्थकों को भी अपना काम ढंग से करना होगा...