वर्तमान में भयानक दुष्प्रचार चल रहा है कि, कृष्ण जी की 16 हजार पत्नियों वाली बात मिलावट है, पंडो ने मिला दी है। लेकिन ये मिलावट मानने वाले सिर्फ हर प्रसंग में मिलावट - मिलावट चीखना जानते है। इनकीं वजह से सामान्य व्यक्ति बिना वजह भ्रम में पड़ जाता है की क्या सही है और क्या गलत।
इससे संबंधित प्रसंग श्रीमद्भागवतपुराण में प्राप्त होता है, और वहा स्पष्ट लिखा है-
आसां मुहूर्त एकस्मिन्नानागारेषु योषिताम् ।
सविधं जगृहे पाणीननुरूपः स्वमायया ॥
(तृतीय स्कन्ध, अध्याय 3, श्लोक 8)
अर्थ - तब भगवान् ने अपनी निजशक्ति योगमाया से उन ललनाओं के अनुरूप उतने ही रूप धारणकर उन सबका अलग-अलग महलों में एक ही मुहूर्त में विधिवत् पाणिग्रहण किया।
यहां लिखा है कि भगवान श्री कृष्ण जी ने अपने उतने ही रूप बनाएं जितनी स्त्रियों को राक्षस हर कर लाया था। उसके बाद 1 ही मुहूर्त में उन से विवाह कर लिया। अब ये तो हुई भगवान की बात की भगवान कुछ भी कर सकते है, अनेक रूप भी धारण कर सकते है परंतु जो कहते है कि श्री कृष्ण भगवान नही हैं, अवतार नही हैं, वो तो मनुष्य थे और योगी थे उनके लिए योग दर्शन से प्रमाण प्रस्तुत है -
निर्माणचित्तान्यस्मितामात्रात् ।। (कैवल्यपाद, सूत्र 4)
व्यासभाष्य - चित्त के कारण अस्मितामात्र को लेकर चित्तोंका निर्माण करता है उससे सचिन्त होते हैं।
अर्थात योगी अस्मितामात्र से निर्माण-चित्तोंको अपने संकल्पमात्रसे निर्मित करता है।(बनाता है) इन निर्माण - चित्तोंसे योगी बनाये हुए सब शरीर चित्तसंयुक्त होते हैं।
तो योगदर्शन के अनुसार योगी की एक क्षमता पता चलती है कि वो एक ही समय पर अनेक शरीर बना सकता है। तो श्री कृष्ण जी से बड़ा योगी कौन है? उन्होंने भी उस समय अनेक शरीर धारण कर एक ही समय में विवाह कर लिया।
श्रीमद्भवतगीता में भी भगवान श्री कृष्ण कहते है -
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः । (4/9)
हे अर्जुन मेरा जन्म और कर्म दिव्य है।
यहां भगवान कह रहे है कि मेरा जन्म और कर्म दोनों दिव्य है सामान्य नही है। तो फिर हम भगवान के कर्मो को सामान्य दृष्टि से क्यों देखते है?
वास्तव में हम अपनी ही अक्षमताओं का आरोप भगवान पर करते हैं।
साभार सत्यम् शर्मा
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