संत समाज लगातार धर्म रक्षा के लिए कार्यरत है, और यही कारण है की समय समय पर हमारे संत समाज को बदनाम करने के लिए अनेकों षड्यंत्र रचे जाते हैं ताकि संतों और आम जनमानस के बीच दूरियां बढ़ें और समाज कभी सुरक्षित ना हो पाए। लेकिन हमारे संत अपना काम आगे बढ़ते रहते हैं
ऐसे ही एक युवा संत हैं स्वामी दीपांकर जो एक अदभुद यात्रा कर रहे हैं " भिक्षा यात्रा" जिसके माध्यम से ये लोगों को जातिवाद और कहा छोड़ने का संकल्प दिलवा रहे हैं और अब तक 204 दिनों की यात्रा के दौरान लगभग 5 लाख हिंदुओं ने संकल्प लिया है
स्वामी दीपांकर इस दीक्षा यात्रा के 204 वें दिन उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और सहारनपुर जिला के देहात की यात्रा पर है। स्वामी दीपंकर जी इस भिक्षा यात्रा में लोगों से ली जाने वाली दो भिक्षा ओं के बारे में बताते हुए कहते हैं कि पहली भिक्षा जातियों में ना बढ़कर एक हिंदू होने की भिक्षा है और दूसरी भिक्षा है एक युद्ध नशे के विरुद्ध।
हिंदुओं को संगठित करने के लिए भिक्षा यात्रा की जरूरत बताते हुए स्वामी दीपंकर जी कहते हैं 1990 में जब कश्मीर से पंडित निकले थे तो वह हिंदू नहीं थे वह पंडित बनकर निकले थे अगर वह हिंदू होते तो समाज साथ खड़ा होता . एक होना बहुत जरूरी जरूरी है अगर एक नहीं होंगे और इसी प्रकार जाती है जनगणना होती रहेंगी
वे आगे कहते हैं, “जाति की जनगणना होगी तो आपको एक बार फिर से बाँटा जाएगा। आप सोचिए…. कभी क्रिश्चियन में पिछड़ा-अति पिछड़ा नहीं हुआ, मुस्लिम में पिछड़ा- अति पिछड़ा नहीं हुआ, मगर हिंदुओं में पिछड़ा, अति पिछड़ा और महा पिछड़ा सब हो गया।”
हिंदुओं को जोड़ने के लिए ‘भिक्षा यात्रा ही क्यों’ के सवाल पर स्वामी दीपांकर कहते हैं कि यह प्राचीन भारतीय परंपरा है। भारत में बुद्ध ने भिक्षा माँगी है, दधीचि ने भिक्षा माँगी है और गुरुकुल परंपरा में ब्रह्मचारियों को भिक्षा माँगने की अनुमति थी। उनका कहना है कि वे उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भिक्षा यात्रा निकाल रहे हैं।
स्वामी दीपांकर का कहना है कि उनकी इस भिक्षा यात्रा को लोगों का अपार समर्थन मिल रहा है। इस यात्रा में अब तक 5 लाख से अधिक लोगों को संकल्प करा चुके हैं। इन लोगों ने जातियों में ना बँट करके एक हिंदू होने का संकल्प लिया है। स्वामी दीपांकर का कहना है कि 23 नवंबर 2023 होने वाली इस यात्रा तक वे 10 से अधिक लोगों को जाति-पाँति से हटकर सिर्फ हिंदू होने का संकल्प दिलाएँगे।
दरअसल, स्वामी दीपांकर जातिवाद और नशा से लोगों को बचाने के लिए 23 नवंबर 2022 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की यात्रा शुरू की थी। स्वामी दीपांकर का कहना है कि 23 नवंबर 2023 तक इस क्षेत्र के कुल लगभग 26 जिलों के कवर कर रहे थे, जिसमें 14-15 जिलों तक वे पहुँचे हैं। इस बीच यूपी का पंचायत चुनाव शुरू हो गया और आचार संहिता लगने के कारण वे उत्तराखंड और दिल्ली में यात्रा करने लगे। इस दौरान उन्होंने उत्तराखंड के कई जिलों और दिल्ली के 8 से 10 पर यात्रा की।
स्वामी दीपांकर से यह पूछे जाने पर कि इस यात्रा का उद्देश्य भारत को धीरेंद्र शास्त्री की तरह हिंदू राष्ट्र बनाने की माँग को लेकर तो नहीं है। इस पर स्वामी दीपांकर कहते हैं, “आप हिंदू हो तो जाइए। हो जाइए फिर कहना नहीं पड़ेगा, राष्ट्र के लिए।” उन्होंने कहा कि उनकी भिक्षा यात्रा को स्थानीय लोगों के साथ-साथ साधु-संतों का भी भरपूर समर्थन मिल रहा है।
हिंदू राष्ट्र की माँग को लेकर बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के साथ मिलकर काम करने के सवाल पर स्वामी दीपांकर ने कहा, “ये काल के गर्भ में छिपा है। हमें लगता है कि हर व्यक्ति अपनी नियति स्वयं तय करता है। हर संन्यासी का अपना कर्तव्य है और संन्यासी को अपने कर्तव्य का निर्वाह स्वयं करना चाहिए। हम अलग कभी किसी से रहे नहीं है।”
ऑपइंडिया को स्वामी दीपांकर ने बताया कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य जातियों में बँटे हुए सनातन को हिंदू के रूप में संगठित करना है। उन्हें जागरूक करना है कि जातियों में ना बँट करके हिंदू बनकर रहिए। उन्होंने कहा कि सिर्फ हिंदू होने का महासंकल्प ही इस यात्रा का सार है।
यात्रा की सफलता पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “लोगों में अब एक स्पार्क दिखता है। पहले लोगों के कारों के पीछे जाट, गुज्जर, ब्राह्मण, बनिया लिखा देखते थे, लेकिन अब हिंदू लिखा देखने को मिलता है। मोबाइल के कवर से लेकर विवाह के समारोह के कार्ड तक हिंदू दिखना अब आम हो गया है। यह देखना अच्छा लगता है।” उन्होंने कहा कि यात्रा के संपन्न होने तक इसके और भी सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।