GOOD NIGHT #शुभ_रात्रि
"तुम्हें यह काम करना ही पड़ेगा |" नौकर से ऐसा कहने की बजाये यह कहो कि: "क्या यह काम कर दोगे?" ...तो वह नौकर उत्साह से आपकी प्रसन्नता के लिए वह काम कर देगा | अन्यथा, उसे वह काम बोझ प्रतीत होगा और वह उससे छुटकारा पाने के लिए विवश होकर करेगा जिसमें उसकी प्रसन्नता लुप्त हो जायेगी और काम भी ऐसा ही होगा |
कहने के ढंग में मामूली फर्क कर देने से कार्यदक्षता पर बहुत प्रभाव पड़ता है | अगर किसीसे काम करवाना हो तो उससे कहें कि अगर आपके लिए अनुकूल हो तो यह काम करने की कृपा करें |
बातचीत के सिलसिले में महत्ता दूसरों को देनी चाहिए, न कि अपने आपको | ढंग से कही हुए बात प्रभाव रखती है और अविवेकपूर्वक कही हुई वही बात विपरीत परिणाम लाती है |
दूसरों से मिलजुलकर काम वही कर सकता है जो अपने अहंकार को दूसरों पर नहीं लादता | ऐसा अध्यक्ष अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से कोई गलती हो जाए तो वह गलती को स्वयं अपने ऊपर ले लेता है और कोई अच्छा काम होता है तो उसका श्रेय दूसरों को देता है |
अपने साथियों की व्यक्तिगत या घरेलू समस्याओं के प्रति सहानुभूति रखकर, यथाशक्ति उनकी सहायता करना दक्ष नेतृत्व का चिह्न है | कोई अगर अच्छा काम कर लाये तो उसकी प्रशंसा करना और जहाँ उसकी कमियाँ हों वहाँ उसका मार्गदर्शन करना भी दक्ष नेतृत्व की पहचान है |
अपने साथ काम करनेवालों के साथ मैत्री और अपनत्व का सम्बन्ध कार्य में दक्षता लाता है | जहाँ परायेपन की भावना होगी वहाँ नेतृत्व में एकसूत्रता नहीं होगी और काम करनेवाले तथा काम लेनेवाले के बीच समन्वय न होने के कारण कार्य में ह्रास होगा |
कई खेलों में जुट भावना से मिलजुलकर खेलने से प्रायः खेल में दक्षता प्राप्त होती है और जुट को विजय मिलती है | जुट में जहाँ आपस में मेलजोल नहीं है, समन्वय नहीं है और परस्पर वैमनस्य है वहाँ अच्छे खिलाड़ियों के होते हुए भी वह जुट असफल होता दिखाई देता है | जुट का मुखिया सब खिलाड़ियों के प्रति समान व्यवहार एवं सम्मान की भावना न रखकर ऊँच-नीच का भाव रखता है तो ऐसे जुट में विषमता पनपती है और उसको असफलता ही हाथ लगती है |
दूसरों से काम लेने का ढंग भी उन्हीं लोगों को आता है जो प्रसन्नचित रहते हैं | प्रसन्नचित्त वह रह सकते हैं जो ध्यान करते हैं और संतसमागम करते हैं | उनके कहे अनुसार दुसरे लोग काम करते हैं |
कुछ लोगों के स्वाभाव में उद्विग्नता भरी रहती है, जैसे वह हमेशा इमली खाए हुए हैं, मिसरी कभी खाई ही नहीं है | यदि वे किसीको कुछ काम करने के लिए कहते हैं तो सामनेवाले व्यक्ति के हृदय में प्रतिकूल प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है | इससे काम करनेवाला प्रसन्नचित्त से उसमें भाग नहीं लेता, न अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करता है |
प्रतिकूल प्रतिभाव के कारण कहनेवाले की जीवनशक्ति भी क्षीण होती है और काम बिगड़ जाता है | इसके विपरीत यदि शान्ति एवं प्रसन्न चित से किसीको काम करने के लिए कहते हैं तो वह प्रसन्नतापूर्वक उस कार्य को संपन्न करता है | काम लेने का यही सही ढंग है और इसके विपरीत सब ढंग गलत हैं |
यह विचार छोड़ दो कि बिना डांट-डपट के, बिना डराने-धमकाने के और बिना छ्ल-कपट के तुम्हारे मित्र-साथी, स्त्री-बच्चे या नौकर-चाकर बिगड़ जायेंगे | सच्ची बात तो यह है की डर, डांट और छ्ल-कपट से तो तुम उनको पराया बना देते हो और सदा के लिए उन्हें अपने से दूर कर देते हो |
प्रेम, सहानुभूति, सम्मान, मधुर वचन, सक्रिय हित, त्याग-भावना आदि से हर किसीको सदा के लिए अपना बना सकते हो | तुम्हारा ऐसा व्यवहार होगा तो लोग तुम्हारे लिए बड़े-से-बड़े त्याग के लिए तैयार हो जायेंगे | तुम्हारी लोकप्रियता मौखिक नहीं रहेगी | लोगों के हृदय में बड़ा मधुर और प्रिय स्थान तुम्हारे लिए सुरक्षित हो जाएगा | तुम भी सुखी हो जाओगे और तुम्हारे सम्पर्क में आनेवाले को भी सुख-शान्ति मिलेगी |
कोई व्यक्ति हमारे कथन अथवा निर्देश पर किस रूप में अमल करेगा यह हमारे कहने के ढंग पर निर्भर करता है और सही तरीका वही है जो काम करनेवाले के चित्त में अनुकूल परिणाम उत्पन्न करे |
किसीको व्यंग या कटाक्षयुक्त वचन कहें तो उसकी चित्त में क्षोभ पैदा होता है | हमें भी हानि होती है |
"आप तो भगतडे हो ...बुद्धू हो ...कुछ जानते नहीं ..." इस प्रकार बात करने के ढंग से बात बिगड़ जाती है | बात कहने के ढंग पर बात बनती या बिगड़ती है | जिनकी वाणी में विनय-विवेक है वे थोड़े ही शब्दोँ में अपने हृदय के भाव प्रकट कर देते हैं | वे ऐसी बात नहीं बोलते जिससे किसीको ठेस पहुंचती हो |
सबके साथ सहानुभूति और नम्रता से युक्त मित्रता का बर्ताव करो | संसार में सबसे ज़्यादा मनुष्य ऐसे ही मिलेंगे जिनकी कठिनाईयाँ और कष्ट तुम्हारी कल्पना से कहीं अधिक है | तुम इस बात को समझ लो और किसीके भी साथ अनादर और द्वेष का व्यवहार न करके विशेष प्रेम का व्यवहार करो |
तुमसे कोई बुरा बर्ताव करे तो उसके साथ भी अच्छा बर्ताव करो और ऐसा करके अभिमान न करो | दूसरों की भलाई में तुम जितना ही अपने अहंकार को और स्वार्थ को भूलोगे उतना ही तुम्हारा वास्तविक हित अधिक होगा |
अच्छा बर्ताव और निश्छल प्रेम का व्यवहार करके सबमें प्रेम और भलाई का वितरण करो | यही सच्ची सहायता और सच्चा आश्वासन है | तुम जगत से जैसा व्यवहार करोगे वैसा ही तुम पाओगे भी |
. 🚩जय सियाराम 🚩
. 🚩जय हनुमान 🚩