GOOD NIGHT #शुभ_रात्रि
परमात्मा परम आनंद और परम शान्ति के भंडार हैं | उनके साथ तुम्हारा सम्बन्ध जितना ही बढ़ता जाएगा उतने ही आनंद और शान्ति भी तुम्हारे अंदर बढते जायेंगे | तुम जहां भी जाओगे, आनंद और शान्ति तुम्हारे साथ जायेंगे | जगत के प्राणियों को भी उससे शान्ति की प्राप्ति होगी |
कहीं-कहीं महापुरुषों को ’दादा’ कहकर पुकारते हैं, ’दादा’ का अर्थ है जो दे … और नित्य देता रहे | जो हमें ज्ञान, प्रेम, करुणा, प्रसन्नता, शान्ति आदि नित्य देता ही रहे उसे ’दादा’ कहते हैं | ऐसे महापुरुषों से हमें जीवन जीने की कला, बातचीत करने का शिष्टाचार तथा लोक-व्यवहार का आदर्श भी सिखने को मिलता है |
प्रतिध्वनि ध्वनि का अनुसरण करती है और ठीक उसी के अनुरूप होती है | इसी प्रकार दूसरों से हमें वही मिलता है और वैसा ही मिलता है जैसा हम उनको देते हैं | अवश्य ही वह बीज-फल न्याय के अनुसार कई गुना बढ़कर मिलता है | सुख चाहते हो, दूसरों को सुख दो | मान चाहते हो, औरों को मान प्रदान करो | हित चाहते हो तो हित करो और बुराई चाहते हो तो बुराई करो | जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल पाओगे |
यह समझ लो कि मीठी और हितभरी वाणी दूसरों को आनंद, शान्ति और प्रेम का दान करती है और स्वयं आनंद, शान्ति और प्रेम को खींचकर बुलाती है | मीठी और हितभरी वाणी से सद्गुणोंका पोषण होता है, मन को पवित्र शक्ति प्राप्त होती है और बुद्धि निर्मल बनती है | वैसी वाणी में भगवान का आशीर्वाद उतरता है और उससे अपना, दूसरों का, सबका कल्याण होता है | उससे सत्य की रक्षा होती है और उसी में सत्य की शोभा है |
मुंह से ऐसा शब्द कभी मत निकालो जो किसी का दिल दुखावें और अहित करे | कड़वी और अहितकारी वाणी सत्य को बचा नहीं सकती और उसमें रहनेवाले आंशिक सत्य का स्वरूप भी बड़ा कुत्सित और भयानक हो जाता है जो किसीको प्यारा और स्वीकार्य नहीं लग सकता | जिसकी जबान गन्दी होती है उसका मन भी गन्दा होता है |
महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी से किसी विशिष्ट विद्वान् ने कहा: "आप मुझे सौ गाली देकर देखिये, मुझे गुस्सा नहीं आएगा |"
महामना ने जो उत्तर दिया वह उनकी महानता को प्रकट करता है | वह बोले: "आपके क्रोध की परीक्षा तो बाद में होगी, मेरा मुंह तो पहले ही गन्दा हो जाएगा |"
ऐसी गन्दी बातों को प्रसारित करने में न तो अपना मुंह गन्दा बनाओ और न औरों की वैसी बातें ग्रहण ही करो | दूसरा कोई कड़वा बोले, गाली दे तो तुम पर तो तभी उसका प्रभाव होता है जब तुम उसे ग्रहण करते हो |
ढंग से कही हुई बात प्रिय और मधुर लगती है | माँ के भाई को ’मामा’ कहकर पुकारें तो अच्छा लगता है किंतु ’पिता का साला’ कहकर पुकारें तो बुरा लगता है |
दूसरी बात है की बिना अवसर की बात भी अलग प्रतिभाव खड़ा करती है | भोजन के समय कई लोग कब्जी, शौच या और हल्की बातें करने लग जाते हैं | इससे चित की निम्न दशा होने से तन-मन पर बुरा असर पड़ता है | अतः भोजन के समय पवित्रता, शान्ति और प्रसन्नता बढानेवाला ही चिंतन होना चाहिए | भोजन में तला हुआ, भुना हुआ और अनेक प्रकार के व्यंजन, यह सब स्वास्थ्य और आयु की तो हानि करते ही हैं, मन की शान्ति को भी भंग करते हैं |
सही बात भी असामयिक होने से प्रिय नहीं लगती | भगवान श्रीरामचंद्रजी अपने व्यवहार में, बोल-चाल में इस बात कर बड़ा ध्यान रखते थे की अवसरोचरित भाषण ही हो | वे विरुद्धभाषी नहीं थे | इससे से उनके द्वारा किसीके दिल को दुःख पहुचाने का प्रसंग उपस्थित नहीं होता था | वे अवसरोचारित बात को भी युक्ति-प्रयुक्ति से प्रतिपादित करते थे तभी उनकी बात का कोई विरोध नहीं करता था और न तो उनकी बात से किसीका बुरा ही होता था |
बात करने में दूसरों को मान देना, आप अमानी रहना यह सफलता की कूँजी है | श्रीराम की बात से किसी को उद्वेग नहीं होता था |
जो बात-बात में दूसरों को उद्विग्न करता है वह पापियों के लोक में जाता है |
बात मुँह से बाहर निकलने से पहले ही उसके प्रतिभाव की कल्पना करें ताकि बात में पछताना न पड़े | किसी कवि ने कहा है:
निकी पै फीकी लगे बिन अवसर की बात |
जैसे बिरन के युद्ध में रस सिंगार न सुहात ||
और …
फीकी पै निकी लगे कहिये समय विचारि |
सबके मन हर्षित करे ज्यों विवाह में गारि ||
. क्रमशः
. 🚩जय सियाराम🚩
. 🚩जय हनुमान 🚩