Good Night #शुभ_रात्रि
भगवान करुणामय है, समर्थ हैं और मेरे हैं ऐसा विश्वास निर्माण होना चाहिए । भक्त कैसा होना चाहिए? भक्त के जीवन में तीन बातें आनी चाहिए । ‘मुझे मालूम नहीं है’ यह भक्ति में पहली बात है और ‘मैं नहीं करता’ यह दूसरी बात है तथा ‘मेरा कुछ नहीं’ यह तीसरी बात है । ये तीनों बातें जीवन में खडी केसे करनी है? यह बडा प्रश्न है । परन्तु ये तीनों बाते खडी करनी है ।
पहली बात ‘मुझे मालूम नहीं है’ यह बात परिपक्व हो तो भगवान के पास मांग ही नहीं होती । आज एकाध बात से हमें सुख मिलता हो तो कल उस बात से दु:ख भी मिलेगा । हम मनौती करते हैं, उससे भगवान प्रसन्न होते हैं । हम भगवान से पैसे मांगते है और भगवान पैसे देते हैं । उसमे हमें सुख लगता है, परन्तु कल दु:ख भी लगेगा । तब आदमी चिढकर कहता है; ‘देखो इन पैसों से आज लडके बिगड गये हैं इससे तो भगवान पैसे न देते तो अच्छा होता ।’ इसका अर्थ कल सुख बदल जाएगा । भगवान ने जब पैसे भेजे तब उसे सुख लगता था । उन्ही पैसों के कारण लडकों का प्यार गुमाने के बाद वही सुख उसे दु:ख लगता है । यह शक्य है । मेरा सुख किसमे है? यह मुझे मालूम नहीं है । यहीं से भक्ति शुरु होती है । अर्थात् श्ुरुआत में मनुष्य भगवान के पास मांगने के लिए जाता है ।
‘मुझे मालूम नही’ यह वृत्ति निर्माण करने के लिए किसी के उपर दुर्दम्य विश्वास बैठना चाहिए । भगवान पर दुर्दम्य विश्वास हो तभी ऐसी वृत्ति तैयार होती है । भगवान के साथ आत्मीयता और दुर्दम्य विश्वास इन दोनो बातों का पक्का रस मनमें तैयार हो तभी यह बात शक्य है । जो भगवान के उपर विश्वास रखनेवाले हैं, उनके विशाल हृदय की कल्पना होनी चाहिए । इतना ही नहीं उनके हृदय तक पहुँचने की वृत्ति तैयार होनी चाहिए । जगत में अदृश्य शक्ति (Unseen power) पर विश्वास रखने वाला भक्त मिलना चाहिए । शायद तभी उसके सानिध्यमें रहकर भगवान पर हमारा थोडा बहुत विश्वास बैठे इसीके लिए हमारे यहाँ सत्संग की महिमा गायी गयी है । भगवान के सामीप्य की अनुभूति आने के लिए ही तुलसीदासजी ने लिखा है, ‘राम लखन सीता सहित हृदय बसहुं सुर भूप।’
भक्त कहता है मेरे सुख किसमें है यह मैं नहीं जानता हूँ, आपको ही वह मालूम है, आप जो करेंगे मैं उसका स्वीकार करुँगा । ऐसा कहकर भक्त अपनी इच्छा ही भगवान को सौंप देता है । उसीको ‘यदृच्छालाभसंतुष्टो............. कहते है । यह भक्त की अंतिम अवस्था है । इच्छा भगवान को सौंप दो ।
जैसे ‘मुझे मालूम नहीं’ यह वृत्ति जीवन मे आनी चाहिए । उसी तरह ‘मै नही करता हूँ’ यह वृत्ति भी आनी चाहिए । ‘मै करता हूँ । इसमे से ‘मै’ निकालना है, परन्तु ‘मैं’ शीघ्र नहीं निकलता है । इसलिए हमारे ऋषिमुनियों ने जो मार्ग दिखलाया है, स्वाध्याय परिवार ने उसका स्वीकार किया है । कौनसा मार्ग ? वह मार्ग है ‘यज्ञ’ यज्ञमें ‘मै करता हूँ’ यह भावना नहीं है । ‘हम करते है’ यह भावना है । ‘मै’ के स्थान पर ‘हम’ शब्द आ गया । ‘हम’ शब्द बहुत अच्छा है, उसमें ‘मै’ भी रहता है और ‘तु’ भी रहता है । ‘मै’ के स्थान पर ‘हम’ लाओ, उसमें ‘मै’ रहता है और तकलीफ नहीं होती ।
शुरुआत में ‘मैं करता हूँ’ यह हमारी भूमिका है, मैं काम करता हूँ, गृहस्थी चलाता हूँ मैं पैसा कमाता हूँ ऐसी सभी की भूमिका रहती है, उसके बाद मैं करता हूँ मे से मैं मेरा काम करता हूँ परन्तु मेरे सामथ्र्य से करता हूँ इस सीढी पर आदमी आता है । इसमें मेरा और मै कायम रहते हैं । बाद में भगवान के सामथ्र्य से करता हूं यह भूमिका आती है । माध्वाचार्य इत्यादि आचार्यों का ‘तेन तत्वमसि’ का यही अर्थ है । मैं मेरे लिए करता हूँ परन्तु भगवान के सामथ्र्य से करता हूँ उसके बाद भगवान, मैं तुम्हे अच्छा लगनेवाला काम करता हूँ यह तीसरी सीढी है । ये सब ‘मै’ निकालने की सीढीयाँ है ।
भगवान! मैं आपके लिए करता हूँ यह ‘मै’ निकालने का मार्ग है । ‘मै आपका हूँ आपका कार्य करता हूँ, आपके लिए करता हूँ । परिवार चलाता हूँ । इतना कहनेपर मेरा कुछ नही, मै भी अपना नही हूँ यह भक्त की भूमिका है ।
. 🚩जय सियाराम 🚩
. 🚩जय हनुमान 🚩