यह तीनों उसी स्कूल की शिक्षिका हैं जिस स्कूल में बच्चों को जागरण अजान करवाई जाती है और लड़कियों को हिजाब पहनने के लिए बाध्य किया जाता है ऐसे आरोप लगे हैं।
‘दैनिक भास्कर’ की खबर के अनुसार, बच्चों ने कहा कि नमाज न पढ़ने पर छात्रों को छड़ी से पीटा जाता था। किसी बच्चे की मौत होने की सूरत में बच्चों से दुआ पढ़ने को कहा जाता था कि वो जहन्नुम में न जाएँ।
यह एक अत्यंत ही गंभीर मामला है यदि हमारे बच्चों को स्कूलों में इस प्रकार की शिक्षा दी जाएगी उनका ब्रेनवाश किया जाएगा और उनका धर्मांतरण करने का प्रयास किया जाएग तो कैसे हम आश्वस्त होकर हमारे बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल में भेजें?
तीनों शिक्षिकाएँ अपने दस्तावेजों को लेकर डीएम के दफ्तर में पहुँचीं और अपने खिलाफ लग रहे आरोपों पर सफाई दी। तबस्सुम बानो (पहले प्राची जैन), अनीता खान (पहले अनीता यदुवंशी) और अफ़सा शेख (पहले दीप्ती श्रीवास्तव) अपने-अपने पति के साथ कलक्टर के दफ्तर पहुँची थीं। उन्होंने संविधान का हवाला देते हुए दावा किया कि उन्हें किसी भी मजहब को मानने का अधिकार है। साथ ही कहा कि उनके बारे में बोलने का हक़ किसी को नहीं।
शिक्षिका अनीता खान ने दावा किया कि स्कुल संचालक इदरीस खान का उनके धर्म-परिवर्तन में कोई रोल नहीं है।
उनकी शादी 2013 में हुई थी और 2021 से उन्होंने पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने खुद को मानसिक तनाव में भी बताया। उन्होंने धर्मांतरण को अपना निजी मामला बताते हुए कहा कि इसे स्कूल से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। वहीं अफ़सा शेख ने धर्मांतरण के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उनका निकाह 2000 में हुआ था और उनकी बेटी 21 साल की है। उन्होंने भी कहा कि वो किस मजहब को मानें वो उनकी मर्जी है।
वहीं पहले प्राची जैन रहीं तबस्सुम बानो ने कहा कि उनका निकाह जनवरी 2004 में हुआ था। उन्होंने अपनी मर्जी से निकाह की बात करते हुए कहा कि इसके बाद उनका नाम बदला गया और उनके ऊपर किसी का दबाव नहीं था। उन्होंने दावा किया कि स्कूल 2012 में खुला। अनीता के पति का नाम तौसीफ है। पॉलिटेक्निक में पढ़ाई के दौरान दोनों मिले। वहीं तबस्सुम की मुलाकात साबिर से मिशन स्कूल में हुई।
स्कूली छात्रों ने बताया कि उन्हें हनुमान चालीसा नहीं आती, लेकिन कुरान की आयतें याद हैं।
एक छात्रा ने ये भी बताया कि हर शुक्रवार (जुमा) को स्कूल में नमाज पढ़ना अनिवार्य था। हिंदी-अंग्रेजी से ज्यादा उर्दू-अरबी सिखाया जाता था। प्रार्थना में दुआ पढ़ने को कहा जाता था। घर में डाँट सुनने पर कहा जाता था कि छिप कर ये सब पढ़ो।