हम सब लोग मोबाइल और कम्प्यूटर का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं.
और, मोबाइल एवं कम्प्यूटर के लिए वायरस शब्द कोई नया नहीं है...
क्योंकि, आये दिन कोई न कोई बोलता ही रहता है कि हमारे मोबाइल में वायरस आ गया अथवा कम्प्यूटर में वायरस आ गया.
लेकिन, क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है कि मोबाइल, कम्प्यूटर अथवा लैपटॉप में वायरस ही क्यों आता है .... बैक्टेरिया, फंगस या प्रोटोजोआ क्यों नहीं ???
इसका जबाब बेहद मजेदार है.
असल में वायरस कोई जीवित चीज नहीं है और न ही मृत है....
अर्थात, वो निष्क्रिय होता है.
तथा, जब वायरस को कोई होस्ट मिल जाता है तभी वो एक्टिव होता है ठीक किसी बीज की तरह.
मतलब कि जिस तरह गेहूँ या चने के दाने न तो सजीव होते हैं और न ही निर्जीव..
बल्कि, उचित महौल मिलने पर (मिट्टी में जाने एवं वहाँ खाद पानी मिलने के बाद) वे एक्टिव हो जाते हैं..
उसी प्रकार वायरस भी प्रकृति में यूँ ही निष्क्रिय पड़े रहते हैं तथा उचित माहौल पाने पर पनपने लगते हैं.
इसमें एक मुख्य बात है कि.... वायरस का कोई वैसा डेड लाइन नहीं होता है कि वे 2 वर्ष तक निष्क्रिय रहेंगे या 200 वर्ष.
वे हजारों लाखों वर्ष तक यूँ ही निष्क्रिय बने रह सकते हैं.
जबकि... बैक्टेरिया, फंगस, प्रोटोजोआ आदि जीवित जीवाणु होते हैं और वे बिना होस्ट के भी पनपते रहते हैं...
अर्थात, अपनी जनसंख्या बढ़ाते रहते हैं.
इसीलिए, कम्प्यूटर अथवा मोबाइल के इन्फेक्शन को वायरस इन्फेक्शन कहा जाता है न कि बैक्टेरियल या फंगल इन्फेक्शन.
अब इसका साफ मतलब हुआ कि.... कम्प्यूटर /मोबाइल वायरस भी एक इनएक्टिव/ निष्क्रिय चीज है और वो जबतक कम्प्यूटर / मोबाइल में इनस्टॉल न हो जाये तबतक हमें कोई हानि नहीं पहुंचा सकता है.
लेकिन, अब सबसे बड़ा सवाल है कि.... आखिर कम्प्यूटर /मोबाइल में वायरस इनस्टॉल करता कौन है ?
तो, इसका जबाब बेहद रोचक है कि हमारे मोबाइल अथवा कम्प्यूटर में वायरस कोई खुद से इनस्टॉल नहीं हो जाता है बल्कि हम खुद ही उसे अपने कंप्यूटर या मोबाइल में इनस्टॉल कर लेते हैं.
क्योंकि, मोबाइल/ कम्प्यूटर का असल में वायरस कुछ नहीं बल्कि एक सॉफ्टवेयर होता है जो हमारे सिस्टम को या तो बिगाड़ देता है या फिर हमारे मोबाइल का डाटा अनाधिकृत रूप से उस जगह भेजने लगता है जिन्होंने इसे डेवलप किया होता है.
इसीलिए, अगर app डाउनलोड करते समय सावधानी बरती जाए और app को सोच समझ कर अपने कंप्यूटर अथवा मोबाइल की एक्सेस दी जाए तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान है.
और, हाँ.... वायरस के मामले में एक महत्वपूर्ण बात है कि अगर हम अपने मोबाइल अथवा कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर को समय समय पर अपडेट करते रहते हैं तो हमारे सिस्टम से वायरस खुद ही हट जाता है.
वायरस का आना या हट जाना का तात्पर्य यह है कि वायरस हमारे सिस्टम के मुख्य प्रोग्राम और उसके सिक्योरिटी सिस्टम को बदल देता है जिस कारण सिस्टम दूसरों के मन से काम करता रहता है.
लेकिन, जैसे ही हम सिस्टम या प्रोग्राम को अपडेट करते हैं वो अधिकृत सॉफ्टवेयर अपने डिफाल्ट सेटिंग में आ जाता है और सभी अनाधिकृत सेटिंग को रिमूव कर देता है जिसे हम सामान्य बोलचाल वायरस का हट जाना बोलते हैं.
और.... सबसे मजे की बात है कि... वायरस, प्रोग्राम ... सॉफ्टवेयर अपडेट आदि सिर्फ कम्प्यूटर अथवा मोबाइल के लिए ही नहीं है बल्कि वो हमारी निजी जिंदगी और समाज के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है.
निजी जिंदगी में वायरस कैसे आता है वो एक उदाहरण से समझें...
मान लें कि.... इस सोशल मीडिया में कोई अच्छा लेखक है..
और, वो इनबॉक्स में इधर उधर की लॉजिक से किसी शादीशुदा महिला को कन्विंस कर देता है कि अपने घर में तुम्हारी जिंदगी झंड हुए जा रही है और तुम पर बहुत अत्याचार हो रहा है इसीलिए तुम्हें अपना छोड़ देना चाहिए.
फिर, वो महिला किसी और के संपर्क में आती है और वो ये सब सुनते ही समझ जाता है कि कोई इसे बेवकूफ बना रहा है.
फिर वो, उस महिला को ठीक से समझा देता है कि वो तुम्हें गलत समझा रहा है जो कि तुम्हारी जिंदगी तबाह कर देगी.
इसीलिए, तुम घर में रहते हुए ही अपनी परिस्थिति से इस तरह निपटो...
और, महिला ये समझ गई.
तो, पहले केस में जो लेखक महिला को समझा रहा था उसे हम वायरस कह सकते हैं जो महिला के दिमाग में इंस्टाल होकर उसके परिवार रूपी मुख्य सिस्टम को करप्ट करने का प्रयास कर रहा था.
जबकि, दूसरा समझाने वाला व्यक्ति एंटीवायरस माना जायेगा जिसने महिला के दिमाग से उस वायरस को हटा कर उसके परिवार रूपी मुख्य सिस्टम को फिर से रिस्टोर कर दिया.
उसी तरह.... समाज में भी बहुत सारे वायरस हैं.
वो मुख्य समाज में रहते हुए बिल्कुल जीवाणु वायरस की तरह इनएक्टिव रहते हैं तथा एकदम सामान्य व्यवहार करते हैं.
जिससे लोगों को भ्रम होने लगता है कि ये वैसा वाला नहीं है.
लेकिन, वे ऐसा बताते समय ये भूल जाते हैं कि वायरस तभी तक इनएक्टिव / निष्क्रिय रहते हैं जबतक कि उन्हें होस्ट नहीं मिल जाता है.
होस्ट मिलते ही वायरस अपना रंग दिखाने लगते हैं और कम्प्यूटर को हमेशा के लिए करप्ट /बर्बाद कर देते हैं..
लेकिन, इस सामाजिक वायरस से निपटने के भी वही सिद्धांत है जो कम्प्यूटर अथवा मोबाइल वायरस से निपटने के सिद्धांत हैं.
मतलब कि... पहले तो वायरस को अपने सिस्टम में इंस्टॉल ही नहीं होने दो... अर्थात, उनसे समुचित दूरी बनाकर रखो.
और आपको इस बात का संदेह हो कि ये प्रोग्राम वायरस हो भी सकता है और नहीं भी...
तो फिर, आप उस प्रोग्राम को बेहद लिमिटेड एक्सेस दो.
और तीसरा एवं जरूरी बात कि... अपने सिस्टम में एंटीवायरस सिस्टम रखें और समय समय पर प्रोग्राम को अपडेट करते रहें..
मतलब हुआ कि.... अपने धर्म और परंपराओं की जानकारी को अपडेटेड रखें...
तथा, समय समय पर .... अपने धर्म और परंपराओं से संबंधित जानकारियों को अपडेट करते रहें यानि कि उसके वैज्ञानिक महत्व को समझते रहें.
और हाँ.... अगर आप चाहते हैं कि आपका मोबाइल आपका लिए जान का खतरा न बन जाए तो अपने मोबाइल के गैलरी (फोटो/वीडियो), कैमरा, माइक्रोफोन और लोकेशन की परमिशन किसी भी app को न दें...
मतलब कि... किसी भी अंन्जान को अपने एवं अपने परिवार की फोटो, वीडियो, घर का पता, निजी मोबाइल नंबर, अपने एवं अपने घर की हर जानकारी एवं आपत्तिजनक वीडियो कॉल से सुरक्षित दूरी बना कर रखें.
फिर न तो आपकी जिंदगी हैक होगी, न मोबाइल और न ही समाज.
जय महाकाल...!!!