मीलार्ड ये मत सोचिए कि
लोग अनपढ़ हैं, आपके फैसले समझते नहीं
या कुछ याद नहीं रखते -
राज्यपाल को आंखें और दिमाग खुला
रख कर काम करना होता है -
उसे राजनीति भी देखनी होती है
लेकिन आपको राजनीति नहीं करनी चाहिए -
महाराष्ट्र के विषय में ये ठीक है कि शिंदे सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध नहीं कहा परंतु कल के फैसले में कुछ बातें स्वयं विरोधाभासी (Self Contradictory) हैं - CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने कल राज्यपाल द्वारा Floor Test का आदेश देने को गलत बताया लेकिन एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने को सही बताया -
पीठ का कहना था कि राज्यपाल का Floor Test के लिए कहना किसी दल के अंदरूनी झगड़े सुलझाने के इस्तेमाल नहीं हो सकता और संविधान और कानून में राज्यपाल को राजनीति में घुसने की इज़ाज़त नहीं है - राज्यपाल के पास ऐसा कोई कारण नहीं था जो Floor Test कराने के लिए उन्हें बाध्य कर रहा था -
अदालत आज राज्यपाल को गलत साबित कर रही है लेकिन इस बात का जवाब भी फिर अदालत को ही देना चाहिए कि यदि राज्यपाल का फैसला सही नहीं था तो आपने 29 जून, 2022 को उनके आदेश पर रोक लगाने से मना क्यों कर दिया - यदि राज्यपाल गलत थे तो उनके 30 जून, 2022 को Floor Test कराने के आदेश पर उसी दिन आपको रोक लगा देनी चाहिए थी -
लेकिन आज स्वयं अदालत को राजनीति का अखाड़ा बना रहे हैं केवल राज्यपाल को कटघरे में खड़ा करने के उद्देश्य से -
यदि आपने राज्यपाल को रोक दिया होता तो उद्धव को त्यागपत्र भीं नहीं देना पड़ता लेकिन आपको भी पता था कि उद्धव के पास बहुमत नहीं है और आप आज डींग मार रहे हैं कि यदि उन्होंने त्यागपत्र न दिया होता तो उनकी सरकार बहाल हो सकती थी -
मीलार्ड यह कैसे संभव हो सकता था कि बिना बहुमत के उद्धव मुख्यमंत्री रहते - आपने कहा कि जब सरकार बनती है तो माना जाता है कि उसके पास बहुमत है परंतु आप भूल गए कि सरकार के गठन के बाद भी सत्ता पक्ष को सदन में बहुमत साबित करना पड़ता है -
आप कहते है कि राज्यपाल के पास कोई कारण नहीं था Floor Test कराने के लिए - राज्यपाल को आंखें खोल कर काम करना होता है - 42 विधायक उद्धव की शिवसेना के गुवाहाटी में बैठे थे जिसका सबूत राज्यपाल के पास संजय राउत के बयान में था कि गुवाहाटी से 40 लाशें आएंगी और आप कहते हो कोई कारण नहीं था फ्लोर टेस्ट कराने का - इसे केवल राजनीतिक दृष्टि से ही समझा जा सकता है न कि कानूनी तौर पर कि पार्टी से दूर वे विधायक देश के दूसरे कोने में जाकर क्यों बैठे थे -
राज्यपाल का फैसला सही था तभी तो आप उनके एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने को सही मान रहे हैं - राज्यपाल एक जगह गलत और दूसरी जगह सही, ये तो Double Standard हो गया -
आप राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 175 (2) में मिले अधिकार को ख़त्म करने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें उन्हें विधानसभा सत्र बुलाने और सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहने का अधिकार है - यदि सत्र चल रहा है तो स्पीकर बहुमत साबित करने को कह सकता है और यदि सत्र नहीं चल रहा और सरकार का मुखिया ढुलमुल है तो राज्यपाल फ्लोर टेस्ट का आदेश दे सकता है -
सबसे बड़ा सवाल यह है कि Deputy Speaker ने शिंदे के साथ गए सभी विधायकों को करना अयोग्य घोषित करने की बजाय केवल 16 को क्यों किया -
जून, 2022 में कपिल सिब्बल और मनु सिंघवी राबिया नबाम केस का विरोध कर रहे थे और अब वही कह रहे हैं कि उस फैसले पर पुनर्विचार 7 जजों बेंच करे और आप इसके लिए तैयार भी हो गए - इस सोच में बदलाव का क्या कारण है - जब तक पुनर्विचार होगा तब तक तो वर्तमान स्पीकर अयोग्य विधायकों पर फैसला कर देंगे, फिर इस जद्दोजहद का क्या लाभ होगा -